मुंबई, 4 अप्रैल . निर्माता-निर्देशक और अभिनेता मनोज कुमार फिल्म जगत का एक ऐसा सूर्य हैं, जो कभी अस्त नहीं हो सकता. अपने कमाल के अभिनय से वह दर्शकों के दिलों में ताउम्र सांस लेते रहेंगे. उनकी पहचान देशभक्ति से भरी फिल्मों को लेकर थी. हालांकि, पहली फिल्म में उन्होंने एक भिखारी का किरदार निभाया था, लंबे समय तक कड़ी मेहनत के बाद वह एक सितारे के रूप में उभरने में कामयाब हुए और लंबा सिनेमाई सफर तय किया. मनोज कुमार के फिल्मी करियर पर यहां डालिए एक नजर…
मनोज कुमार की पहली फिल्म साल 1957 में आई ‘फैशन’ थी, खास बात है उस वक्त उनकी उम्र महज 19 वर्ष की थी. उन्होंने 19 की उम्र में 90 साल के भिखारी का किरदार निभाया था.
9 अक्तूबर 1956 को फिल्मों में हीरो बनने का सपना लिए 19 वर्ष के मनोज कुमार मुंबई आए. उन्हें पहली फिल्म ‘फैशन’ में मौका भी मिला. हालांकि, अभी उनकी परीक्षा बाकी थी. फैशन के बाद उन्होंने कुछ और फिल्में कीं, मगर मेहनत और कला होने के बावजूद वह पहचान से मरहूम रहे. उनका शुरुआती दौर मुश्किल भरा था. उन्हें मीना कुमारी जैसे बड़े कलाकारों के साथ बस छोटा काम मिलता था और वह गुमनामी में ही थे.
मनोज कुमार का सिक्का चलना शुरू हुआ साल 1961 में आई फिल्म ‘कांच की गुड़िया’ से जिसमें उन्हें मुख्य भूमिका के लिए मौका मिला. इसके बाद मनोज कुमार की गाड़ी चल पड़ी और वे कभी पीछे मुड़कर नहीं दिखे. विजय भट्ट की फिल्म ‘हरियाली और रास्ता’ आई, 1962 में बनी फिल्म का निर्देशन और निर्माण विजय भट्ट ने किया है. इसमें मनोज कुमार के साथ माला सिन्हा मुख्य भूमिका में थीं.
करीब 40 साल के लंबे फिल्मी करियर में मनोज कुमार ने अभिनय के हर हिस्से को छुआ. उनकी फिल्मों की खासियत थी कि लोग आसानी से जुड़ाव महसूस करते थे.
‘कांच की गुड़िया’ के बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और ‘पिया मिलन की आस’, ‘सुहाग सिंदूर’, ‘रेशमी रूमाल’ पहली बड़ी व्यावसायिक सफलता वाली फिल्म के बाद मनोज कुमार ‘शादी’, ‘डॉ. विद्या’ और ‘गृहस्थी’ में नजर आए. तीनों फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर अच्छा प्रदर्शन किया और दर्शकों को खूब पसंद आई. मुख्य भूमिका के रूप में उनकी पहली बड़ी सफलता वाली फिल्म 1964 में आई राज खोसला की फिल्म ‘वो कौन थी? फिल्म के गानों को खूब पसंद किया गया, जिनमें ‘लग जा गले’ और ‘नैना बरसे रिमझिम’ है. दोनों को ही लता मंगेशकर ने गाए थे.
1965 कुमार के स्टारडम की ओर बढ़ने वाला साल साबित हुआ. उनकी पहली देशभक्ति वाली फिल्म ‘शहीद’ थी, जो स्वतंत्रता क्रांतिकारी भगत सिंह के जीवन पर आधारित थी. खास बात है कि इस फिल्म की तारीफ दर्शकों के साथ ही तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादूर शास्त्री ने भी की थी. इसके बाद ‘हिमालय की गोद में’ और ‘गुमनाम’ आई. आशा पारेख के साथ वह ‘दो बदन’ में काम किए और देखते ही देखते छा गए थे. ‘सावन की घटा’ में उनकी केमिस्ट्री शर्मिला टैगोर साथ पसंद की गई थी.
इसके अलावा वह ‘नील कमल’, ‘अनीता’, ‘आदमी’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’ जैसी फिल्मों में काम किए, जिसमें उनके अभिनय को कभी नहीं भूला जा सकता. रोमांटिक, ड्रामा और सामाजिक मुद्दों पर बनी फिल्मों के बाद मनोज कुमार ने ‘क्रांति’, ‘उपकार’ और ‘पूरब और पश्चिम’ के साथ देशभक्ति फिल्मों की ओर लौटे. फिल्म में वह भारत की गाथा, संस्कृति, परंपरा को शानदार अंदाज में पेश करने में सफल हुए थे.
परिणाम ये रहा कि देश के साथ ही विदेश में भी खूब पसंद की गई. फिल्म के सुपरहिट गानों और मनोज कुमार के साथ सायरा बानो की जोड़ी ने कहानी को शानदार मुकाम पर पहुंचा दी. इसके बाद वह 1971 में वह ‘बलिदान’ और ‘बे-ईमान’ में काम किए और ‘शोर’ फिल्म का निर्देशन किए.
–
एमटी/एमके
The post first appeared on .
You may also like
Helmet Rules : Two व्हीलर चलाने वालों के लिए नया नियम, जान ले नहीं तो लगेगा भारी जुर्माना ⁃⁃
रेड लाइट एरिया और ब्लू फिल्मों का इतिहास: जानें क्यों हैं ये नाम
पूर्वी चंपारण में डीएम ने गेहूँ फसल की कटनी कर उत्पादन का किया पर्यवेक्षण
Over 200 Rural Youth Benefit from Job Fair Organized by Hindustan Zinc's Zinc Kaushal Kendra in Udaipur
राजस्थान के इस जिले में किसानों पर टूटा मुसीबतों का पहाड़! 200 बीघा गेहूं की खड़ी फसल जलकर राख, जाने कैसे लगी आग ?