कानपुर के रहने वाले राघव कपूर की कहानी काफी प्रेरणादायक है. यह लोगों को कुछ बड़ा करने की हौसला देती है. दरअसल, एक समय ऐसा था जब राघव कपूर कॉल सेंटर में नौकरी किया करते थे. उस समय वह केवल 12,000 रुपये की सैलरी पा रहे थे. आज वह लेदर डिजाइनर ब्रांड "फाइन लाइंस" के मालिक है. आज यह ब्रांड करोड़ों रुपये के टर्नओवर में बदल गया है. आइए जानते हैं राघव ने यह सब कैसे किया.
राघव कपूर का शुरुआती जीवनराघव कपूर का जन्म कानपुर में हुआ था. राघव जब तीसरी कक्षा में थे, तब उनके पिता का जूते का व्यवसाय घाटे में चला गया. इससे राघव के परिवार को काफी वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ा. पैसों की तंगी के चलते उन्हें अपना घर तक बेचना पड़ गया. राघव के माता पिता ने कानपुर के गोमती नगर में 200 वर्ग फीट की दुकान से एक लेडीज फैशन बुटीक शुरू किया, जो आज भी चल रहा है. वहीं राघव का पढ़ाई में कुछ खास इंटरेस्ट नहीं था. ऐसे में राघव ने 12वीं के बाद आगे पढ़ाई नहीं की और नौकरी करने लगे.
कॉल सेंटर में 12000 रुपये की नौकरी12वीं कक्षा के बाद जब राघव को कॉल सेंटर की नौकरी मिली, तो उन्हें 12,000 रुपये की सैलरी मिलती थी. ये सैलरी राघव के लिए अंक बड़ी रकम थी. बाद में राघव के बहनोई ने उन्हें अपने छोटे से एक्सपोर्ट कारोबार "टेक्स्ट हॉर्स" में काम करने का मौका दिया. यहां से राघव ने काफी कुछ सीखा. उन्हें घोड़ों के लिए लगाम, पट्टे, काठी जैसे चमड़े के उत्पादों को डिजाइन करने का मौका मिला. राघव लगभग 8 साल तक यहां काम करते रहे और चमड़े से डिजाइनर चीजें बनाते रहे. इससे उन्हें इस क्षेत्र के बारे में काफी जानकारी हुई.
10 लाख के निवेश से कारोबारसालों तक लेदर की चीजें बनाने के बाद राघव ने खुद का "फाइन लाइंस" ब्रांड शुरू किया. यह ब्रांड लेदर के बैग बनाता है. राघव ने 10 लाख रुपये के निवेश के साथ अपने बहनोई वरुण जॉली के साथ ही फाइन लाइंस ब्रांड की शुरुआत की.
फाइन लाइंस वरुण की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के अंदर ही 600 वर्ग फीट के छोटे से एरिया में काम करता है. इसमें 20 लोगों की टीम काम करती है. आज फाइन लाइंस 70 स्टॉक कीपिंग यूनिट्स के साथ हर महीने लगभग 5,000 पीस की मैन्युफैक्चरिंग करती है. वहीं इस ब्रांड का टर्नओवर आज 7 करोड़ रुपये को पार कर गया है. फाइन लाइंस एक B2C ब्रांड है जो पूरी तरह से अपनी वेबसाइट के माध्यम से संचालित होता है. फाइन लाइंस के 80 प्रतिशत बैग भारत में ही बिकते हैं. वहीं 20 प्रतिशत की बिक्री यूरोपीय देशों में होती है.
राघव कपूर का शुरुआती जीवनराघव कपूर का जन्म कानपुर में हुआ था. राघव जब तीसरी कक्षा में थे, तब उनके पिता का जूते का व्यवसाय घाटे में चला गया. इससे राघव के परिवार को काफी वित्तीय मुश्किलों का सामना करना पड़ा. पैसों की तंगी के चलते उन्हें अपना घर तक बेचना पड़ गया. राघव के माता पिता ने कानपुर के गोमती नगर में 200 वर्ग फीट की दुकान से एक लेडीज फैशन बुटीक शुरू किया, जो आज भी चल रहा है. वहीं राघव का पढ़ाई में कुछ खास इंटरेस्ट नहीं था. ऐसे में राघव ने 12वीं के बाद आगे पढ़ाई नहीं की और नौकरी करने लगे.
कॉल सेंटर में 12000 रुपये की नौकरी12वीं कक्षा के बाद जब राघव को कॉल सेंटर की नौकरी मिली, तो उन्हें 12,000 रुपये की सैलरी मिलती थी. ये सैलरी राघव के लिए अंक बड़ी रकम थी. बाद में राघव के बहनोई ने उन्हें अपने छोटे से एक्सपोर्ट कारोबार "टेक्स्ट हॉर्स" में काम करने का मौका दिया. यहां से राघव ने काफी कुछ सीखा. उन्हें घोड़ों के लिए लगाम, पट्टे, काठी जैसे चमड़े के उत्पादों को डिजाइन करने का मौका मिला. राघव लगभग 8 साल तक यहां काम करते रहे और चमड़े से डिजाइनर चीजें बनाते रहे. इससे उन्हें इस क्षेत्र के बारे में काफी जानकारी हुई.
10 लाख के निवेश से कारोबारसालों तक लेदर की चीजें बनाने के बाद राघव ने खुद का "फाइन लाइंस" ब्रांड शुरू किया. यह ब्रांड लेदर के बैग बनाता है. राघव ने 10 लाख रुपये के निवेश के साथ अपने बहनोई वरुण जॉली के साथ ही फाइन लाइंस ब्रांड की शुरुआत की.
फाइन लाइंस वरुण की मैन्युफैक्चरिंग यूनिट के अंदर ही 600 वर्ग फीट के छोटे से एरिया में काम करता है. इसमें 20 लोगों की टीम काम करती है. आज फाइन लाइंस 70 स्टॉक कीपिंग यूनिट्स के साथ हर महीने लगभग 5,000 पीस की मैन्युफैक्चरिंग करती है. वहीं इस ब्रांड का टर्नओवर आज 7 करोड़ रुपये को पार कर गया है. फाइन लाइंस एक B2C ब्रांड है जो पूरी तरह से अपनी वेबसाइट के माध्यम से संचालित होता है. फाइन लाइंस के 80 प्रतिशत बैग भारत में ही बिकते हैं. वहीं 20 प्रतिशत की बिक्री यूरोपीय देशों में होती है.
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