कानपुर, 16 अप्रैल . पांच दिवसीय प्रवास पर कानपुर आये राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत चौथे दिन बुधवार को कानपुर प्रांत के आयामों के साथ बैठक की. सबसे पहले कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि के कार्यकर्ताओं के साथ बैठक की तथा प्रान्त में गतिविधि के चल रहे कार्यों की जानकारी प्राप्त की. उन्होंने कहा कि कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि का कार्य छह बिन्दुओं के आधार पर चलता है, जिसमें भजन, भोजन, भवन, भाषा और भ्रमण है. यही हमारी संस्कृति दुनिया में मार्गदर्शन का केंद्र बिंदु रही है और भारत दुनिया में विश्व गुरु के स्थान पर रहा है.
सरसंघचालक ने कहा कि आज फिर विश्व में लोग भारत की रीति-नीति परंपरा संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं. अभी कुंभ में हमने यह दृश्य देखा कि हमारी संस्कृति संवेदना की है, हमारे परिवार की जो कल्पना है, वह सुरक्षित रहे, संस्कृति सुरक्षित बनी रहे, इसलिए परिवार की वह आत्मीयता की परंपरा बनी रहनी चाहिए. परिवार के लोग दिन में एक बार साथ मिलकर भोजन करें. परिवार के अंदर अपनी मातृ भाषा का प्रयोग हो, हमारी वेशभूषा हमारे संस्कारों को प्रदर्शित करने वाली हो. हमारा भवन ऐसा हो जो लगे यह एक आदर्श हिंदू घर है. हम स्वयंसेवक इन विषयों को लेकर समाज में बढ़ रहे हैं. समाज को आज इन विषयों की जानकारी की जागरुकता की आवश्यकता है. परिवार के लोगों में एक दूसरे के प्रति दायित्व की अनुभूति रहे, धीरे-धीरे यह विषय समाज में बढ़ता जाए और एक आदर्श कुटुंब की स्थापना होती जाए.
इस बैठक में कुटुम्ब प्रबोधन गतिविधि के कार्यकर्ताओं के अतिरिक्त अखिल भारतीय प्रचारक प्रमुख स्वांत रंजन, क्षेत्र प्रचारक अनिल, प्रांत प्रचारक श्रीराम, प्रान्त संघचालक भवानी भीख, प्रान्त प्रचार प्रमुख डॉक्टर अनुपम, विनोद शंकर आदि उपस्थित रहे.
दैनिक जीवन में रहे राष्ट्रभक्ति का भाव
पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के कार्यकर्ताओं से बातचीत करते हुए सरसंघचालक ने पहले पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के कानपुर प्रांत में हो रहे कार्यों की जानकारी प्राप्त की. बताया गया कि पर्यावरण संरक्षण गतिविधि के छः कार्य विभाग है. पहले शैक्षणिक संस्थान दूसरा धार्मिक संस्थान, तीसरा नारी शक्ति चौथा स्वयंसेवी संस्थान, पांचवा जन संवाद और छठा जनसंपर्क. सरसंघचालक ने कहा हमारे दैनिक जीवन में राष्ट्रभक्ति का भाव आना चाहिए. समाज में यह भाव निर्माण हो, यह मेरा देश है यहां पर उत्पन्न होने वाली बिजली हमारे देश की बिजली है, यहां का जल हमारे देश का जल है, जब अपने देश के प्रति अपनत्व का भाव होगा राष्ट्र प्रथम का भाव होगा तो हम छोटी-छोटी बातों पर भी विचार करेंगे. व्यर्थ में पानी बर्बाद तो नहीं हो रहा, व्यर्थ में बिजली का उपयोग तो नहीं हो रहा, सड़क पर जा रहे हैं कोई नल खुला है पानी बह रहा है. यह मेरा देश है इस देश में पानी बर्बाद तो नहीं होना चाहिए जब यह भाव हमारे मन में रहेगा तो हम रुक कर नल की टोटी को बंद करेंगे. हमारे घर में आने वाली सामग्री स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है कि नहीं यह विचार होना चाहिए. हमारे घर में स्वदेशी वस्तुएं आ रही है कि नहीं यह विचार होना चाहिए, धीरे-धीरे समाज में परिवर्तन आ रहा है परंतु अभी और आवश्यकता है. पर्यावरण गतिविधि के कार्यकर्ता स्वयं के साथ-साथ समाज के लिए प्रेरणा बने. संपूर्ण समाज के अंदर राष्ट्र प्रथम का विचार स्थापित हो जाएगा तो यह सब होना स्वभाविक हो जाएगा, हमें यही करना है.
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/ अजय सिंह
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