देश में मंदिर-मस्जिद को लेकर विवाद चल रहा है। मथुरा, अयोध्या राम मंदिर, काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में बने विवादास्पद ज्ञानवापी भवन के बाद, ढाई दिन के झोपड़े को लेकर भी विवाद लंबे समय से चल रहा है। अढ़ाई दिन का झोपड़ा नामक इस मस्जिद का विवाद क्या है, यह जानने से पहले आइए इस मस्जिद के इतिहास और महत्व के बारे में जान लेते हैं।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक प्रसिद्ध स्मारक है जो अजमेर की सबसे पुरानी मस्जिद है। यह मस्जिद भारतीय उपमहाद्वीप की इंडो-इस्लामिक वास्तुकला को दर्शाती है। ऐसा कहा जाता है कि यह मूल रूप से एक भारतीय इमारत थी जिसे सल्तनत राजवंश के दौरान एक इस्लामी संरचना में परिवर्तित कर दिया गया था। इस मस्जिद परिसर में हिंदू, इस्लामी और जैन वास्तुकला का मिश्रण देखने को मिलता है।
अढ़ाई दिन का झोपड़ा कब बना था?
'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' का निर्माण कुतुबुद्दीन ऐबक ने 1192 ईस्वी में अफगान सेनापति मोहम्मद गोरी के कहने पर करवाया था। कहा जाता है कि यह स्थान कोई मस्जिद नहीं, बल्कि एक विशाल संस्कृत विद्यालय और मंदिर था, जिसे बाद में ध्वस्त कर मस्जिद में परिवर्तित कर दिया गया। अढ़ाई दिन के झोपड़े के मुख्य द्वार के बाईं ओर एक संगमरमर का शिलालेख भी है, जिसमें संस्कृत में उस विद्यालय का उल्लेख है।
कुछ लोगों का मानना है कि अढ़ाई दिन का झोपड़ा एक जैन मंदिर है और इसका निर्माण छठी शताब्दी में सेठ वीरमदेव काला ने करवाया था। हालाँकि, अन्य शिलालेखों से पता चलता है कि चौहान वंश के दौरान यह एक संस्कृत महाविद्यालय हुआ करता था। मुहम्मद गोरी और उसके गुलाम कुतुबुद्दीन ऐबक ने अजमेर पर कब्ज़ा कर लिया और इसकी संरचना को मस्जिद में बदल दिया। तब से इसे मस्जिद के रूप में जाना जाता है।
800 साल पुरानी है मस्जिद
यह मस्जिद लगभग 800 साल पुरानी है। ऐसा माना जाता है कि इसके पीछे एक लंबा और बेहद विवादास्पद इतिहास है। कुछ इतिहासकारों का कहना है कि पहले यह एक विशाल संस्कृत महाविद्यालय हुआ करता था, जहाँ सभी आधुनिक विषय संस्कृत में पढ़ाए जाते थे। इसके बाद, अफ़ग़ानिस्तान के शासक मोहम्मद गोरी जब भ्रमण कर रहे थे, तो यहाँ से निकले थे। उनके आदेश पर, जनरल कुतुबुद्दीन ऐबक ने संस्कृत महाविद्यालय को हटाकर उसकी जगह एक मस्जिद बनवाई।
इस मस्जिद का डिज़ाइन हेरात के अबू बक्र ने तैयार किया था, और हिंदू राजमिस्त्रियों और मजदूरों ने इस अलंकृत संरचना का निर्माण किया और भारतीय स्थापत्य कला की विशेषताओं को बरकरार रखा। दिल्ली के अगले उत्तराधिकारी शमशुद्दीन इल्तुतमिश ने सल्तनत काल के दौरान इस मस्जिद का सौंदर्यीकरण और संवर्धन किया। अढ़ाई दिन का झोपड़ा 1947 तक मस्जिद के रूप में ही जाना जाता था, लेकिन यह आज भी विवादित है।
इस मस्जिद का नाम कैसे पड़ा?
राजस्थान के अजमेर स्थित विश्व प्रसिद्ध मस्जिद 'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' का इतिहास भी बेहद रोचक माना जाता है। कई लोग यह जानने की कोशिश करते रहते हैं कि इसका नाम इतना अलग क्यों है। आइए जानते हैं कि इसका यह नाम कैसे पड़ा। लोककथाओं के अनुसार, मुहम्मद गोरी ने अजमेर से गुजरते समय इस पहले से मौजूद इमारत को देखा था। उसने कुतुबुद्दीन ऐबक को 60 घंटे के भीतर इस इमारत को मस्जिद में बदलने का आदेश दिया, जिसमें केवल ढाई दिन लगे, इसलिए इस मस्जिद का नाम 'ढाई दिन का झोपड़ा' पड़ा।
इस नाम के पीछे का इतिहास
'अढ़ाई दिन का झोपड़ा' नामक एक लंबी कहानी कही जाती है। माना जाता है कि गोरी ने अपने सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक को इसे मस्जिद का सबसे सुंदर स्थल बनाने का आदेश दिया था। गोरी ने इसके लिए 60 घंटे यानी ढाई दिन का समय दिया था। अब ढाई दिन में पूरी इमारत को गिराना आसान नहीं था, इसलिए इसमें कुछ बदलाव करके इसे मस्जिद का रूप दिया गया ताकि वहाँ नमाज़ अदा की जा सके। तब से इसे अढ़ाई दिन का झोपड़ा या 'ढाई दिन का झोपड़ा' कहा जाने लगा।
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