ब्लॉक के मुहाने पर प्यासा पहाड़ी पुरवा, जिम्मेदारों को नहीं दिखती ये बस्ती!
मीरजापुर, 5 मई . सोचिए, सूरज सिर पर तमतमाता हो, तापमान 45 पार चला गया हो और आपको एक बाल्टी पानी भरने के लिए 100 मीटर की दौड़ लगानी पड़े! यह कोई ट्रैक एंड फील्ड प्रतियोगिता नहीं, बल्कि मीरजापुर के राजगढ़ ब्लॉक की सच्चाई है. ब्लॉक मुख्यालय से चंद कदम की दूरी पर बसे ‘पहाड़ी पुरवा’ की तस्वीर किसी मरुस्थल से कम नहीं है.
हैंडपंप ने हफ्ते भर पहले ही हाथ खड़े कर दिए और टोटियां हैं कि जैसे सिर्फ फोटोशूट के लिए लगी हों. बस्ती के 30 घरों के लोग हर सुबह और शाम ‘पानी के लिए दौड़’ में शामिल होते हैं. महिलाएं, बच्चे और बुजुर्ग प्लास्टिक की बाल्टियां और डब्बे लेकर सौ मीटर दूर किसी कामचलाऊ स्रोत से पानी लाने निकलते हैं, जैसे मानो पानी नहीं, कोई युद्ध जीतने जा रहे हों.
‘दीपक तले अंधेरा’ की परिभाषा यहीं समझिए
जहां एक ओर सरकारी दावे हर घर जल योजना के नाम पर विज्ञापनबाजी में व्यस्त हैं, वहीं बस्ती का इकलौता हैंडपंप कब से सूखा पड़ा है. न ग्राम प्रधान को सुध है, न सचिव को खबर. यह बस्ती ब्लॉक दफ्तर की नाक के नीचे है और यही शायद इसकी सबसे बड़ी त्रासदी है.
गर्मी में पानी की चुभन
पहाड़ी इलाका, चिलचिलाती धूप और जल संकट, इस त्रिकोण में फंसे ग्रामीण अब थक चुके हैं. अमरेश, लक्ष्मण, संतोष और राजकुमार जैसे ग्रामीण बताते हैं कि कई बार कह चुके हैं, मिन्नतें कर चुके हैं लेकिन फाइलें शायद गर्मी से पिघलने को भी तैयार नहीं.
मिशन जलशक्ति बन गया ‘मिशन बेमानी’
टोटी तो है, पर नलों में पानी नहीं. हैंडपंप है लेकिन उसमें दम नहीं. ग्रामीण व्यंग्य में कहते हैं, “अगर मिशन जलशक्ति की टोटियों से पानी नहीं निकलता, तो कम से कम उसमें पौधे तो लगा देते!”
कंट्रोल रूम नाम की चीज़ बस सरकारी कागज़ों में है
प्रशासन कहता है, कंट्रोल रूम बना है. लेकिन ग्रामीण पूछते हैं — कहां है? कब आया टैंकर? कौन कर्मचारी आया पूछने? असल में, ब्लॉक से पहाड़ी पुरवा तक की दूरी चाहे सौ मीटर हो, जिम्मेदारों की नज़र में ये शायद सौ मील बन चुकी है.
बीडीओ साहब का बयान
जब खंड विकास अधिकारी (बीडीओ) राजगढ़ से बात की गई, तो उन्होंने कहा कि जानकारी मिली है, टीम भेजी गई है. वैकल्पिक जल आपूर्ति का इंतज़ाम भी किया जा रहा है. साथ ही आश्वासन दिया कि लापरवाही पर जवाबतलबी होगी.
/ गिरजा शंकर मिश्रा
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