जम्मू, 24 अक्टूबर (Udaipur Kiran News) . यह कहानी है उस वीर सपूत की, जिसने 1947 में पाकिस्तान की कश्मीर हड़पने की साजिश को अपने साहस और रणनीति से नाकाम कर दिया. जम्मू से 35 किलोमीटर दूर बंगूना गांव (अब राजिंदरपुरा) में 14 जून 1899 को जन्मे ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह जम्वाल वंश के थे. वीरता उनके परिवार की परंपरा थी. उनके पूर्वज जनरल बाज सिंह ने चित्राल की रक्षा में बलिदान दिया था.
राजिंदर सिंह ने 1921 में जम्मू के प्रिंस ऑफ वेल्स कॉलेज से स्नातक कर राज्य बलों में कमीशन अधिकारी के रूप में भर्ती ली. समर्पण और कर्तव्यनिष्ठा के बल पर वे 1942 में ब्रिगेडियर के पद तक पहुंचे और 24 सितंबर 1947 को जम्मू-कश्मीर राज्य बलों के चीफ ऑफ स्टाफ बने. जब 21-22 अक्टूबर 1947 की रात पाकिस्तान ने उड़ी-मुजफ्फराबाद सेक्टर से कश्मीर पर हमला किया, तब ब्रिगेडियर राजिंदर सिंह ने मात्र 100 सैनिकों के साथ दुश्मन की 6000 सैनिकों की टुकड़ी को चार दिनों तक रोके रखा. उनके नेतृत्व ने महाराजा हरि सिंह को भारत संघ में शामिल होने का अवसर दिया और कश्मीर को बचा लिया.
27 अक्टूबर 1947 को लड़ते हुए उन्होंने सर्वोच्च बलिदान दिया. उनके अदम्य साहस और नेतृत्व के लिए उन्हें स्वतंत्र भारत का पहला वीरता पुरस्कार महावीर चक्र मरणोपरांत प्रदान किया गया. राष्ट्र आज भी उन्हें कश्मीर के उद्धारकर्ता के रूप में नमन करता है.
(Udaipur Kiran) / राहुल शर्मा
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