पुरी, 12 सितंबर . ओडिशा के पुरी के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के कुछ सेवकों ने नेपाल में चल रही अशांति को मंदिर के लिए कस्तूरी की आपूर्ति बंद होने से जोड़ा है.
उनका कहना है कि यह कस्तूरी मंदिर के अनुष्ठानों के लिए जरूरी है, जो पहले नेपाल से आती थी. सेवकों के मुताबिक, नेपाल से कस्तूरी न मिलने से मंदिर की परंपराएं और धार्मिक अनुष्ठान प्रभावित हो रहे हैं.
सेवकों ने बताया कि प्राकृतिक कस्तूरी का इस्तेमाल मंदिर के दैनिक और खास अनुष्ठानों में होता है. खासतौर पर ‘बनक लागी’ नाम के गुप्त अनुष्ठान में इसका उपयोग होता है, जिसमें देवताओं को सजाया जाता है. साथ ही, यह कस्तूरी नीम की लकड़ी से बनी मूर्तियों को कीड़ों से बचाने और भगवान जगन्नाथ के चेहरे की सुंदरता बढ़ाने में भी मदद करता है.
चुनारा सेवक डॉ. शरत मोहंती ने कहा, “कस्तूरी कैलाश क्षेत्र में मानसरोवर झील के पास पाए जाने वाले कस्तूरी मृग से मिलती है. पहले नेपाल के राजा इसे नियमित रूप से पुरी भेजते थे, क्योंकि उनके और जगन्नाथ मंदिर के बीच गहरा आध्यात्मिक रिश्ता था.”
उन्होंने बताया कि नेपाल के राजाओं को पुरी आने पर रत्न सिंहासन पर भगवान जगन्नाथ की पूजा करने का विशेष अधिकार मिलता था. सेवकों का कहना है कि पिछले कुछ दशकों में वन्यजीव संरक्षण कानूनों के कारण नेपाल ने कस्तूरी की आपूर्ति बंद कर दी है. इससे मंदिर के अनुष्ठान प्रभावित हुए हैं.
डॉ. मोहंती ने याद दिलाया कि पहले जब कस्तूरी की आपूर्ति रुकी थी, तब नेपाल में भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदाएं आई थीं. ये घटनाएं आपस में जुड़ी हैं.
चुनारा सेवकों ने मंदिर प्रशासन और Government of India से अपील की है कि वे कस्तूरी की आपूर्ति फिर से शुरू करने के लिए कदम उठाएं. उन्होंने नेपाल के पशुपतिनाथ मंदिर का उदाहरण दिया, जो भारत के केदारनाथ का आध्यात्मिक जुड़ाव माना जाता है. यह दोनों मंदिरों के बीच सांस्कृतिक और धार्मिक रिश्ते को दिखाता है.
सेवकों का मानना है कि कस्तूरी की कमी से सिर्फ अनुष्ठान ही प्रभावित नहीं होंगे, बल्कि नेपाल और पुरी के बीच का प्राचीन आध्यात्मिक बंधन भी कमजोर होगा.
वहीं, ‘बनक लागी’ अनुष्ठान से जुड़े संजय कुमार दत्ता महापात्रा ने कहा कि कस्तूरी बिना अनुष्ठान अधूरे हैं. मंदिर प्रशासन बार-बार अनुरोध के बावजूद कहता है कि नेपाली राजा ने कस्तूरी भेजना बंद कर दिया है. इसी तरह, मुक्ति मंडप के पंडित संतोष कुमार दास ने कहा कि नेपाल के राजा सूर्यवंश और पुरी के गजपति राजा चंद्रवंश से हैं. जगन्नाथ परंपरा दोनों राजवंशों को जोड़ती है, और कस्तूरी इस पवित्र विरासत का हिस्सा रही है.
सेवकों का कहना है कि कस्तूरी के बिना दैनिक पूजा प्रभावित हो रही है और नेपाल-पुरी का रिश्ता भी कमजोर हो रहा है. वे चाहते हैं कि सरकार इस समस्या का समाधान करे ताकि मंदिर की परंपराएं बनी रहें.
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एसएचके/एबीएम
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