–हिन्दी की समृद्धि में विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्दों का अहम् योगदान : प्रो राकेश–पांच दिवसीय प्रारम्भिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन
प्रयागराज, 08 जुलाई (Udaipur Kiran) । इलाहाबाद विश्वविद्यालय के राजभाषा अनुभाग द्वारा आयोजित पांच दिवसीय बेसिक प्रशिक्षण कार्यक्रम का समापन मंगलवार को हुआ। समापन समारोह की मुख्य अतिथि कला संकाय की अध्यक्ष प्रो. अनामिका राय ने कहा कि भाषा में राजनीति प्रवेश करती तो भाषा का नुकसान होता है। तीसरी भाषा सीखने में कोई हानि नहीं है, बल्कि मनुष्य के विवेक में वृद्धि होती है।
प्रो. राय ने कहा कि वैश्विक संवाद में कई बार धर्म, राजनीति पीछे छूट जाती है भाषा रह जाती है। हिंदी संवाद का रास्ता तैयार करती है। ईजा, माई और बाबू की बातें हिंदी में हो सकती हैं। इसलिए हिंदी में बात और काम करने में हीनता-बोध नहीं होना चाहिए। अंग्रेजी पढ़ने-पढ़ाने वाले जिन लोगों ने हिंदी की महती सेवा की है उनमें विजयदेव नारायण साही, हरिवंश राय बच्चन, हेमा जोशी और मृणाल पाण्डेय के नाम उल्लेखनीय हैं। हमें उपनिवेशवादी मानसिकता से उबरना होगा। उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में बालीवुड की भूमिका भी रेखांकित किया।
हिंदी विभाग के आचार्य राकेश सिंह ने कार्यालयी पत्र लेखन विषय पर कहा कि दुनिया की कोई भी भाषा अकेले बड़ी नहीं होती, उसमें तमाम बोलियों और विभन्न भाषाओं के शब्द मिले होते हैं। हिंदी भाषा की समृद्धि में भी विभिन्न भाषाओं और बोलियों के शब्दों का अहम् योगदान है। प्रो. राकेश सिंह ने कहा कार्य के प्रति उदासीनता और उचित प्रशिक्षण की कमी के कारण प्रायः कार्यालयी पत्र लेखन में त्रुटियाँ पायी जाती हैं। अच्छे पत्र लेखन के लिए रूचि और शौक होना बहुत जरुरी है। कार्यालयी पत्र में शिष्टाचार अवश्य झलकना चाहिए। उन्होंने आतंरिक पत्र और बाहरी पत्र में बरती जाने वाली सावधानियों का भी उल्लेख किया। हिंदी भाषा में लिखे जाने वाले पत्रों में होने वाली सामान्य अशुद्धियों की ओर उन्होंने ध्यान आकृष्ट कराया।
–हिन्दी सहज सम्प्रेषणीय भाषा है : प्रो. लालसा यादवसमापन समारोह की विशिष्ट अतिथि हिंदी विभाग की अध्यक्ष प्रो. लालसा यादव ने कहा कि हिंदी सहज सम्प्रेषणीय भाषा है। किसी भाषा की सहज संप्रेषणीयता उसे सक्षम, समृद्ध, संवादी एवं विस्तृत करती है। हिंदी में यह विशेषता ज्यादा है। हिंदी की लिपि वैज्ञानिक है, इसीलिए इसके प्रयोग में जटिलताएं कम हैं और सरलता अधिक। दैनिक प्रयोग की हिंदी भले ही अनगढ़ हो लेकिन राजभाषा हिंदी मानक और परिनिष्ठित है। हिंदी हमारी समझ की भाषा है और इसका विकास हजारों साल की विकसनशील परम्परा के तहत हुआ है।
राजभाषा कार्यान्वयन समिति के संयोजक प्रो.कुमार वीरेंद्र ने हिंदी के लचीलेपन और खुलेपन पर अपनी बात रखी और विश्व मंच पर हिंदी को स्थापित करने की दिशा में हो रहे प्रयासों पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि भविष्य के कार्यक्रमों की योजना तैयार की जा रही है। अतिथियों द्वारा प्रतिभागियों को प्रशिक्षण प्रमाण पत्र दिया गया। इस अवसर पर हिंदी अधिकारी प्रवीण श्रीवास्तव एवं हिंदी अनुवादक हरिओम कुमार तथा अन्य प्रतिभागी उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन सुरेश कुमार और सुजाता ने किया और बरगद कलामंच के इशिता और कार्तिकेय ने सांस्कृतिक प्रस्तुति दी।
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(Udaipur Kiran) / विद्याकांत मिश्र
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