नई दिल्ली: भारत को 1990 के दशक से ठीक पहले से लेकर इस साल 22 अप्रैल को पहलगाम हमले तक आतंकवाद ने जितने जख्म दिए हैं, उसके घाव भले ही कम हो जाएं, निशान कभी नहीं मिट पाएंगे। फिर, जब कोई ये कह दे कि इस दौरान कोई ऐसी भी सरकार आई, जिसने इन सब के लिए जिम्मेदार आतंकवादी सरगनाओं को न सिर्फ 'अहिंसा का महात्मा' माना, बल्कि दुश्मन पाकिस्तान से बातचीत के लिए 'शांतिदूत' भी बना डाला तो फिर इस लोकतांत्रिक व्यवस्था पर ग्रहण लग सकता है। दरअसल, हम अपनी ओर से यह सब नहीं कह रहे हैं। यह दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल एक आतंकवादी सरगना के हलफनामे का हिस्सा है, जो न सिर्फ अनगिनत आतंकी वारदातों का आरोपी है, बल्कि आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए उम्रकैद की सजा भी काट रहा है।
लोकतंत्र का सबसे कलंकित कारनामा
हम देश की राजनीति के अब तक के सबसे स्याह दौर में से एक जिस समय की बात कर रहे हैं, वह है पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार का कार्यकाल। पूर्व पीएम और आतंकवादी यासीन मलिक के हाथ मिलाने वाली तस्वीर वर्षों से सोशल मीडिया को कलंकित करती रही है। लेकिन, 25 अगस्त, 2025 को उसने दिल्ली हाई कोर्ट में जो हलफनामा दिया है, वह देश की राजनीति का अब तक का सबसे कलंकित कारनामा बन गया है। इसमें सजायाफ्ता आतंकी यासीन मलिक ने दावा किया है कि वह न सिर्फ तत्कालीन यूपीए सरकार के कहने पर पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के सरगना हाफिज सईद से मिला, बल्कि वापस आकर प्रधानमंत्री आवास में जाकर इसके बारे में तत्कालीन पीएम को बताया भी और पूर्व पीएम ने इसके लिए उसकी शान में कसीदे पढ़ना शुरू कर दिया।
सजायाफ्ता आतंकी है यासीन मलिक
यासीन मलिक टेरर फंडिंग केस में तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उसपर जनवरी 1990 में श्रीनगर में भारतीय वायुसेना के चार अफसरों की हत्या का भी आरोप है। 1989 के अंत और 1990 की शुरुआत में जम्मू और कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को जबरन भगाने की साजिश का भी उसे बहुत बड़ा गुनहगार माना जाता है। यही नहीं, पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण में भी उसके शामिल होने का आरोप है, जिसके बदले रिहा किए गए खूंखार आतंकियों ने भारत विरोधी कई आतंकवादी संगठन बना चुके हैं।
आतंकवाद के आका को बनाया शांतिदूत
एफिडेविट में यासीन मलिक ने दावा किया है कि मनमोहन सरकार ने उसे इसी बहाने 2006 में पाकिस्तान भेजा था, ताकि वह आतंकवादी सरगनाओं की मदद से पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया की पहल करवा सके। इन आतंकवादियों में सबसे प्रमुख हाफिज सईद था, जिससे मनमोहन सरकार को उम्मीद थी कि वह पाकिस्तान की सरकार को बातचीत की प्रक्रिया में ला सकता है। हलफनामे में मलिक ने कहा है, 'जब मैं पाकिस्तान से नई दिल्ली लौटा, स्पेशल डायरेक्टर आईबी वीके जोशी मुझसे होटल में मिले और मुझसे अनुरोध किया कि मैं तुरंत प्रधानमंत्री को इसके बारे में बता दूं।' उसने आगे कहा, 'मैं उसी शाम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिला, जहां नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर एनके नारायण भी मौजूद थे। मैंने उन्हें मुलाकात के बारे में जानकारी दी और संभावनाओं के बारे में बताया। वहीं पर मुझे उन्होंने (मनमोहन ने) मेरी कोशिशों, वक्त, घैर्य और समर्पण के लिए मेरा आभार जताया।'
पीएम की नजर में आतंकी अहिंसा का जनक!
यही नहीं आतंकवादी मलिक ने यहां तक कहा है कि 'जब मैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिला, उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहचट के कहा, मैं आपको कश्मीर के अहिंसक आंदोलन का जनक मानता हूं।' यासीन मलिक को तो उसकी गुनाहों की सजा भारत में मिल रही है और बाकी मामलों में भी न्यायपालिका जरूर अनगिनत बेगुनाहों को न्याय जरूर देगी। लेकिन, हाफिज सईद जैसे आतंकियों का क्या होगा, जिसे एक सरकार ने शांतिदूत बनाना चाहा तो उसने 26/11 के मुंबई हमले और 22 अप्रैल के पहलगाम हमले जैसा कभी न खत्म होने वाला दर्द दे दिया। न जाने आज भी वह भारत के खिलाफ कौन सी नई साजिश रच रहा होगा?
लोकतंत्र का सबसे कलंकित कारनामा
हम देश की राजनीति के अब तक के सबसे स्याह दौर में से एक जिस समय की बात कर रहे हैं, वह है पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की सरकार का कार्यकाल। पूर्व पीएम और आतंकवादी यासीन मलिक के हाथ मिलाने वाली तस्वीर वर्षों से सोशल मीडिया को कलंकित करती रही है। लेकिन, 25 अगस्त, 2025 को उसने दिल्ली हाई कोर्ट में जो हलफनामा दिया है, वह देश की राजनीति का अब तक का सबसे कलंकित कारनामा बन गया है। इसमें सजायाफ्ता आतंकी यासीन मलिक ने दावा किया है कि वह न सिर्फ तत्कालीन यूपीए सरकार के कहने पर पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के सरगना हाफिज सईद से मिला, बल्कि वापस आकर प्रधानमंत्री आवास में जाकर इसके बारे में तत्कालीन पीएम को बताया भी और पूर्व पीएम ने इसके लिए उसकी शान में कसीदे पढ़ना शुरू कर दिया।
सजायाफ्ता आतंकी है यासीन मलिक
यासीन मलिक टेरर फंडिंग केस में तिहाड़ जेल में आजीवन कारावास की सजा काट रहा है। उसपर जनवरी 1990 में श्रीनगर में भारतीय वायुसेना के चार अफसरों की हत्या का भी आरोप है। 1989 के अंत और 1990 की शुरुआत में जम्मू और कश्मीर से कश्मीरी पंडितों को जबरन भगाने की साजिश का भी उसे बहुत बड़ा गुनहगार माना जाता है। यही नहीं, पूर्व केंद्रीय गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी रुबिया सईद के अपहरण में भी उसके शामिल होने का आरोप है, जिसके बदले रिहा किए गए खूंखार आतंकियों ने भारत विरोधी कई आतंकवादी संगठन बना चुके हैं।
आतंकवाद के आका को बनाया शांतिदूत
एफिडेविट में यासीन मलिक ने दावा किया है कि मनमोहन सरकार ने उसे इसी बहाने 2006 में पाकिस्तान भेजा था, ताकि वह आतंकवादी सरगनाओं की मदद से पाकिस्तान के साथ शांति प्रक्रिया की पहल करवा सके। इन आतंकवादियों में सबसे प्रमुख हाफिज सईद था, जिससे मनमोहन सरकार को उम्मीद थी कि वह पाकिस्तान की सरकार को बातचीत की प्रक्रिया में ला सकता है। हलफनामे में मलिक ने कहा है, 'जब मैं पाकिस्तान से नई दिल्ली लौटा, स्पेशल डायरेक्टर आईबी वीके जोशी मुझसे होटल में मिले और मुझसे अनुरोध किया कि मैं तुरंत प्रधानमंत्री को इसके बारे में बता दूं।' उसने आगे कहा, 'मैं उसी शाम प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिला, जहां नेशनल सिक्योरिटी एडवाइजर एनके नारायण भी मौजूद थे। मैंने उन्हें मुलाकात के बारे में जानकारी दी और संभावनाओं के बारे में बताया। वहीं पर मुझे उन्होंने (मनमोहन ने) मेरी कोशिशों, वक्त, घैर्य और समर्पण के लिए मेरा आभार जताया।'
पीएम की नजर में आतंकी अहिंसा का जनक!
यही नहीं आतंकवादी मलिक ने यहां तक कहा है कि 'जब मैं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मिला, उन्होंने बिना किसी हिचकिचाहचट के कहा, मैं आपको कश्मीर के अहिंसक आंदोलन का जनक मानता हूं।' यासीन मलिक को तो उसकी गुनाहों की सजा भारत में मिल रही है और बाकी मामलों में भी न्यायपालिका जरूर अनगिनत बेगुनाहों को न्याय जरूर देगी। लेकिन, हाफिज सईद जैसे आतंकियों का क्या होगा, जिसे एक सरकार ने शांतिदूत बनाना चाहा तो उसने 26/11 के मुंबई हमले और 22 अप्रैल के पहलगाम हमले जैसा कभी न खत्म होने वाला दर्द दे दिया। न जाने आज भी वह भारत के खिलाफ कौन सी नई साजिश रच रहा होगा?
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