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सिक्किम में एलएसी के निकट सेना ने दिखाई 'आत्मनिर्भर भारत' की ताकत

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नई दिल्ली, 16 अप्रैल . भारतीय सेना ने उत्तरी सिक्किम में वास्तविक नियंत्रण रेखा के समीप अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया है. पूर्वी हिमालय में स्थित, यह इलाका देश के सबसे ऊंचे और ठंडे युद्ध क्षेत्रों में शुमार है. उत्तरी सिक्किम में हिमालय के पार जाकर सेना ने यह शक्ति प्रदर्शन किया है.

तिब्बत के पठार का यह इलाका भारतीय सीमा के अंतर्गत है. पूर्व में चीन के साथ इस क्षेत्र में तनातनी बनी रही है. करीब 19 हजार फीट की ऊंचाई वाले इस इलाके में वर्ष 2020 के दौरान भारत और चीनी सैनिकों के बीच झड़प हुई थी.

इस अभ्यास के दौरान भारतीय सैनिक अत्याधुनिक उपकरणों, हथियारों और बेहतर तकनीक से लैस थे. इन हथियारों में एंटी-टैंक गाइडेड मिसाइल, टैंक व आधुनिक ड्रोन व रॉकेट भी शामिल रहे.

सेना ने इस क्षेत्र में बहने वाली नदियों व जल धाराओं को पार करने के लिए सैन्य उपकरणों से लैस वाहनों का इस्तेमाल किया. इस अभ्यास में इस्तेमाल किए गए अधिकांश सैन्य उपकरण व हथियार आत्मनिर्भर तकनीक से भारत में ही विकसित किए गए हैं.

भारतीय सेना के जवान दृढ़ता से वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) की रक्षा करते हैं. सभी चुनौतियों का सामना करते हुए भारत की क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करते हैं. सेना ने अपने इस अभ्यास में सिक्किम के दुर्गम व बर्फ से ढके पहाड़ी इलाके में यह तैयारी दिखाई है.

सिक्किम का प्लेटो सब सेक्टर 19 हजार फीट से भी अधिक ऊंचाई पर स्थित है. यहां का तापमान भी अपने आप में एक बड़ी चुनौती है. यहां तापमान माइनस 40 तक नीचे चला जाता है. इस दौरान यहां 100 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से तेज हवाएं चलती हैं. ऐसे दुर्गम क्षेत्र की सुरक्षा सेना के ‘प्लेटो वॉरियर’ के हवाले है.

रक्षा मंत्रालय ने बुधवार को बताया कि भारतीय सेना की विशेष 20 सदस्यीय टीम ने यहां अभ्यास किया. यह अभ्यास 18 दिनों तक चला. सैन्य टीम ने बेहद कठिन परिस्थितियों में 146 किलोमीटर दुर्गम मार्गों को पार किया. इस दौरान पहाड़ियों की खड़ी चढ़ाई से जवानों का सामना हुआ.

उत्तरी सिक्किम में भारतीय सेना की ब्रिगेड को ‘प्लेटो ब्रिगेड’ के नाम से जाना जाता है. पहली बार भारतीय सेना के दल ने हिमालय के पार जाकर तिब्बत से सटे भारतीय क्षेत्र में यह व्यापक अभ्यास किया है.

इस क्षेत्र से तीस्ता नदी निकलती है. वहीं, बौद्ध व सिख धर्म से संबंधित पवित्र झील भी है. इस पठार क्षेत्र में तापमान बेहद कम होने के चलते यहां ऑक्सीजन की कमी भी दर्ज की जाती है. इसके कारण यहां तैनाती से पहले जवानों को विशेष प्रशिक्षण दिया जाता है.

जीसीबी/एबीएम

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