काबुल/इस्लामाबाद: पाकिस्तान और अफगान तालिबान कई दिनों की हिंसक झड़प के बाद संघर्ष रोकने पर सहमत हो गए हैं। शनिवार देर रात कतर की राजधानी दोहा में पाकिस्तान और अफगानिस्तान के रक्षा मंत्रियों के बीच हुई बातचीत में युद्धविराम पर सहमति बनी। इस बैठक की मध्यस्थता कतर और तुर्की ने की थी। इस समझौते की जानकारी सामने आने के बाद तालिबान के सबसे बड़े दुश्मन ने इसे पाकिस्तान की चाल बताया है और कहा कि कंधार से संचालित होने वाला तालिबान शिकंजे में फंस गया है। अगस्त 2021 में काबुल की सत्ता पर तालिबान के कब्जे से पहले अफगानिस्तान के उपराष्ट्रपति अमरुल्लाह सालेह ने दोहा बैठक पर प्रतिक्रिया दी है।
सालेह ने बताई तालिबान की मजबूरी
एक्स पर एक पोस्ट में पूर्व अफगान राष्ट्रपति सालेह ने लिखा, 'तालिबान दोहा में पाकिस्तान के साथ बातचीत से इनकार नहीं कर सकता था, न ही कोई पूर्व शर्तें थोप सकता था।' उन्होंने अखुंदजादा के कंधार मूल के चलते तालिबान को कंधारी तालिबान कहकर संबोधित किया और कहा कि 'पाकिस्तान का जाल इसी तरह काम करता है। अगर कंधारी तालिबान ने बातचीत में टीटीपी का प्रतिनिधित्व किया है तो उसे (टीटीपी) खत्म करने के लिए पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करना होगा। अगर कंधारी तालिबान ने दोहा वार्ता में टीटीपी का प्रतिनिधित्व नहीं किया है तो उन्हें उसे हराने के लिए पाकिस्तान की सेना के साथ मिलकर काम करना होगा।'
सालेह ने कहा कि पाकिस्तान ने इस दावे का सफलता से अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया है कि अफगान तालिबान अपनी इच्छा से या ताकत की कमी के कारण आतंकवादियों को पनाह देता है। उन्होंने इस समझौते में तुर्की के होने का जिक्र किया और कहा कि इसे किसी भी तरह से लागू करना तालिबान के लिए एक कूटनीतिक आपदा साबित होगा।
बैठक में टीटीपी की गैरमौजूदगी पर सवाल
सालेह ने दोहा बैठक में टीटीपी की अनुपस्थिति का मुद्दा उठाया जिसे पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच विवाद की सबसे बड़ी जड़ बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि टीटीपी का स्वामित्व और प्रतिनिधित्व किसने किया, 'ये समझौते को लागू करने के चरण का सबसे साहसिक पहलू होगा। उन्होंने कहा कि आखिरकार तालिबान पाकिस्तान की कक्षा में बना रहेगा, अगर अपनी इच्छा से नहीं तो मजबूरी से।'
सालेह ने बताई तालिबान की मजबूरी
एक्स पर एक पोस्ट में पूर्व अफगान राष्ट्रपति सालेह ने लिखा, 'तालिबान दोहा में पाकिस्तान के साथ बातचीत से इनकार नहीं कर सकता था, न ही कोई पूर्व शर्तें थोप सकता था।' उन्होंने अखुंदजादा के कंधार मूल के चलते तालिबान को कंधारी तालिबान कहकर संबोधित किया और कहा कि 'पाकिस्तान का जाल इसी तरह काम करता है। अगर कंधारी तालिबान ने बातचीत में टीटीपी का प्रतिनिधित्व किया है तो उसे (टीटीपी) खत्म करने के लिए पाकिस्तान के साथ मिलकर काम करना होगा। अगर कंधारी तालिबान ने दोहा वार्ता में टीटीपी का प्रतिनिधित्व नहीं किया है तो उन्हें उसे हराने के लिए पाकिस्तान की सेना के साथ मिलकर काम करना होगा।'
सालेह ने कहा कि पाकिस्तान ने इस दावे का सफलता से अंतरराष्ट्रीयकरण कर दिया है कि अफगान तालिबान अपनी इच्छा से या ताकत की कमी के कारण आतंकवादियों को पनाह देता है। उन्होंने इस समझौते में तुर्की के होने का जिक्र किया और कहा कि इसे किसी भी तरह से लागू करना तालिबान के लिए एक कूटनीतिक आपदा साबित होगा।
बैठक में टीटीपी की गैरमौजूदगी पर सवाल
सालेह ने दोहा बैठक में टीटीपी की अनुपस्थिति का मुद्दा उठाया जिसे पाकिस्तान और अफगान तालिबान के बीच विवाद की सबसे बड़ी जड़ बताया जा रहा है। उन्होंने कहा कि टीटीपी का स्वामित्व और प्रतिनिधित्व किसने किया, 'ये समझौते को लागू करने के चरण का सबसे साहसिक पहलू होगा। उन्होंने कहा कि आखिरकार तालिबान पाकिस्तान की कक्षा में बना रहेगा, अगर अपनी इच्छा से नहीं तो मजबूरी से।'
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