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वायु प्रदूषण से बारिश बनी जहर, IMD की खोज ने मचाई सनसनी!

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भारत के बढ़ते शहरीकरण और औद्योगिकीकरण ने न केवल हवा को दूषित किया है, बल्कि अब बारिश को भी जहरीला बना रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) और भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (IITM) की एक ताजा रिसर्च ने खुलासा किया है कि देश के कई शहरों में बारिश का पानी तेजी से अम्लीय होता जा रहा है। यह खबर न केवल पर्यावरण के लिए चिंताजनक है, बल्कि यह इंसानों, इमारतों और फसलों पर भी गंभीर असर डाल सकती है। आइए, इस अनोखी और चिंताजनक खोज के बारे में विस्तार से जानते हैं।

अम्लीय बारिश: क्या है यह खतरा?

IMD की 34 साल की लंबी रिसर्च (1987-2021) ने देश के 10 प्रमुख शहरों में बारिश के पानी की रासायनिक संरचना का अध्ययन किया। इसमें विशाखापट्टनम, प्रयागराज और असम के मोहनबाड़ी जैसे शहरों में बारिश का pH स्तर सामान्य से कम पाया गया। सामान्य बारिश का pH स्तर 5.6 के आसपास होता है, लेकिन इन शहरों में यह 4.77 से 5.32 के बीच दर्ज किया गया। कम pH स्तर का मतलब है कि बारिश अम्लीय हो रही है, जो पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती है। यह अम्लीयता वायु प्रदूषण, खासकर वाहनों, कारखानों और फसल अवशेष जलाने से निकलने वाले नाइट्रेट्स के कारण बढ़ रही है।

शहरों पर बढ़ता संकट

शहरों में बढ़ते प्रदूषण ने न केवल हवा को जहरीला बनाया है, बल्कि अब बारिश को भी प्रभावित कर रहा है। विशाखापट्टनम और प्रयागराज जैसे औद्योगिक और शहरी केंद्रों में बारिश की अम्लीयता में तेजी से इजाफा हुआ है। पुणे में भी यह रुझान चिंताजनक है, जहां शहरीकरण की रफ्तार ने पर्यावरण पर गहरा असर डाला है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो अम्लीय बारिश इमारतों को नुकसान पहुंचा सकती है, मिट्टी की उर्वरता को कम कर सकती है और जल स्रोतों को दूषित कर सकती है। ताजमहल जैसे ऐतिहासिक स्मारकों पर भी इसका असर देखा जा सकता है, जो पहले से ही प्रदूषण की मार झेल रहे हैं।

क्या है इसका असर?

अम्लीय बारिश का प्रभाव बहुआयामी है। यह मिट्टी से पोषक तत्वों को धो देती है, जिससे फसलों की पैदावार पर असर पड़ता है। पानी में भारी धातुओं का घुलना बढ़ जाता है, जो नदियों और झीलों को जहरीला बना सकता है। इससे जलीय जीवन तो प्रभावित होता ही है, साथ ही मानव स्वास्थ्य पर भी खतरा मंडराता है। इमारतों और बुनियादी ढांचे पर जंग और क्षरण का खतरा बढ़ जाता है। हालांकि, IMD का कहना है कि अभी भारत में अम्लीय बारिश का स्तर खतरनाक नहीं है, लेकिन भविष्य में यह स्थिति गंभीर हो सकती है।

कुछ शहरों में उलट रुझान

रिसर्च में यह भी सामने आया कि जोधपुर, पुणे और श्रीनगर जैसे शहरों में बारिश का पानी क्षारीय (अल्कलाइन) हो रहा है। इसका कारण थार मरुस्थल की धूल और मिट्टी के कण हैं, जो बारिश के पानी में मिलकर उसकी अम्लीयता को कम करते हैं। लेकिन यह राहत की बात नहीं है, क्योंकि क्षारीय बारिश भी पर्यावरण और फसलों के लिए नुकसानदेह हो सकती है। यह दिखाता है कि प्रदूषण और प्राकृतिक कारक मिलकर बारिश की रासायनिक संरचना को बदल रहे हैं।

आगे क्या करें?

IMD और IITM की इस रिसर्च ने हमें चेतावनी दी है कि वायु प्रदूषण को नियंत्रित करना अब और जरूरी हो गया है। वाहनों से होने वाले उत्सर्जन, औद्योगिक प्रदूषण और फसल अवशेष जलाने पर सख्ती बरतने की जरूरत है। साथ ही, लोगों को जागरूक करने और हरित ऊर्जा को बढ़ावा देने जैसे कदम उठाने होंगे। यह केवल पर्यावरण की बात नहीं, बल्कि हमारी सेहत, धरोहर और भविष्य की सुरक्षा का सवाल है।

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