पटना: बिहार में सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड नीतीश कुमार के नाम दर्ज है। जटिल जातीय राजनीति वाले राज्य में यह एक बड़ी उपलब्धि है। गुड गवर्नेंस और सोशल इंजीनियरिंग उनकी जीत का आधार रहा है। वे पिछले 20 साल से बिहार की राजनीति के केन्द्र में हैं। इस बार भी वे एनडीए का चुनावी चेहरा हैं। लेकिन पहली बार उन्हें एक बेहद मुश्किल पिच पर बैटिंग करने की चुनौती मिली है। विरोधी स्वास्थ्य को लेकर उन पर निशाना साध रहे हैं। पहली बार उनके मंत्रियों को भ्रष्टाचार के आरोप का सामना करना पड़ रहा है। राजद-कांग्रेस-वामदल एक नये जोश के साथ मैदान में हैं। प्रशांत किशोर का अप्रत्याशित आक्रमण उनके लिए बिल्कुल नया है। एक तरह से वे सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे हैं। ऐसे में क्या इस चुनाव में वे जदयू और एनडीए की अहमियत बरकरार रख पाएंगे?
सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे नीतीश कुमार
एक मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने कई काम किये। शहर और गांव में अब 20 से 24 घंटे बिजली रहती है। सड़क और पुल-पुलियों का जाल बिछा पूरे राज्य में यातायात को सुगम बनाया। आधारभूत ढांचे के निर्माण पर बल दिया। राजनीतिक भागीदारी और रोजगार के स्तर पर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया। लालू राज में स्थापित अपहरण उद्योग को खत्म किया। लेकिन ये तमाम उपलब्धियां तब कम लगने लगतीं हैं, जब बिहार से पलायन का सिलसिला नहीं रुकता दिखता। मतलब यहां रोजी-रोटी की कमी है तभी तो काम की तलाश में यहां के नौजवान दूसरे राज्यों में जाते हैं। इस तस्वीर से बिहार की छवि अभी धूमिल हो रही है। 20 साल का शासन कम नहीं होता। अगर इतने लंबे कार्यकाल में कोई मुख्यमंत्री इस समस्या का समाधान नहीं खोज पाता तो उसकी कार्यशैली पर सवाल उठना लाजिमी है। बिहार अभी भी गरीब राज्यों की सूची में शामिल है। जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर इसी आधार पर नीतीश के विकास मॉडल पर सवाल उठाते रहे हैं।
लेकिन नीतीश में वापसी की काबिलियत
जदयू की लोकप्रियता, नीतीश कुमार की लोकप्रियता पर निर्भर है। पिछले चुनाव में नीतीश कुमार को बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा था। उनकी सीटों की संख्या 71 से 43 पर गिर गयी थी। लेकिन वे गिर कर उठने की काबिलियत रखते हैं। उन्हें विचारवान और बुद्धिमान नेता माना जाता है। 1994 में लालू यादव से अलग होने के बाद जब 1995 के विधानसभा चुनाव में उनकी करारी हार हुई तो कई लोगों ने उन्हें राजनीति का ‘सुटेबल ब्वॉय’ नहीं माना था। कई लोगों ने कहा था नीतीश, लालू यादव की लोकप्रियता के सामने टिक नहीं सकते। लेकिन उन्होंने तमाम पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए लालू यादव को सत्ता से हटा कर के ही दम लिया। 2020 में जदयू की हार की एक वजह चिराग, अब एनडीए में हैं। जदयू के लिए फिलहाल ये राहत की बात है। हो सकता है कि नीतीश कुमार एक बार फिर जदयू को कामयाबी दिला दें। अंतिम चुनाव मान कर जनता नीतीश कुमार को सम्मानजनक सीटें दे सकती है।
एक करोड़ से अधिक महिलाओं को 10-10 हजार रुपये
नीतीश कुमार ने चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.21 करोड़ महिलाओं को 10-10 हजार रुपये की राशि उनके खाते में भेजी है। अन्य 29 लाख लाभार्थियों के लिए कार्यक्रम पहले से जारी है। चुनाव के दौरान भी सहायता राशि देने की यह प्रक्रिया जारी रहेगी। ऐन चुनाव के बीच मिल रही ये आर्थिक मदद महिलाओं पर गहरा प्रभाव डालेगी। बिहार की महिला वोटर्स पहले से नीतीश कुमार के साथ रही हैं। इसके पहले भी उन्होंने महिलाओं के आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए बहुत कुछ किया है। लेकिन ये 10 हजार रुपये की मदद एक करोड़ से अधिक महिलाओं के बीच पहुंच चुकी है। इस चुनाव का यह टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है।
प्रशांत किशोर की चुनौती
जदयू के को इस बार राजद के अलावा प्रशांत किशोर से भी बड़ी चुनौती मिल रही है। प्रशांत किशोर को कितनी सीटें मिलेंगी ये तो अभी नहीं कहा जा सकता है लेकिन उन्होंने इस चुनाव में एक कठिन स्पर्धा पैदा कर दी है। उनकी वजह से इस चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया है। हालांकि प्रशांत किशोर राजद और कांग्रेस के खिलाफ भी माहौल बनाने में जुटे हैं। अगर उन्होंने एनडीए के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है तो तेजस्वी के सीएम फेस पर भी सवालिया निशान खड़ा किया है। उनका कहना है, लालू यादव को पिछड़े और गरीबों की नहीं बल्कि नौवीं फेल अपने बेटे की चिंता है। प्रशांत किशोर जन सुराज पार्टी को नीतीश की सत्ता का विकल्प तो बता रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी से कौन मुख्यमंत्री बनेगा, इस पर खामोश हैं। यही खामोशी नीतीश के हक में जाती रही है। परिस्थितियां थोड़ी बदली हैं, लेकिन आज भी नीतीश बिहार का चुनावी चेहरा हैं।
सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रहे नीतीश कुमार
एक मुख्यमंत्री के रूप में नीतीश कुमार ने कई काम किये। शहर और गांव में अब 20 से 24 घंटे बिजली रहती है। सड़क और पुल-पुलियों का जाल बिछा पूरे राज्य में यातायात को सुगम बनाया। आधारभूत ढांचे के निर्माण पर बल दिया। राजनीतिक भागीदारी और रोजगार के स्तर पर महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा दिया। लालू राज में स्थापित अपहरण उद्योग को खत्म किया। लेकिन ये तमाम उपलब्धियां तब कम लगने लगतीं हैं, जब बिहार से पलायन का सिलसिला नहीं रुकता दिखता। मतलब यहां रोजी-रोटी की कमी है तभी तो काम की तलाश में यहां के नौजवान दूसरे राज्यों में जाते हैं। इस तस्वीर से बिहार की छवि अभी धूमिल हो रही है। 20 साल का शासन कम नहीं होता। अगर इतने लंबे कार्यकाल में कोई मुख्यमंत्री इस समस्या का समाधान नहीं खोज पाता तो उसकी कार्यशैली पर सवाल उठना लाजिमी है। बिहार अभी भी गरीब राज्यों की सूची में शामिल है। जन सुराज पार्टी के सूत्रधार प्रशांत किशोर इसी आधार पर नीतीश के विकास मॉडल पर सवाल उठाते रहे हैं।
लेकिन नीतीश में वापसी की काबिलियत
जदयू की लोकप्रियता, नीतीश कुमार की लोकप्रियता पर निर्भर है। पिछले चुनाव में नीतीश कुमार को बहुत बड़ा राजनीतिक नुकसान उठाना पड़ा था। उनकी सीटों की संख्या 71 से 43 पर गिर गयी थी। लेकिन वे गिर कर उठने की काबिलियत रखते हैं। उन्हें विचारवान और बुद्धिमान नेता माना जाता है। 1994 में लालू यादव से अलग होने के बाद जब 1995 के विधानसभा चुनाव में उनकी करारी हार हुई तो कई लोगों ने उन्हें राजनीति का ‘सुटेबल ब्वॉय’ नहीं माना था। कई लोगों ने कहा था नीतीश, लालू यादव की लोकप्रियता के सामने टिक नहीं सकते। लेकिन उन्होंने तमाम पूर्वानुमानों को गलत साबित करते हुए लालू यादव को सत्ता से हटा कर के ही दम लिया। 2020 में जदयू की हार की एक वजह चिराग, अब एनडीए में हैं। जदयू के लिए फिलहाल ये राहत की बात है। हो सकता है कि नीतीश कुमार एक बार फिर जदयू को कामयाबी दिला दें। अंतिम चुनाव मान कर जनता नीतीश कुमार को सम्मानजनक सीटें दे सकती है।
एक करोड़ से अधिक महिलाओं को 10-10 हजार रुपये
नीतीश कुमार ने चुनाव आचार संहिता लागू होने से ठीक पहले मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत 1.21 करोड़ महिलाओं को 10-10 हजार रुपये की राशि उनके खाते में भेजी है। अन्य 29 लाख लाभार्थियों के लिए कार्यक्रम पहले से जारी है। चुनाव के दौरान भी सहायता राशि देने की यह प्रक्रिया जारी रहेगी। ऐन चुनाव के बीच मिल रही ये आर्थिक मदद महिलाओं पर गहरा प्रभाव डालेगी। बिहार की महिला वोटर्स पहले से नीतीश कुमार के साथ रही हैं। इसके पहले भी उन्होंने महिलाओं के आर्थिक और राजनीतिक सशक्तिकरण के लिए बहुत कुछ किया है। लेकिन ये 10 हजार रुपये की मदद एक करोड़ से अधिक महिलाओं के बीच पहुंच चुकी है। इस चुनाव का यह टर्निंग प्वाइंट साबित हो सकता है।
प्रशांत किशोर की चुनौती
जदयू के को इस बार राजद के अलावा प्रशांत किशोर से भी बड़ी चुनौती मिल रही है। प्रशांत किशोर को कितनी सीटें मिलेंगी ये तो अभी नहीं कहा जा सकता है लेकिन उन्होंने इस चुनाव में एक कठिन स्पर्धा पैदा कर दी है। उनकी वजह से इस चुनाव में भ्रष्टाचार एक बड़ा मुद्दा बन गया है। हालांकि प्रशांत किशोर राजद और कांग्रेस के खिलाफ भी माहौल बनाने में जुटे हैं। अगर उन्होंने एनडीए के खिलाफ भ्रष्टाचार का मुद्दा उठाया है तो तेजस्वी के सीएम फेस पर भी सवालिया निशान खड़ा किया है। उनका कहना है, लालू यादव को पिछड़े और गरीबों की नहीं बल्कि नौवीं फेल अपने बेटे की चिंता है। प्रशांत किशोर जन सुराज पार्टी को नीतीश की सत्ता का विकल्प तो बता रहे हैं लेकिन उनकी पार्टी से कौन मुख्यमंत्री बनेगा, इस पर खामोश हैं। यही खामोशी नीतीश के हक में जाती रही है। परिस्थितियां थोड़ी बदली हैं, लेकिन आज भी नीतीश बिहार का चुनावी चेहरा हैं।
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