नई दिल्ली: मुंबई की एक महिला को बिल्डर से फ्लैट मिलने में देरी पर मिले हर्जाने को लेकर बड़ी राहत मिली है। इसे लेकर इनकम टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) मुंबई ने अहम फैसला सुनाया है। उसने कहा कि बिल्डर से मिले 1.85 करोड़ रुपये के हर्जाने पर सेक्शन 50सी के तहत स्टैंप ड्यूटी वैल्यू के हिसाब से टैक्स नहीं लगेगा। यह हर्जाना फ्लैट मिलने में देरी के लिए ब्याज के तौर पर मिला था, न कि जमीन की बिक्री से हुई कमाई के तौर पर। इस फैसले से उन लाखों घर खरीदारों और निवेशकों को फायदा होगा जिन्हें अक्सर प्रोजेक्ट में देरी के कारण बिल्डरों से हर्जाना मिलता है।
यह मामला एक पति-पत्नी का है। उन्होंने मुंबई के एक बिल्डर के साथ जमीन के बदले फ्लैट देने का एग्रीमेंट किया था। एग्रीमेंट में यह शर्त थी कि अगर बिल्डर तय समय पर फ्लैट नहीं दे पाया तो उसे हर्जाना देना होगा। बिल्डर ने समय पर फ्लैट नहीं दिए। इसे लेकर महिला को 1.85 करोड़ रुपये हर्जाने के तौर पर मिले। महिला ने इस रकम को अपने इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) में लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेंस (एलटीसीजी) के तौर पर दिखाया।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का अलग कैलकुलेशन
हालांकि, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का मानना था कि इस मामले में सेक्शन 50सी लागू होता है। यह सेक्शन तब लागू होता है जब प्रॉपर्टी की बिक्री उसकी स्टैंप ड्यूटी वैल्यू से कम कीमत पर की जाती है। डिपार्टमेंट ने स्टैंप ड्यूटी वैल्यू के हिसाब से प्रॉपर्टी की कीमत 3.51 करोड़ रुपये मानी। उसी के हिसाब से महिला के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेंस का कैलकुलेशन किया।
महिला इस फैसले से खुश नहीं थी। उसने कमिश्नर ऑफ अपील्स (सीआईटी ए) में अपील की। सीआईटी (ए) ने भी टैक्स ऑफिसर के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद महिला अपना मामला इनकम टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) मुंबई में ले गई। वहां उसने दलील दी कि जमीन पर उसका और उसके पति का 50-50% मालिकाना हक था। टैक्स ऑफिसर ने उसके पति के हिस्से के एलटीसीजी में भी यह रकम जोड़ी थी।
महिला ने दिया यह भी तर्क
महिला ने बताया कि जब सीआईटी (ए) ने उसके पति के मामले की सुनवाई की थी तो उन्होंने उसके पक्ष में फैसला सुनाया था। सीआईटी (ए) ने माना था कि सेक्शन 50सी तभी लागू होता है जब जमीन या बिल्डिंग का असल में ट्रांसफर हुआ हो। टैक्स डिपार्टमेंट ने उसके पति के मामले में आगे कोई चुनौती नहीं दी थी।
महिला ने यह भी तर्क दिया कि इस मामले में जमीन के मालिकाना हक का ट्रांसफर नहीं हुआ था, बल्कि जमीन पर अधिकार ट्रांसफर करने के अधिकार को खत्म करने के बदले हर्जाना मिला था।
मामले पर क्या है एक्सपर्ट की राय?
कंसल्टिंग फर्म एकेएम ग्लोबल के मनीष गर्ग ने इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'मुंबई आईटीएटी के फैसले ने कैश हर्जाने या देरी पर मिले ब्याज और जमीन-बिल्डिंग के ट्रांसफर पर मिली बिक्री रकम के बीच सही फर्क किया है। यह सेक्शन 50सी की कानूनी व्याख्या के लिए बहुत जरूरी है। ट्रिब्यूनल ने आखिरकार यह माना है कि फ्लैट देने में देरी के लिए मिला कैश हर्जाना बिक्री की रकम नहीं, बल्कि ब्याज है। यह फैसला घर खरीदारों और निवेशकों के लिए बहुत अहम है जिन्हें अक्सर प्रोजेक्ट में देरी का सामना करना पड़ता है और बिल्डरों से हर्जाना मिलता है। यह साफ करता है कि ऐसे हर्जाने, जो भरपाई के तौर पर मिलते हैं, उन्हें सेक्शन 50सी के तहत कैपिटल गेंस के तौर पर गलत तरीके से टैक्स नहीं लगाया जा सकता। टैक्स अथॉरिटीज को ऐसे मामलों की फिर से जांच करनी पड़ सकती है जहां इसी तरह के हर्जाने पर स्टैंप ड्यूटी वैल्यू के हिसाब से एडजस्टमेंट किया गया हो।'
यह मामला एक पति-पत्नी का है। उन्होंने मुंबई के एक बिल्डर के साथ जमीन के बदले फ्लैट देने का एग्रीमेंट किया था। एग्रीमेंट में यह शर्त थी कि अगर बिल्डर तय समय पर फ्लैट नहीं दे पाया तो उसे हर्जाना देना होगा। बिल्डर ने समय पर फ्लैट नहीं दिए। इसे लेकर महिला को 1.85 करोड़ रुपये हर्जाने के तौर पर मिले। महिला ने इस रकम को अपने इनकम टैक्स रिटर्न (आईटीआर) में लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेंस (एलटीसीजी) के तौर पर दिखाया।
इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का अलग कैलकुलेशन
हालांकि, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट का मानना था कि इस मामले में सेक्शन 50सी लागू होता है। यह सेक्शन तब लागू होता है जब प्रॉपर्टी की बिक्री उसकी स्टैंप ड्यूटी वैल्यू से कम कीमत पर की जाती है। डिपार्टमेंट ने स्टैंप ड्यूटी वैल्यू के हिसाब से प्रॉपर्टी की कीमत 3.51 करोड़ रुपये मानी। उसी के हिसाब से महिला के लॉन्ग-टर्म कैपिटल गेंस का कैलकुलेशन किया।
महिला इस फैसले से खुश नहीं थी। उसने कमिश्नर ऑफ अपील्स (सीआईटी ए) में अपील की। सीआईटी (ए) ने भी टैक्स ऑफिसर के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद महिला अपना मामला इनकम टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल (आईटीएटी) मुंबई में ले गई। वहां उसने दलील दी कि जमीन पर उसका और उसके पति का 50-50% मालिकाना हक था। टैक्स ऑफिसर ने उसके पति के हिस्से के एलटीसीजी में भी यह रकम जोड़ी थी।
महिला ने दिया यह भी तर्क
महिला ने बताया कि जब सीआईटी (ए) ने उसके पति के मामले की सुनवाई की थी तो उन्होंने उसके पक्ष में फैसला सुनाया था। सीआईटी (ए) ने माना था कि सेक्शन 50सी तभी लागू होता है जब जमीन या बिल्डिंग का असल में ट्रांसफर हुआ हो। टैक्स डिपार्टमेंट ने उसके पति के मामले में आगे कोई चुनौती नहीं दी थी।
महिला ने यह भी तर्क दिया कि इस मामले में जमीन के मालिकाना हक का ट्रांसफर नहीं हुआ था, बल्कि जमीन पर अधिकार ट्रांसफर करने के अधिकार को खत्म करने के बदले हर्जाना मिला था।
मामले पर क्या है एक्सपर्ट की राय?
कंसल्टिंग फर्म एकेएम ग्लोबल के मनीष गर्ग ने इस फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहा, 'मुंबई आईटीएटी के फैसले ने कैश हर्जाने या देरी पर मिले ब्याज और जमीन-बिल्डिंग के ट्रांसफर पर मिली बिक्री रकम के बीच सही फर्क किया है। यह सेक्शन 50सी की कानूनी व्याख्या के लिए बहुत जरूरी है। ट्रिब्यूनल ने आखिरकार यह माना है कि फ्लैट देने में देरी के लिए मिला कैश हर्जाना बिक्री की रकम नहीं, बल्कि ब्याज है। यह फैसला घर खरीदारों और निवेशकों के लिए बहुत अहम है जिन्हें अक्सर प्रोजेक्ट में देरी का सामना करना पड़ता है और बिल्डरों से हर्जाना मिलता है। यह साफ करता है कि ऐसे हर्जाने, जो भरपाई के तौर पर मिलते हैं, उन्हें सेक्शन 50सी के तहत कैपिटल गेंस के तौर पर गलत तरीके से टैक्स नहीं लगाया जा सकता। टैक्स अथॉरिटीज को ऐसे मामलों की फिर से जांच करनी पड़ सकती है जहां इसी तरह के हर्जाने पर स्टैंप ड्यूटी वैल्यू के हिसाब से एडजस्टमेंट किया गया हो।'
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