Next Story
Newszop

चीन और तुर्की के साथ राजनीतिक स्तर पर किस तरह निपटे भारत? ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ी चिंता

Send Push
नई दिल्ली: पहलगाम में आतंकी हमले के बाद चीन ने जिस तरह पाकिस्तान का समर्थन किया, वो पूरी दुनिया ने देखा। पहले चीन ने पाकिस्तान की ओर से जांच का समर्थन किया। इसके बाद 10 मई को 2005 को चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भी कहा था कि पाकिस्तान की संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने में वो उसके साथ देगा। अब ये भी साफ है कि इस दौरान हथियारों के मामले में पाकिस्तान को चीन और तुर्किये से लगातार मदद मिल रही थी। सेना ने इन सभी हथियारों को नाकाम किया है। लेकिन एक चुनौती डिप्लोमेसी के स्तर पर भी है, पाकिस्तान और भारत के बीच समझौते वाले दिन यानी 10 मई को जहां चीन पाकिस्तान के साथ समर्थन दिखा रहा था। उसी दौरान चीनी विदेश मंत्री ने भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल के साथ भी टेलीफोन पर बात की थी, जिसमें डोभाल ने उन्हें बताया कि युद्ध भारत का विकल्प नहीं था। तुर्किये हमेशा से पाकिस्तान का रहा करीबीअगर बात तुर्किये की करें तो वो हमेशा से ही पाकिस्तान के नजदीकी रहा है। अंतरराष्ट्रीय मामलों के जानकार कमर आगा कहते हैं कि कोल्ड वॉर के समय से ही पाकिस्तान और तुर्किये नजदीक आते रहे। चीन शीत युद्ध के बाद के करीब आए। अब स्थिति ऐसी है कि सुरक्षा के लिए पाकिस्तान चीन पर ही निर्भर ही है, ऐसे में उसकी ओर से इस तरह का समर्थन हैरान नहीं करता है। वो भी तब जबकि चीन-पाकिस्तान इकॉनमिक कॉरिडोर के तहत चीन ने पाकिस्तान में काफी निवेश किया हुआ है, यही वजह है कि पाकिस्तान के साथ खड़ा होना उसके हित में है। बीते दिनों पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ ने तुर्किये के राष्ट्रपति राष्ट्रपति को भाई भी कहा था, जो रिश्तों की निकटता को दिखाता है। तो तुर्किये ने भारत के ऑपरेशन के बाद पाकिस्तान का सपोर्ट किया। चीन के साथ डिप्लोमेसी बढ़ानी होगीजानकारों का मानना है कि भारत को अब चीन के साथ डिप्लोमेसी की तंग रस्सी पर चलना ही होगा। चीन के साथ विश्वास बहाली को लेकर धीरे-धीरे भारत आगे बढ़ रहा है। सरकार ने माना है कि दोनों देशों के रिश्ते सकारात्मक दिशा में हैं। ऐसे में पाकिस्तान के साथ जो द्विपक्षीय संबंधों की सचाई है, उसे स्वीकार करने के अलावा कोई चारा नहीं। लेकिन ये सही है कि पहलगाम और ऑपरेशन सिंदूर के बाद भारत ने राजनयिक स्तर पर रिश्तों की सचाई देखी। खासकर पड़ोसी देशों के लिहाज से एक्ट ईस्ट पॉलिसी को लेकर नए सिरे से सोचने की जरूरत है, जिससे सिर्फ साउथ एशिया के दूसरे पड़ोसी भारत की राजनयिक स्थिति को ना सिर्फ समझें बल्कि जरूरत पड़ने पर समर्थन भी कर सकें।
Loving Newspoint? Download the app now