नई दिल्ली, 11 अप्रैल . जम्मू-कश्मीर राइफल्स ही एकमात्र ऐसी रेजीमेंट है, जिसने चीन में घुसकर उसकी ही जमीन पर उसे धूल चटाई थी. यह हमला वर्ष 1841 में जनरल जोरावर सिंह के नेतृत्व में किया गया था. उन्होंने न केवल चीनी सेना को हराया, बल्कि हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थान कैलाश मानसरोवर को जीता और उसे तत्कालीन जम्मू राज्य का हिस्सा बनाया.
भारतीय सेना द्वारा शुक्रवार को नई दिल्ली में जनरल जोरावर सिंह पर आयोजित एक विशेष कार्यक्रम में यह जानकारी दी गई. सेना प्रमुख जनरल उपेंद्र द्विवेदी इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे. कार्यक्रम में जम्मू-कश्मीर राज्य (अब केंद्र शासित प्रदेश) तथा भारतीय सेना की जम्मू-कश्मीर राइफल्स रेजिमेंट के गठन में जनरल जोरावर सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका का उल्लेख किया गया.
जनरल जोरावर सिंह पर आधारित शॉर्ट फिल्म में बताया गया कि उन्होंने तिब्बत, किस्तवाड़, बाल्टिस्तान, लेह-लद्दाख में छह प्रमुख युद्ध लड़े और सभी जीते. ये लड़ाइयां ऐसे माहौल में लड़ी गईं, जहां न केवल दुश्मन से खतरा था बल्कि मौसम दुश्मन से भी बड़ा खतरा था. ये ऐसे इलाके थे, जहां किसी व्यक्ति के लिए अपने आप को जीवित रखना एक बड़ी चुनौती थी. लेकिन, जनरल जोरावर सिंह ने दुनिया के सबसे जटिल क्षेत्र के लिए अपनी सेना को प्रशिक्षित किया और डोगरा सैनिकों को जंगल वारफेयर के लिए कठिन प्रशिक्षण देकर तैयार किया.
साल 1834 में उन्होंने इस जटिल क्षेत्र में पहली लड़ाई लड़ी और जीती. सेना के मुताबिक, भारतीय योद्धाओं के लिए गौरव की बात है कि जम्मू-कश्मीर राइफल्स ही एकमात्र ऐसी रेजिमेंट है, जिसने चीन में घुसकर उसकी ही सरजमीं पर उसे हराने का ऐतिहासिक कार्य किया है. जनरल जोरावर सिंह ने 1841 में तिब्बत में चीनी सरकार के मुख्यालय पर कब्जा किया. अगले कुछ सप्ताह में अपना अभियान जारी रखते हुए उन्होंने सिन्धु के स्रोत को पार किया और मानसरोवर की पवित्र झील के निकट तीरथ पुरी में अपना मुख्यालय स्थापित किया. उन्होंने इस कार्य को करके हिंदुओं के सबसे पवित्र स्थान कैलाश मानसरोवर को जम्मू साम्राज्य में शामिल किया.
साल 1839 में उन्होंने कारगिल के स्थानीय सरदार को पराजित करके डोगरा की जीत सुनिश्चित की. वे यहां 10 हजार सैनिकों के साथ पहुंचे थे. इसके बाद उन्होंने बाल्टिस्तान की ओर प्रस्थान किया, जहां उन्होंने अपनी जीत सुनिश्चित की और वहां के राजा अहमद शाह को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर किया. इस क्षेत्र को डोगरा साम्राज्य में शामिल कर लिया गया.
इसके बाद उन्होंने तिब्बत अभियान का आरंभ किया और तिब्बत में प्रवेश किया. जम्मू-कश्मीर की सबसे पहली फतेह शिबजी बटालियन भी शामिल थी. यह बटालियन न केवल इस अभियान का हिस्सा बनी बल्कि सबसे आगे होकर फतेह शिबजी बटालियन ने लड़ाई लड़ी. 15,000 फुट की ऊंचाई पर लद्दाख, बाल्टिस्तान जैसे इलाकों में एक-दो बार नहीं बल्कि छह-छह बार अपनी सेना के साथ चढ़ाई करना एक ऐसा कारनामा है, जिसकी भारतीय इतिहास में कोई मिसाल नहीं है.
–
जीसीबी/एबीएम/एकेजे
The post first appeared on .
You may also like
अंबेडकर जयंती की पूर्व संध्या पर पटना में दीपोत्सव, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष का कांग्रेस पर तंज
आगरा में 9 साल के बच्चे की हत्या: चाची ने किया अपराध
सोशल मीडिया पर वायरल हुआ विवादास्पद वीडियो: मौलाना की बातें सुनकर लोग रह गए हैरान
पति के मरने के बाद बहुत खुश थी पत्नी, पुलिस को हुआ शक, पकड़ा तो बोली- हां मैंने ही उसे मरवाया, बताई ऐसी वजह ㆁ
मध्य प्रदेश में छात्राओं ने चलती बस से कूदकर बचाई जान