विदेश मंत्री एस जयशंकर का यह कहना कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर सैनिकों की वापसी से जुड़ी समस्याएं 75% तक सुलझ गई हैं, कई लिहाज से अहम हैं। इसकी टाइमिंग तो खास है ही, आगे-पीछे और समानांतर चल रहे प्रयासों की रोशनी में इस बयान को दोनों देशों के रिश्तों में सुधार की बढ़ी हुई दोतरफा इच्छा का संकेत माना जा रहा है। पॉजिटिविटी का संदेश भारत और चीन के बीच गलवान घाटी में हुई हिंसक झड़प के बाद के चार वर्षों में दोनों पक्षों के बीच बातचीत के दर्जनों दौर हो चुके हैं। लेकिन यह पहला मौका है जब विदेश मंत्री ने इसमें हुई प्रगति को इस तरह मात्रात्मक अंदाज में व्यक्त किया। इससे पॉजिटिविटी का जो संदेश निकला है, वह इस मायने में भी अहम है कि इससे साथ-साथ चल रहे अन्य प्रयासों की भावना भी रेखांकित होती है। डोभाल-यी मुलाकात विदेश मंत्री जयशंकर के बयान के कुछ घंटों के भीतर ही ब्रिक्स देशों की NSA बैठक के लिए रूस गए राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अपने चीनी समकक्ष वांग यी से मुलाकात की। यी विदेश मंत्री भी हैं। एक अन्य महत्वपूर्ण घटनाक्रम में नागरिक उड्डयन मंत्री राम मोहन नायडू ने अपने चीनी समकक्ष के साथ दोनों देशों के बीच सीधी उड़ानों की जल्द पुनर्बहाली से जुड़े पहलुओं पर बातचीत की। ये सारे प्रयास इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण हैं कि अगले महीने ब्रिक्स देशों की शिखर बैठक के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग की मुलाकात होने वाली है। ठोस हकीकतेंइन बातों का यह मतलब नहीं है कि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद की उलझी हुई गुत्थी आसान हो गई है। दोनों के स्टैंड में किसी बदलाव का कोई संकेत अभी तक नहीं है। चीन की तरफ से सीमा विवाद को दरकिनार करते हुए संबंध सुधारने के आग्रह पर भारत का रुख आज भी यही है कि सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल हुए बगैर यह संभव नहीं। भारत यह बताने में भी संकोच नहीं कर रहा कि चार साल पहले LAC पर चीन द्वारा की गई कार्रवाई दोनों पक्षों के बीच उस समय तक बनी तमाम सहमतियों का उल्लंघन थी और आज तक यह भी पूरी तरह साफ नहीं हुआ है कि आखिर चीन ने ऐसा क्यों किया। पारदर्शिता जरूरीसामान्य रिश्तों के लिए सीमा पर सामान्य स्थिति बहाल होने के साथ ही एक-दूसरे पर भरोसा होना भी जरूरी है। उसके लिए दोनों पक्षों के व्यवहार में पारदर्शिता होनी चाहिए। कुल मिलाकर, रिश्तों की बेहतरी के लिए अभी बहुत कुछ करने की जरूरत है, लेकिन दोनों पक्ष अगर इसकी इच्छा जता रहे हैं तो यह भी अच्छी बात है। जहां चाह होती है, वहां राह निकलना बहुत मुश्किल नहीं होता।
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