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भिंडी की उन्नत किस्म 'काशी सहिष्णु' का तकनीकी हस्तांतरण, किसानों को मिलेगा सीधा लाभ

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– केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान की उपस्थिति में समझौता, अब देशभर के किसान उठा सकेंगे फायदा

मीरजापुर, 17 जुलाई (Udaipur Kiran) । भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के 97वें स्थापना दिवस पर नई दिल्ली में आयोजित समारोह में सब्जी उत्पादक किसानों के लिए एक बड़ी सौगात दी गई। इस अवसर पर केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण व ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान और आईसीएआर के महानिदेशक डॉ. एमएल जाट की उपस्थिति में भिंडी की उन्नत किस्म ‘काशी सहिष्णु’ का तकनीकी हस्तांतरण किया गया।

यह समझौता आईआईवीआर अदलपुरा और पुणे स्थित एडोर सीड्स इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के बीच संपन्न हुआ। आईसीएआर की कंपनी एग्रीइनोवेट के सीईओ डॉ. प्रवीण मलिक की निगरानी में संपन्न हुए इस करार से अब देश की प्रमुख बीज उत्पादक कंपनी ‘काशी सहिष्णु’ किस्म के बीजों का उत्पादन कर उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पंजाब जैसे राज्यों के किसानों तक पहुंचा सकेगी।

समझौते के तहत आईआईवीआर के निदेशक डॉ. राजेश कुमार और कंपनी के प्रतिनिधियों के बीच तकनीकी दस्तावेजों का आदान-प्रदान किया गया। इस किस्म को विकसित करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. प्रदीप करमाकर ने बताया कि ‘काशी सहिष्णु’ (भीआरओ-111) किस्म को 2024 में ही चार राज्यों के लिए अनुशंसित किया गया है और यह भारत सरकार के राजपत्र अधिसूचना के तहत अधिसूचित भी हो चुकी है।

किसानों को क्या मिलेगा लाभ?

आईआईवीआर के निदेशक डॉ. राजेश कुमार ने बताया कि यह किस्म किसानों की उत्पादन लागत को घटाने और आय को 20-25 प्रतिशत तक बढ़ाने में सहायक होगी। रोग प्रतिरोधक होने के कारण कीटनाशकों की जरूरत कम पड़ेगी और बेहतर फल गुणवत्ता से बाजार में अधिक दाम भी मिलेंगे।

फसल उन्नयन विभाग के अध्यक्ष डॉ. नागेन्द्र राय के अनुसार, इस किस्म की लंबी फलन अवधि और आसान कटाई-पैकिंग से मजदूरी लागत में भी कमी आएगी, जिससे किसान पूरे सीजन में लगातार आय अर्जित कर सकेंगे।

डॉ. कुमार ने यह भी बताया कि कई अन्य बीज कंपनियों ने भी इस किस्म के लाइसेंस के लिए आवेदन किया है, जिस पर विचार किया जा रहा है। यह तकनीकी हस्तांतरण देशभर में गुणवत्तापूर्ण भिंडी उत्पादन और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधार की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा।

खासियत क्या है ‘काशी सहिष्णु’ में?

– यह किस्म मध्यम ऊंचाई (130-140 सेमी) की है, जिसमें छोटे इंटरनोड्स होते हैं।

– बुआई के 40-43 दिनों बाद पहले फूल आते हैं और 45-48 दिन में कटाई शुरू हो जाती है।

– फलन अवधि 110 दिन तक चलती है और उत्पादन 135-145 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होता है।

– यह किस्म येलो वेन मोज़ेक वायरस और एन्थेसन लीफ कर्ल वायरस के प्रति प्रतिरोधी है।

– गहरे हरे रंग के फल में बेसल रिंग नहीं बनती, जिससे कटाई आसान होती है।

– यह किस्म परंपरागत किस्मों से 20-23 प्रतिशत अधिक उपज देती है।

(Udaipur Kiran) / गिरजा शंकर मिश्रा

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