अजमेर शरीफ दरगाह यानि मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार भारत में सिर्फ मुसलमानों के लिए ही नहीं बल्कि हर धर्म के लोगों के लिए एक पवित्र स्थान है। अजमेर शरीफ दरगाह भारत के राजस्थान राज्य के अजमेर शहर में स्थित है, जिसकी विश्व स्तर पर काफी मान्यता है। सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के बारे में कहा जाता है कि उनके पास कई अद्भुत शक्तियां थीं, जिसके कारण आज भी दूर-दूर से लोग उनकी दरगाह पर दुआ मांगने आते हैं। अजमेर शरीफ दरगाह के बारे में कहा जाता है कि जो भी यहां सच्चे दिल से कुछ भी मांगता है, उसकी दुआ जरूर कबूल होती है। ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह राजस्थान का सबसे प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है।
मोइनुद्दीन चिश्ती एक ऐसे महान सूफी संत थे जिन्होंने अपना पूरा जीवन गरीबों और दलितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया। इस दरगाह की मान्यता के कारण ही यहां हर साल लाखों लोग आते हैं। आज हम अजमेर शरीफ दरगाह और ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती के इतिहास के बारे में जानेंगे।
अजमेर शरीफ दरगाह गरीब नवाज मोइनुद्दीन चिश्ती की मजार के कारण सद्भाव और आध्यात्मिकता का एक आदर्श प्रतीक है। यह स्थान शांति चाहने वालों के लिए एक आदर्श स्थान है। जब ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती 114 वर्ष के हुए, तो उन्होंने प्रार्थना करने के लिए छह दिनों तक खुद को इस स्थान पर बंद कर लिया और अपना शरीर त्याग दिया, जिसके बाद उन्हें यहीं दफनाया गया और इस पवित्र दरगाह का निर्माण किया गया। हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती को भारत में इस्लाम के संस्थापक और पूरी दुनिया में इस्लाम के महान प्रचारक के रूप में भी जाना जाता है। इसके साथ ही हजरत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती अपने महान उपदेश और सामाजिक कार्यों के लिए भी जाने जाते हैं। वे फारस से भारत आए और कुछ समय तक लाहौर में रहे और उसके बाद अजमेर शहर में बस गए। 1236 में उनकी मृत्यु हो गई और तब से लोग अपनी मुरादें मांगने के लिए उनकी कब्र पर आते हैं। मान्यता है कि जो भी इस दरगाह में सच्चे मन से कुछ भी मांगता है, उसकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
अजमेर शरीफ दरगाह का निर्माण मुगलों ने करवाया था, इसलिए यह मुगल शैली की समृद्ध वास्तुकला का उत्कृष्ट उदाहरण है। अजमेर दरगाह का निर्माण इल्तुतमिश ने शुरू कराया था और हुमायूं के शासनकाल में पूरा हुआ था। अजमेर शरीफ के मुख्य द्वार को निजाम गेट कहा जाता है क्योंकि इसे 1911 में हैदराबाद राज्य के तत्कालीन निजाम मीर उस्मान अली खान ने बनवाया था। इस गेट को पार करने के बाद आप मुगल सम्राट शाहजहाँ द्वारा बनवाए गए शाहजहानी गेट को पार करेंगे। दरगाह में बुलंद दरवाजा नामक एक विशाल द्वार से प्रवेश किया जाता है। इसका निर्माण सुल्तान महमूद खिलजी ने करवाया था और हर साल उर्स के मौके पर इस द्वार पर झंडा फहराकर उर्स समारोह की शुरुआत की जाती है। महान सूफी संत हजरत ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की कब्र के ऊपर एक गुंबददार कक्ष बनाया गया है दरगाह के बाहर एक छोटा सा बाजार है, जहां से सभी जायरीन चादर खरीदते हैं। आप दरगाह शरीफ में औलिया मस्जिद, दरगाह दरगाह, जामा मस्जिद और महफिलखाना भी देख सकते हैं।
अजमेर में सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह पर दुनिया का सबसे बड़ा बर्तन मौजूद है, जिसे बड़ी देग कहते हैं। यह बड़ी देग मुगल बादशाह अकबर ने एक मुराद पूरी होने पर दरगाह को भेंट की थी। इस बड़ी देग में 120 मन यानी अड़तालीस सौ किलो चावल एक साथ पकाया जाता है। इसके साथ ही एक और ऐसी देग है जिसे छोटी देग के नाम से जाना जाता है, जिसमें एक बार में 60 मन चावल पकाया जाता है। छोटी देग मुगल बादशाह जहांगीर ने बनवाकर इस दरगाह को भेंट की थी। दरगाह में बुलंद दरवाजे के पास एक तरफ बड़ी देग और दूसरी तरफ छोटी देग बनी हुई है। चूंकि दरगाह पर सभी धर्मों और जातियों के लोग आते हैं, इसलिए इन दो देगों में केवल शाकाहारी भोजन यानी मीठे चावल ही पकाए जाते हैं। इसके साथ ही जायरीन अपनी आस्था और क्षमता के अनुसार कई अन्य प्रकार के व्यंजन भी इन देगों में पकवाते हैं, लेकिन इनमें मांसाहारी भोजन या लहसुन-प्याज का इस्तेमाल कभी नहीं किया जाता।
सूफी संत मोइनुद्दीन चिश्ती के शरीर को त्यागने के बाद से यहां इस्लामी चंद्र कैलेंडर के सातवें महीने में हर साल ‘उर्स’ उत्सव छह दिनों के लिए आयोजित किया जाता है। दरगाह का मुख्य द्वार जो रात में बंद रहता है उसे इस उत्सव के दौरान 6 दिनों के लिए दिन और रात में खुला रखा जाता है। जो भी लोग इस पवित्र दरगाह की यात्रा करना चाहते हैं वे लोग उर्स त्योहार के दौरान अजमेर की यात्रा कर सकते हैं। अजमेर शरीफ जाने का सबसे अच्छा समय अक्टूबर से मार्च तक है। इस दौरान दरगाह में उर्स के मेले का आयोजन किया जाता है और दरगाह को शानदार ढंग से सजाया जाता है। अजमेर दरगाह सर्दियों में सुबह 05:00 से रात 10:00 तक और गर्मियों में सुबह 4:00 से रात 10:00 तक तीर्थ यात्रियों के लिए खुली रहती है।
अजमेर शरीफ दरगाह जाने के लिए आप हवाई मार्ग, ट्रेन और सड़क मार्ग में से किसी का भी चुनाव कर सकते है। दरगाह अजमेर शहर से 2 किमी की दूरी पर स्थित है, जहां बसों और कैब की मदद से पहुंचा जा सकता है। हवाई मार्ग से यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम हवाई अड्डा करीब 135 किलोमीटर की दूरी पर स्थित जयपुर का सांगानेर एयरपोर्ट है। रेल मार्ग यहां पहुंचने के लिए सबसे निकटतम रेलवे स्टेशन करीब 1 किलोमीटर की दूरी पर स्थित अजमेर जंक्शन रेलवे स्टेशन है। इसके साथ ही सड़क मार्ग से यहां पहुंचने के लिए आप देश के किसी भी हिस्से से बस या कैब ले सकते हैं।
You may also like
New 50 Indian Currency: 50 रुपये के नोट को लेकर बड़ी अपडेट, जल्द आएगा नया नोट 〥
आयुष म्हात्रे सीएसके के लिए बेहतरीन खोज, अगले साल के लिए आत्मविश्वास देगी यह पारी : अंबाती रायडू
योग गुरु बाबा शिवानंद का 128 साल की उम्र में निधन, 2022 में पद्म श्री से हुए थे सम्मानित..
23वीं कुमार सुरेंद्र सिंह मेमोरियल शूटिंग चैंपियनशिप में सेना के शूटर्स का दबदबा
श्रीनगर एयरपोर्ट से हज यात्रियों का पहला जत्था रवाना, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा ने दिखाई हरी झंडी