अहंकार, जो एक मानसिक स्थिति है, मानव जीवन का सबसे बड़ा शत्रु बनकर उभरता है। यह वह शक्ति है जो व्यक्ति को उसकी असली पहचान से दूर कर देती है, और उसे दूसरों से अलग, श्रेष्ठ और अद्वितीय महसूस कराती है। ओशो, जिनका असली नाम रजनीश था, ने हमेशा कहा है कि अहंकार एक दीवार की तरह है, जो इंसान को उसकी आंतरिक सच्चाई और शांति से अलग कर देती है। ओशो के अनुसार, अहंकार का जागरण एक स्वाभाविक प्रक्रिया है, लेकिन यह तब तक हानिकारक नहीं होता जब तक इसे पहचाना और नियंत्रित नहीं किया जाता। जब अहंकार अत्यधिक बढ़ जाता है, तो यह न केवल व्यक्ति के मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है, बल्कि सामाजिक और पारिवारिक संबंधों में भी दरार डालता है। आइए ओशो के दृष्टिकोण से अहंकार के उदय, इसके दुष्प्रभाव और इससे बचने के उपायों पर चर्चा करें।
अहंकार का जन्म और इसके कारण
ओशो के अनुसार, अहंकार तब जन्म लेता है जब व्यक्ति अपनी असली पहचान से दूर होकर बाहरी पहचान बनाने की कोशिश करता है। यह पहचान अक्सर समाज, परिवार, शिक्षा या व्यक्तिगत अनुभवों से निर्मित होती है। बचपन में ही यह भावना विकसित होती है कि वह दूसरों से अलग है, और यह सोच धीरे-धीरे अहंकार का कारण बनती है। ओशो ने कहा, "अहंकार उस 'मैं' की कल्पना है, जो वास्तविकता से पूरी तरह परे होता है।" जब व्यक्ति अपने आत्म-मूल्य को बाहरी मानकों से जोड़ता है, जैसे धन, शोहरत, शिक्षा या सामाजिक स्थिति, तो वह अपने असली अस्तित्व से दूर चला जाता है। ओशो ने यह भी कहा कि अहंकार का मूल कारण आत्म-सम्मान की कमी और दूसरों की स्वीकृति की आवश्यकता होती है। जब व्यक्ति अपनी वास्तविकता को समझने के बजाय एक झूठी पहचान को अपनाता है, तो यही अहंकार उसके जीवन में प्रवेश करता है।
अहंकार के नुकसान 1. आत्मनिर्भरता की कमी
अहंकार व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनने से रोकता है। जब कोई व्यक्ति अपने अहंकार को जीवन का आधार मानता है, तो वह हमेशा दूसरों से तुलना करता रहता है और उनके अनुमोदन की प्रतीक्षा करता है। ओशो के अनुसार, यह मानसिक स्थिति इंसान को अपनी वास्तविक ताकत और क्षमता को पहचानने से रोकती है। आत्मनिर्भरता की बजाय, वह हमेशा दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा में उलझा रहता है, जो अंततः उसे आत्मिक शांति से दूर कर देता है।
2. समाज और रिश्तों में विघटन
अहंकार से भरा व्यक्ति दूसरों को अपनी बराबरी पर नहीं मानता। वह अपने से कमतर व्यक्तियों से संवाद करने में असहज महसूस करता है, और यही भावना रिश्तों में दरार डालती है। ओशो का कहना था, "जब आप अहंकार के साथ किसी से मिलते हैं, तो आप हमेशा अपने स्वार्थ में खोए रहते हैं, और इस वजह से, आप सच्चे संबंध नहीं बना पाते।" रिश्तों में अहंकार एक दीवार की तरह होता है, जो प्रेम, समझ और सहानुभूति के रास्ते में खड़ा हो जाता है।
3. मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर प्रभाव
अहंकार का बढ़ना मानसिक तनाव और चिंता का कारण बनता है। जब व्यक्ति खुद को दूसरों से बेहतर साबित करने के लिए लगातार संघर्ष करता है, तो यह उसे मानसिक थकान, घबराहट, अवसाद और आत्मविश्वास की कमी का शिकार बना सकता है। ओशो के अनुसार, अहंकार के कारण उत्पन्न होने वाले तनाव से शारीरिक स्वास्थ्य पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। दिल की बीमारियां, उच्च रक्तचाप और अनिद्रा जैसी समस्याएं इस मानसिक स्थिति के परिणामस्वरूप उत्पन्न हो सकती हैं।
4. आध्यात्मिक पतन
अहंकार इंसान को अपनी आंतरिक शांति और आध्यात्मिकता से दूर कर देता है। ओशो का मानना था कि अहंकार एक ऐसा अवरोध है, जो ध्यान और आत्म-जागरूकता के मार्ग में सबसे बड़ी रुकावट डालता है। जब मनुष्य अपने अहंकार से बाहर निकलकर ध्यान में लीन होता है, तभी उसे अपने असली अस्तित्व का एहसास होता है। ओशो ने कहा, "आपका अहंकार ही वह दीवार है, जो आपको आपके भीतर के स्वभाव से दूर करता है।"
अहंकार से बचने के उपाय 1. स्वयं को पहचानना
ओशो के अनुसार, अहंकार से बचने का सबसे पहला कदम खुद को पहचानना है। जब तक हम खुद को समझेंगे नहीं, तब तक हम अहंकार को अपने जीवन का हिस्सा बनाए रहेंगे। आत्म-विश्लेषण और आत्म-जागरूकता के माध्यम से ही हम अपने भीतर के सच को पहचान सकते हैं। ओशो का कहना था, "आप अपने अहंकार को तब तक नहीं समझ सकते जब तक आप अपनी असल पहचान को न जान लें।"
2. ध्यान का अभ्यास
ओशो के अनुसार, ध्यान सबसे प्रभावी तरीका है अहंकार से मुक्त होने का। ध्यान व्यक्ति को अपने भीतर की शांति से जोड़ता है और अहंकार को समाप्त करने में मदद करता है। ध्यान के माध्यम से हम अपने मन को शांत करते हैं और अपने असली अस्तित्व को महसूस करते हैं। ओशो का मानना था कि जब हम पूरी तरह से ध्यान में होते हैं, तो अहंकार अपनी सारी शक्ति खो देता है और हम अपनी सच्चाई के करीब पहुंच जाते हैं।
3. नम्रता और विनम्रता अपनाएं
अहंकार से बचने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण है नम्रता। ओशो के अनुसार, जब हम अपने भीतर विनम्रता और सम्मान को स्थान देते हैं, तो अहंकार स्वतः कम होने लगता है। नम्रता का मतलब दूसरों के साथ सम्मान और सहानुभूति से पेश आना है, न कि खुद को उनसे श्रेष्ठ मानना। ओशो कहते थे, "नम्रता ही वह रास्ता है, जो अहंकार के जाल से बाहर निकलने में मदद करता है।"
4. अपरिपक्वता को पहचानना
अहंकार का दूसरा तरीका है अपरिपक्वता को समझना। ओशो का कहना था कि जब हम समझते हैं कि हम पूरी तरह से विकसित नहीं हैं, तो हम अपने अहंकार को स्वीकार करते हैं और उसे नियंत्रित करना शुरू कर देते हैं। यह स्वीकृति हमें अहंकार को खत्म करने में मदद करती है और हमें वास्तविक ज्ञान की ओर ले जाती है।
निष्कर्ष
अहंकार एक ऐसा अवरोध है जो इंसान को उसकी असली पहचान से दूर कर देता है। ओशो के अनुसार, यह मनुष्य के भीतर एक काल्पनिक पहचान उत्पन्न करता है, जो उसके जीवन में मानसिक और भावनात्मक समस्याओं का कारण बनती है। अहंकार से बचने के लिए, ओशो ने हमें आत्म-जागरूकता, ध्यान और विनम्रता को अपनाने का सुझाव दिया। जब हम अपने अहंकार को नियंत्रित करते हैं और अपनी असल पहचान को समझते हैं, तो हम मानसिक शांति और सच्चे सुख की ओर बढ़ते हैं।
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