vaman avtar katha
Vaman Jayanti 2024: भाद्रपद शुक्ल पक्ष की द्वादशी को भगवान वामन की जयंती मनाई जाती है। इसके बाद ओणम महावर्प रहता है। वामन जयंती और ओणम पर्व दोनों ही एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। भगवान विष्णु ने पांचवें अवतार के रूप में त्रिविक्रम नाम से जन्म लिया था जिन्हें बाद में वामन कहा गया। इस बार वामन जयंती 15 सितंबर 2024 रविवार के दिन रहेगी। वामन देव ने भाद्रपद माह की शुक्ल पक्ष द्वादशी को अभिजित मुहूर्त में जब श्रवण नक्षत्र प्रचलित था। ALSO READ: onam 2024 : थिरुवोणम दस दिवसीय ओणम महोत्सव एवं परंपरा की 15 खास बातेंद्वादशी तिथि प्रारम्भ- 14 सितम्बर 2024 को रात्रि 08:41 बजे से।
द्वादशी तिथि समाप्त- 15 सितम्बर 2024 को शाम 06:12 बजे तक।
श्रवण नक्षत्र प्रारम्भ- 14 सितम्बर 2024 को रात्रि 08:32 बजे से।
श्रवण नक्षत्र समाप्त- 15 सितम्बर 2024 को शाम 06:49 बजे तक।
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15 सितंबर 2024 के शुभ मुहूर्त :
प्रातः सन्ध्या: सुबह 04:56 से 06:06 तक।
अमृत काल: सुबह 09:10 से 10:39 तक।
अभिजीत मुहूर्त: दोपहर 11:51 से 12:41 तक।
गोधूलि मुहूर्त: शाम 06:26 से 06:49 तक।
सायाह्न सन्ध्या: शाम 06:26 से 07:36 तक।
उपरोक्त मुहूर्त में कभी भी पूजा आरती कर सकते हैं।
पर्व का महत्व : यह पर्व दक्षिण और उत्तर भारत की संस्कृति को जोड़ता है। कहते हैं इस दिन व्रत रखकर भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा करने तथा उनकी कथा सुनने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और व्यक्ति परमपद प्राप्त करता है।
वामन अवतार कथा (vamana avatar katha) : सत्ययुग में प्रह्लाद के पौत्र दैत्यराज बलि ने स्वर्गलोक पर अधिकार कर लिया। सभी देवता इस विपत्ति से बचने के लिए भगवान विष्णु के पास गए। तब भगवान विष्णु ने कहा कि मैं स्वयं देवमाता अदिति के गर्भ से उत्पन्न होकर तुम्हें स्वर्ग का राज्य दिलाऊंगा। कुछ समय पश्चात भगवान विष्णु ने वामन अवतार लिया।
एक बार जब बलि महान यज्ञ कर रहा था तब भगवान वामन बलि की यज्ञशाला में गए और राजा बलि से तीन पग धरती दान में मांगी। राजा बलि के गुरु शुक्राचार्य भगवान की लीला समझ गए और उन्होंने बलि को दान देने से मना कर दिया। लेकिन बलि ने फिर भी भगवान वामन को तीन पग धरती दान देने का संकल्प ले लिया। भगवान वामन ने विशाल रूप धारण कर एक पग में धरती और दूसरे पग में स्वर्ग लोक नाप लिया। जब तीसरा पग रखने के लिए कोई स्थान नहीं बचा तो बलि ने भगवान वामन को अपने सिर पर पग रखने को कहा। बलि के सिर पर पग रखने से वह सुतललोक पहुंच गया। बलि की दानवीरता देखकर भगवान ने उसे सुतललोक का स्वामी भी बना दिया। इस तरह भगवान वामन ने देवताओं की सहायता कर उन्हें स्वर्ग पुन: लौटाया।
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