ग्वालियर: 50 साल से एक महिला न्याय के लिए भटक रही है।   न्यायालय से उसे आज तक इंसाफ तो नहीं मिला है लेकिन तारीख पर तारीख जरूर मिल रही है। 79 साल की मिथलेश श्रीवास्तव करीब 50 सालों से अपनी जायज पेंशन के लिए लड़ रही हैं। मगर उन्हें कोर्ट की तारीखें और आश्वासन के सिवा इतने दिनों में कुछ नहीं मिला है।   
   
   
33 रुपए की अंतरिम पेंशन पर कर रहीं गुजाराइन पचास सालों में मिथलेश को अदालत के समन, नई सुनवाई की तारीखें और आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला है। उनके पति शंकरलाल श्रीवास्तव एमपी पुलिस में थे। 1971 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इससे पहले 23 सालों तक ईमानदारी से नौकरी की थी। 1985 में उनकी मौत हो गई। तब से, उनकी विधवा मिथलेश श्रीवास्तव 33 रुपए की अंतरिम पेंशन पर गुजारा कर रही हैं।
   
नहीं हुई सुनवाई
वहीं, जब शंकरलाल की मृत्यु हुई तो मिथिलेश ने अपने पति की पेंशन, ग्रेच्युटी और सेवानिवृत्ति लाभों का दावा करने की प्रक्रिया शुरू की। लेकिन विभाग से उनकी गुहार फाइलों, नौकरशाही और उदासीनता में खो गई।
   
कोर्ट का रुख कियासालों इंतजार के बाद, उन्होंने आखिरकार अदालत का रुख किया और जीत हासिल की। 2005 में, सिविल कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। फिर भी, फैसले के बाद भी, भुगतान कभी नहीं आया। विभाग, तकनीकी खामियों और "लापता दस्तावेजों" की आड़ में, लगातार देरी करता रहा। मिथिलेश के लिए समय जैसे ठहर गया।
   
एमपी हाईकोर्ट में गया मामलाजब यह मामला फिर से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच के सामने आया, तो जज भी आश्चर्य व्यक्त किए बिना नहीं रह सके। जज ने कहा कि यह मामला आपके और मेरे दोनों के जन्म से भी पुराना है।
   
नवंबर तक निर्देश का पालन करेंताज़ा सुनवाई में, कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर नवंबर तक निर्देश का पालन नहीं किया गया, तो श्योपुर के पुलिस अधीक्षक को देरी की व्याख्या करने के लिए व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा। अदालत का लहजा उस प्रणाली के प्रति उसकी गहरी हताशा को दर्शाता है जो न्याय देने के अपने सबसे बुनियादी कर्तव्य को ही भूल चुकी लगती है।
  
33 रुपए की अंतरिम पेंशन पर कर रहीं गुजाराइन पचास सालों में मिथलेश को अदालत के समन, नई सुनवाई की तारीखें और आश्वासनों के अलावा कुछ नहीं मिला है। उनके पति शंकरलाल श्रीवास्तव एमपी पुलिस में थे। 1971 में उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इससे पहले 23 सालों तक ईमानदारी से नौकरी की थी। 1985 में उनकी मौत हो गई। तब से, उनकी विधवा मिथलेश श्रीवास्तव 33 रुपए की अंतरिम पेंशन पर गुजारा कर रही हैं।
नहीं हुई सुनवाई
वहीं, जब शंकरलाल की मृत्यु हुई तो मिथिलेश ने अपने पति की पेंशन, ग्रेच्युटी और सेवानिवृत्ति लाभों का दावा करने की प्रक्रिया शुरू की। लेकिन विभाग से उनकी गुहार फाइलों, नौकरशाही और उदासीनता में खो गई।
कोर्ट का रुख कियासालों इंतजार के बाद, उन्होंने आखिरकार अदालत का रुख किया और जीत हासिल की। 2005 में, सिविल कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया। फिर भी, फैसले के बाद भी, भुगतान कभी नहीं आया। विभाग, तकनीकी खामियों और "लापता दस्तावेजों" की आड़ में, लगातार देरी करता रहा। मिथिलेश के लिए समय जैसे ठहर गया।
एमपी हाईकोर्ट में गया मामलाजब यह मामला फिर से मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की ग्वालियर बेंच के सामने आया, तो जज भी आश्चर्य व्यक्त किए बिना नहीं रह सके। जज ने कहा कि यह मामला आपके और मेरे दोनों के जन्म से भी पुराना है।
नवंबर तक निर्देश का पालन करेंताज़ा सुनवाई में, कोर्ट ने आदेश दिया कि अगर नवंबर तक निर्देश का पालन नहीं किया गया, तो श्योपुर के पुलिस अधीक्षक को देरी की व्याख्या करने के लिए व्यक्तिगत रूप से पेश होना होगा। अदालत का लहजा उस प्रणाली के प्रति उसकी गहरी हताशा को दर्शाता है जो न्याय देने के अपने सबसे बुनियादी कर्तव्य को ही भूल चुकी लगती है।
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