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अमेरिका के दरवाजे पर गरजे रूसी सुखोई SU-57 लड़ाकू विमान, यूएस एयरफोर्स की सबसे कमजोर नस को 'दो दोस्तों' ने दबाया

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वॉशिंगटन/मॉस्को: क्या रूस ने अमेरिकी वायुसेना के सबसे कमजोर नस पर प्रहार करने की स्ट्रैटजी बनानी शुरू कर दी है? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि रूस के डिफेंस एक्सपर्ट्स ने 15 जून को एक बड़ा खुलासा किया है। रूसी एक्सपर्ट्स ने कहा है कि रूस ने अमेरिकी हवाई सुरक्षा में एक ऐसी कमजोरी का पता लगाया है, जो भविष्य में अमेरिका के साथ संघर्ष के दौरान चीन या रूस के लिए एक बड़ा मौका बन सकता है। अलास्का, जो रूस से सिर्फ 55 मील की दूरी पर स्थित है, वो यूएस एयरफोर्स के लिए एक मजबूत किला रहा है। लेकिन रूसी एक्सपर्ट्स का दावा है कि इस मजबूत किले में भी सेंधमारी की जा सकती है। अलास्का क्षेत्र 660,000 वर्ग मील से ज्यादा हिस्से में फैला हुआ है और ये अमेरिका और आर्कटिक और प्रशांत महासागर रूस के साथ एक बफर जोन के तौर पर काम करता है। अब रूस ने अलास्का के नजदीक अपने एसयू-57 स्टील्थ फाइटर जेट को भेजा है। जिसका मकसद अमेरिका की कमजोरी का पता लगाना था और रूसी एक्सपर्ट्स का कहना है कि स्ट्रैटजिक कमजोरी का पता लगा लिया गया है।



शीत युद्ध के दौरान अलास्का अमेरिकी डिफेंस स्ट्रैटजी का एक महत्वपूर्ण केंद्र था, जहां उत्तरी अमेरिकी एयरोस्पेस डिफेंस कमांड (NORAD) के रडार साइट्स और सोवियत विमानों का पता लगाने और उन्हें रोकने के लिए डिजाइन किए गए हवाई अड्डे जैसे प्रमुख प्रतिष्ठान स्थित थे। इस क्षेत्र में अमेरिका ने जमीनी रडार और अपने फाइटर जेट्स तैनात कर रखे थे, ताकि किसी भी संभावित रूसी घुसपैठ को रोका जा सके। लेकिन अब इसकी सुरक्षा क्षमता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं। खासकर उस वक्त जब अमेरिका ने E-7 Wedgetail AEW&C (Airborne Early Warning and Control) विमान के अधिग्रहण को रद्द कर दिया है। यह फैसला अमेरिका के बजट की प्राथमिकता और डिफेंस स्ट्रैटजी में उलझन का खुलासा करता है।



अलास्का में अमेरिका की बड़ी कमजोरी क्या है?

अलास्का में आज भी अमेरिका का ज्वाइंट बेस एल्मेंडॉर्फ-रिचर्डसन और आइल्सन एयर फोर्स बेस शामिल हैं, जहां F-22 रैप्टर और F-35 लाइटनिंग II जैसे फिफ्थ जेनरेशन लड़ाकू विमान तैनात हैं। लेकिन इन प्लेटफॉर्म को अत्यंत कठोर वातावरण में सुरक्षा की जिम्मेदारी सौंपी गई है और सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि सप्लाई चेन को बनाए रखना इन इलाकों में काफी ज्यादा मुश्किल होता है। रूसी एक्सपर्ट्स ने अमेरिका की जिस कमजोरी पर प्रकाश डाला है, वो ई-7 वेजटेल के अधिग्रहण के रूकने पर आधारित है।



E-7 वेजटेल को बोइंग ने बनाया है और ये एक अत्याधुनिक एयर सर्विलांस एयरक्राफ्ट है। ये 360 डिग्री कवरेज और स्टील्थ विमानों को ट्रैक करने की क्षमता रखता है। लेकिन इसकी खरीद रद्द होने से अमेरिका अब भी 1970 के दशक के E-3 Sentry विमान पर निर्भर हो गया है, जिनकी तकनीक काफी पुरानी हो चुकी है। ये आधुनिक युद्ध की दिशा में एक कमजोर कड़ी है। वहीं अलास्का जैसे दुर्गम और विशाल इलाके में, जहां ग्राउंड-रडार कवरेज सीमित है और मौसम अत्यंत कठिन होता है, वहां इसके लिए सौ फीसदी से काम करना और ज्यादा मुश्किल हो जाता है। ऐसे में E-7 एयरक्राफ्ट का नहीं होना अमेरिका की बड़ी कमजोरी को उजागर करता है। एक्सपर्ट्स का मानना है कि AEW&C क्षमता कमजोर होने की वजह से अमेरिका के F-22 और F-35 जैसे स्टील्थ फाइटर जेट भी दुश्मनों के खिलाफ वक्त पर जवाब देने में नाकाम हो सकते हैं।



अलास्का को लेकर रूस की स्ट्रैटजी क्या है?

रूस ने पिछले कुछ सालों में अलास्का क्षेत्र में अपने रणनीतिक बमवर्षक बेड़े जैसे Tu-95 और Tu-160 के साथ-साथ अपना Su-57 फिफ्थ जनरेशन फाइटर जेट को भी सक्रिय किया है। Su-57 की स्टील्थ, सुपरक्रूज और एडवांस सेंसर क्षमताएं, अमेरिकी एयर डिफेंस को नाकाम कर सकते हैं। ऐसे में रूसी एक्सपर्ट्स का दावा है कि Su-57 का इस्तेमाल बमवर्षकों की सुरक्षा के लिए किया जा सकता है, जिससे वे अमेरिकी क्षेत्र के करीब तक पहुंच सकें। ऐसे हमलों की स्थिति में अलास्का से अगर यूएस एयरफोर्स सही समय पर प्रतिक्रिया नहीं दे पाती है तो अमेरिका को भारी नुकसान हो सकता है। इसीलिए एक्सपर्ट्स का कहना है कि ये अमेरिका को डराने के लिए नहीं है, बल्कि अमेरिकी वायुसेना पर खतरा वास्तविक है।



इतना ही नहीं, रूस के साथ साथ चीन की भी सक्रियता आर्कटिक क्षेत्र में काफी तेजी से बढ़ी है। चीन के Xian H-6K जैसे बमवर्षकों में लंबी दूरी की क्रूज मिसाइलें ले जाने की क्षमता है और हाल के वर्षों में चीन-रूस ने संयुक्त सैन्य अभ्यास भी किए हैं। ऐसे में एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर दोनों देशों ने एक साथ मिलकर कॉर्डिनेशन के साथ अलास्का को दो दिशाओं से घेरा, रूस उत्तर से और चीन पश्चिम से, तो अमेरिकी NORAD के लिए एक साथ दो मोर्चों पर प्रतिक्रिया देना अत्यंत कठिन हो जाएगा। हालांकि फिलहाल ऐसी स्थिति काल्पनिक है, लेकिन अमेरिका के लिए एक असली चेतावनी है, कि उसकी उत्तरी सीमा पर खतरे वास्तविक हैं और अगर उसने सुरक्षा को नहीं बढ़ाया तो भविष्य के युद्ध में उसके लिए दो खतरों से एक साथ निपटना अत्यंत मुश्किल हो जाएगा।

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