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क्या नए वक्फ कानून पर लग जाएगी रोक? जानें सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान मुस्लिम पक्ष के वकीलों ने दीं क्या-क्या दलीलें

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सुप्रीम कोर्ट ने आज वक्फ अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर बड़ा फैसला सुनाया। मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने स्पष्ट किया है कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है। इससे पहले 22 मई को तीन दिनों की लगातार सुनवाई के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया था। पिछली सुनवाई में याचिकाकर्ताओं ने वक्फ अधिनियम को मुसलमानों के अधिकारों के विरुद्ध बताते हुए इस पर अंतरिम रोक लगाने की मांग की थी। वहीं, केंद्र सरकार ने अधिनियम को वैध बताते हुए इसके पक्ष में दलीलें दी थीं। कोर्ट के अंतरिम आदेश से मुस्लिम पक्ष को आंशिक राहत मिली है।

सुप्रीम कोर्ट का आदेश तीन अहम मुद्दों पर केंद्रित था।

पहला - क्या सुनवाई पूरी होने तक वक्फ संपत्तियों को गैर-अधिसूचित किया जा सकता है? दूसरा - वक्फ बोर्ड की संरचना से जुड़ा सवाल, जिसमें कहा गया था कि पदेन सदस्यों को छोड़कर सभी सदस्य मुस्लिम होने चाहिए। तीसरा - कलेक्टर की जाँच के दौरान संपत्ति को वक्फ संपत्ति न मानने से जुड़ा मुद्दा।

सुप्रीम कोर्ट ने इन मुद्दों पर स्पष्ट किया कि कानून पर रोक लगाने का कोई कारण नहीं है और इन सवालों पर आगे की सुनवाई में विस्तार से विचार किया जाएगा।

  • पहला बड़ा आदेश यह है कि अब ज़िला कलेक्टर यह तय नहीं कर पाएँगे कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं। अदालत का मानना था कि कलेक्टर को यह अधिकार देने से मनमानी और विवाद पैदा हो सकते हैं।
  • दूसरा, सुप्रीम कोर्ट ने उस प्रावधान पर रोक लगा दी है जिसमें कहा गया था कि कम से कम पाँच साल से मुस्लिम धर्म का पालन करने वाला व्यक्ति ही वक्फ बनवा सकता है। अदालत ने इसे भेदभावपूर्ण और मनमाना बताते हुए लागू करने से इनकार कर दिया।
  • तीसरा, अदालत ने वक्फ बोर्ड और परिषद में गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति के प्रावधान पर भी रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह व्यवस्था तब तक स्थगित रहेगी जब तक सरकार इस पर कोई ठोस नियम नहीं बना देती।
यह वाकई एक अच्छा फैसला है: कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी

कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने कहा, "यह वाकई एक अच्छा फैसला है। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की साजिश और इरादों पर रोक लगा दी है। जिन लोगों ने ज़मीन दान की थी, उन्हें डर था कि सरकार उनकी ज़मीन हड़पने की कोशिश करेगी। यह उनके लिए राहत की बात है... सरकार कैसे तय करेगी कि कौन 5 साल से किस धर्म का पालन कर रहा है? यह आस्था का मामला है... सरकार ने इन सभी पहलुओं पर विचार किया है... हम लड़ाई जारी रखेंगे..."

मौलाना शहाबुद्दीन रज़वी बरेलवी ने वक्फ संशोधन विधेयक पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले का समर्थन किया। मौलाना ने कहा कि हमें सुप्रीम कोर्ट से ऐसे ही फैसले की उम्मीद थी। अब वक्फ की ज़मीनों पर भू-माफियाओं का कब्ज़ा हटेगा और इससे होने वाली आय गरीब और कमज़ोर मुसलमानों के उत्थान पर खर्च की जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के 10 अहम बिंदु
  • पूरे वक्फ कानून पर रोक नहीं: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पूरे कानून पर रोक लगाने का कोई आधार नहीं है, केवल दुर्लभतम मामलों में ही हस्तक्षेप किया जाना चाहिए।
  • 5 साल तक इस्लाम का पालन करने का प्रावधान समाप्त: न्यायालय ने धारा 3 (R) के तहत उस शर्त को अस्थायी रूप से समाप्त कर दिया है जिसके तहत किसी व्यक्ति को 5 साल तक इस्लाम का पालन करना आवश्यक था।
  • राज्य सरकार को नियम बनाने का आदेश: न्यायालय ने कहा कि यह प्रावधान तब तक लागू नहीं होगा जब तक राज्य सरकारें इस पर स्पष्ट नियम नहीं बनातीं।
  • कलेक्टर की शक्ति समाप्त: धारा 3 (C) के तहत, सर्वोच्च न्यायालय ने कलेक्टर की उस शक्ति पर रोक लगा दी है जिसके तहत वह यह तय कर सकता था कि कोई संपत्ति वक्फ है या नहीं।
  • शक्तियों का पृथक्करण: न्यायालय ने कहा कि कलेक्टर को यह शक्ति देना शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत के विरुद्ध है।
  • संपत्ति से बेदखली नहीं: जब तक न्यायाधिकरण या न्यायालय अंतिम निर्णय नहीं ले लेता, तब तक किसी भी वक्फ संपत्ति से किसी को भी बेदखल नहीं किया जाएगा।
  • तृतीय पक्ष के अधिकारों पर प्रतिबंध: विवाद के समाधान तक वक्फ संपत्ति पर किसी भी तृतीय पक्ष के अधिकार का सृजन नहीं किया जा सकता।
  • गैर-मुस्लिम सदस्यों की सीमा तय: केंद्रीय वक्फ परिषद में 4 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य और राज्य वक्फ बोर्ड में 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्य नहीं होंगे।
  • पंजीकरण पर कोई प्रतिबंध नहीं: न्यायालय ने माना कि वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण 1995 से चल रहा है और यह कोई नई आवश्यकता नहीं है। केवल कुछ समय-सीमाओं में बदलाव किया गया है।
  • मुख्य कार्यकारी अधिकारी की नियुक्ति पर सुझाव: न्यायालय ने राज्य वक्फ बोर्ड के मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में किसी गैर-मुस्लिम व्यक्ति की नियुक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया, बल्कि कहा कि जहाँ तक संभव हो, एक मुस्लिम व्यक्ति की नियुक्ति की जानी चाहिए।
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