सावन का महीना भारतीय सनातन धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह महीना जहां भगवान शिव की उपासना के लिए प्रसिद्ध है, वहीं इसमें बुधवार का विशेष महत्व गणेश भक्तों के लिए भी होता है। खासकर सावन के पहले बुधवार को भगवान गणेश की पूजा करना शुभ फल देने वाला माना जाता है। इस दिन अगर श्रद्धा और नियमपूर्वक श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का पाठ किया जाए, तो जीवन के समस्त संकट दूर हो सकते हैं और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
क्यों है सावन में बुधवार का खास महत्व?
सावन का महीना आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर होता है। यह महीना जल, वायु और प्रकृति की शक्ति के साथ जुड़ा हुआ है। ऐसे में बुद्ध ग्रह से संबंधित दिन यानी बुधवार को भगवान गणेश की पूजा करने से बुद्धि, वाणी, व्यवसाय और स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं दूर होती हैं। मान्यता है कि इस दिन व्रत और पूजन से बुध ग्रह भी प्रसन्न होते हैं और गणेश जी की कृपा से हर कार्य में सफलता मिलती है।
श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् – संकटों से मुक्ति का मंत्र
हिंदू शास्त्रों में श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् को अत्यंत प्रभावशाली स्तोत्र माना गया है। इसमें भगवान गणेश के 12 प्रमुख नामों का स्मरण किया जाता है, जो व्यक्ति के जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में आने वाली बाधाओं को दूर करने की क्षमता रखते हैं।
यह 12 नाम हैं:
सुमुख – सुंदर मुख वाले
एकदंत – एक ही दांत वाले
कपिल – जटाजूट वाले, तपस्वी
गजकर्णक – हाथी जैसे कान वाले
लंबोदर – लंबे उदर (पेट) वाले
विकट – विकराल रूप वाले
विघ्नराज – विघ्नों के राजा
धूम्रवर्ण – धुएं के रंग वाले
गणाध्यक्ष – गणों के अधिपति
भालचंद्र – मस्तक पर चंद्रधारण करने वाले
विनायक – प्रमुख नायक
गणपति – समस्त गणों के स्वामी
इन नामों का जप और पाठ विशेषकर बुधवार और चतुर्थी के दिन करने से सभी विघ्न-बाधाएं समाप्त होती हैं और मनचाही सिद्धि प्राप्त होती है।
पूजा विधि
सावन के पहले बुधवार को प्रातः स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। फिर गणेश जी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीप जलाकर रोली, अक्षत, दूर्वा और मोदक अर्पित करें। इसके बाद "ॐ गं गणपतये नमः" मंत्र का 108 बार जप करें और फिर श्रद्धा भाव से श्री गणपति द्वादश नाम स्तोत्रम् का पाठ करें।
स्त्रोत का पाठ इस प्रकार करें:
"प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यं आयुःकामार्थसिद्धये॥
सुमुखश्च एकदंश्च कपिलो गजकर्णकः।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्नराजो गणाधिपः॥
धूम्रवर्णो भालचन्द्रो दशमः तू विनायकः।
एकादशं गणपतिः द्वादशं तू गजाननः॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसन्ध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं प्रभोः॥”_
लाभ और फल
इस स्तोत्र के पाठ से मानसिक शांति, एकाग्रता, और आत्मविश्वास बढ़ता है। विद्यार्थियों को शिक्षा में सफलता मिलती है, नौकरी और व्यवसाय में उन्नति होती है, और पारिवारिक कलह व कोर्ट-कचहरी जैसे मामलों से छुटकारा मिलता है। खासकर यदि कोई जातक राहु, केतु या बुध दोष से पीड़ित हो तो उसके लिए यह पाठ अत्यंत लाभकारी होता है।
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