राजस्थान की लोक आस्थाओं में सबसे पूजनीय और लोकप्रिय नामों में से एक हैं बाबा रामदेव जी, जिन्हें रामसा पीर के नाम से भी जाना जाता है। वे सिर्फ एक धार्मिक संत नहीं, बल्कि सामाजिक समरसता, दलित उत्थान और मानवीय मूल्यों के प्रतीक हैं। हिंदू और मुस्लिम दोनों समुदायों में उनकी गहरी श्रद्धा है। यही कारण है कि वे आज भी लोक देवता के रूप में पूजे जाते हैं।
रामदेव जी का जन्म और जीवनरामदेव जी का जन्म 1352 ईस्वी में राजस्थान के पोकरण (जैसलमेर) ज़िले के रुणिचा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजमल जी तंवर और माता का नाम मैणादे देवी था। बचपन से ही रामदेव जी में अलौकिक शक्तियाँ थीं। वे लोगों की मदद करते, रोगियों का उपचार करते और ज़रूरतमंदों की सहायता करते।
समरसता और समानता का संदेशरामदेव जी ने जीवन भर जात-पात, ऊँच-नीच, भेदभाव के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने हरिजनों, दलितों और मुस्लिम फकीरों को अपने साथ भोजन करने का अधिकार दिया, जो उस समय एक बहुत ही साहसी और क्रांतिकारी कदम था। वे कहते थे –
"जात न पूछो साधु की, पूछ लीजिए ज्ञान,
मोल करो तलवार का, पड़ा रहन दो म्यान।"
रामदेव जी को मुस्लिम समुदाय में रामसा पीर के रूप में पूजा जाता है। ऐसा कहा जाता है कि पाँच पीर उन्हें अजमेर से मिलने आए थे और उनके चमत्कारों से प्रभावित होकर उन्हें 'पीर' की उपाधि दी। रामदेव जी ने उन्हें यहीं रहने को कहा, और उनकी कब्रें आज भी रामदेवरा में मौजूद हैं।
रामदेवरा मेला: आस्था का संगमहर साल भाद्रपद शुक्ल द्वितीया से दशमी तक रामदेवरा (जैसलमेर) में विशाल मेला लगता है। लाखों श्रद्धालु राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि पाकिस्तान से पैदल यात्रा करके दर्शन करने आते हैं। इस यात्रा को "पदल यात्रा" कहा जाता है। भक्त 'राम-राम' का जयघोष करते हुए कीर्तन और भजन के साथ मंदिर पहुंचते हैं।
भजन और लोकगीतों में अमररामदेव जी की महिमा पर आधारित कई लोकभजन और गीत राजस्थान की संस्कृति का अहम हिस्सा हैं।
प्रसिद्ध भजन है:
"ठाकर जी रे मंदिर में, दिया बाती जला रे..."
इन भजनों में आस्था, भक्ति और भावनात्मक जुड़ाव देखने को मिलता है।
रामदेव जी ने जो जीवन मूल्यों का संदेश दिया – समानता, सेवा, सद्भाव और श्रद्धा, वो आज के समाज में और भी ज़रूरी हो गया है। वे कहते थे:
"भक्ति में शक्ति है और सेवा में ही सच्चा धर्म है।"
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