बैंकॉक। पीएम नरेंद्र मोदी थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में बिम्सटेक के शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने वाले हैं। बिम्सटेक की शिखर बैठक 2 दिन तक होगी। शुक्रवार को बिम्सटेक की बैठक में हिस्सा लेने के बाद पीएम मोदी भारत लौटते वक्त पड़ोसी देश श्रीलंका भी जाएंगे। भारत के लिए बिम्सटेक का बहुत महत्व है। बिम्सटेक यानी बे ऑफ बेंगॉल इनिशिएटिव फॉर मल्टी सेक्टोरल टेक्निकल एंड इकोनॉमिक कोऑपरेशन। बिम्सटेक की शिखर बैठक में सदस्य देश बैंकॉक विजन 2030 को मंजूरी दे सकते हैं। साथ ही संगठन के सदस्य देशों के बीच समुद्र के जरिए सहयोग को बढ़ावा देने का फैसला भी कर सकते हैं।
बिम्सटेक की शिखर बैठक के बारे में विदेश मंत्रालय ने कहा है कि संगठन के सदस्य देशों के नेता सहयोग बढ़ाने के लिए उठाए जाने वाले कदमों पर बातचीत करेंगे। इस साल बिम्सटेक शिखर बैठक की थीम ‘प्रोएक्टिव, रेजिलिएंट एंड ओपन बिम्सटेक’ यानी सक्रिय, लचीला और खुला बिम्सटेक रखा गया है। बैंकॉक विजन 2030 के जरिए बिम्सटेक देशों के बीच सहयोग और इलाके में शांति, स्थिरता और अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए दिशा तय की जाएगी। साथ ही बिम्सटेक के सदस्य देश जलवायु परिवर्तन के असर और इससे निपटने के उपायों पर भी चर्चा करने वाले हैं।
भारत और थाईलैंड के अलावा बिम्सटेक के सदस्य देशों में बांग्लादेश, श्रीलंका, नेपाल, भूटान और म्यांमार हैं। इन सभी देशों के शासनाध्यक्ष और राष्ट्राध्यक्ष बिम्सटेक की बैठक में हिस्सा लेने वाले हैं। बिम्सटेक की स्थापना साल 1997 में क्षेत्रीय सहयोग के लिए हुई थी। इसे पहले बीआईएसटी-ईसी नाम दिया गया था। साल 1997 में बिम्सटेक में म्यांमार को शामिल किया गया था। जबकि, साल 2004 में भूटान और नेपाल बिम्सटेक के सदस्य बने थे। साल 2014 में बिम्सटेक की तीसरी शिखर बैठक हुई थी। जिसके बाद बांग्लादेश की राजधानी ढाका में बिम्सटेक का सचिवालय खोला गया था। बिम्सटेक के देश व्यापार, तकनीकी, ऊर्जा, परिवहन, पर्यटन और मत्स्य उद्योग पर सहयोग करते हैं। साल 2008 के बाद बिम्सटेक के देश कृषि, स्वास्थ्य, गरीबी उन्मूलन, आतंकवाद से जंग, पर्यावरण, संस्कृति, सदस्य देशों की जनता के बीच मेलजोल को भी बढ़ावा देने लगे। भारत ने हमेशा कहा है कि बिम्सटेक उसकी नेबरहुड फर्स्ट यानी प्रथम पड़ोसी, एक्ट ईस्ट और सागरमाला नीति का दिल है।
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