नई दिल्लीः हॉरर कीलिंग के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के फैसले पर नाराजगी जताई। हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट ने हत्या (धारा 302) की जगह गैर इरादतन हत्या (धारा 304) के तहत केस चलाने को सही माना था। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में हत्या की धारा 302 के तहत केस दर्ज करने का आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाईचीफ जस्टिस संजीव खन्ना की अगुवाई वाली बेंच में गुरुवार को 26 वर्षीय ज़िया-उर-रहमान के पिता अय्यूब अली की याचिका पर सुनवाई हुई। अय्यूब ने आरोप लगाया कि उनके बेटे की हत्या कथित तौर पर उसकी प्रेमिका के घरवालों ने डंडे से पीटकर की थी। इस मामले में हाई कोर्ट ने धारा 304 के तहत केस चलाने की अनुमति दी थी, जिसे उन्होंने चुनौती दी है। सुप्रीम कोर्ट ने मौखिक रूप से कहा कि यह स्पष्ट रूप से ऑनर किलिंग का मामला है क्योंकि मृतक और उसकी प्रेमिका अलग-अलग धर्मों से संबंधित थे, जिसके कारण प्रेमिका के परिजनों ने इस पर आपत्ति जताई। पर मारने की मंशा नहीं थी...यूपी सरकार की ओर से पेश वकील ने यह तर्क दिया कि मृतक को मारने की कोई मंशा नहीं थी, तो चीफ जस्टिस ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि क्या किसी को पसंद करना समाज में अपराध है? क्या उन्हें इसलिए छिपना चाहिए क्योंकि वे अलग-अलग धर्मों से हैं? किसी को डंडों से पीटा गया और कहा जा रहा है कि मारने की मंशा नहीं थी? पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट की जांच करते हुए अदालत ने पाया कि मृतक ज़िया-उर-रहमान को 14 गंभीर चोटें आई थीं और उसकी मौत का कारण सदमा और खून का ज्यादा बहना था। अदालत ने यह भी माना कि याचिकाकर्ता का यह कहना सही है कि मृतक की प्रेमिका के परिवार ने उसे डंडों और लोहे की रॉड से जान से मारने की नीयत से पीटा था और यह हॉरर किलिंग का मामला है। अदालत ने यह टिप्पणी भी की, 'हमें आश्चर्य है कि चार्जशीट आईपीसी की धारा 304 के तहत क्यों दायर की गई और ट्रायल कोर्ट ने भी आरोप तय करते समय धारा 304 ही लगाई।' ट्रायल कोर्ट ने क्या कहा थाट्रायल कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि मृतक पर किसी धारदार हथियार का इस्तेमाल नहीं हुआ था, इसलिए यह धारा 302 के तहत नहीं आएगा। इस पर सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट और ट्रायल कोर्ट के निर्णयों को रद्द करते हुए कहा कि अब नया आरोप आईपीसी की धारा 302 और 34 के तहत लगाया जाएगा और मुकदमा उसी अनुसार आगे बढ़ेगा। सुप्रीम कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि उसके द्वारा की गई टिप्पणियां मुकदमे को प्रभावित नहीं करेंगी। साथ ही उत्तर प्रदेश सरकार को निर्देश दिया कि वह याचिकाकर्ता से परामर्श कर एक स्पेशल प्रोसिक्यूटर की नियुक्ति करे और यह प्रक्रिया 6 सप्ताह के भीतर पूरी की जाए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के चीफ सेक्रेटरी को निर्देश दिया है कि वह मामले में अमल संबंधित रिपोर्ट पेश करें। अपनी पसंद का पार्टनर चुनने का अधिकार16 जनवरी 2018 को सुप्रीम कोर्ट कहा था कि एक आदमी और औरत अगर शादी करते हैं, तो उनके खिलाफ किसी भी पंचायत को सवाल उठाने का हक नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि कोई भी ग्रुप या खाप पंचायत उन पर अटैक नहीं कर सकता ऐसा करना गैर कानूनी है। कोई भी आदमी और औरत अंतरजातीय विवाह कर सकते हैं उस पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता। मौजूदा फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया है कि क्या किसी को पसंद करना समाज में अपराध है? मौजूदा फैसला इस अधिकार को बल देता है।
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