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क्या होता है 'No-Contest Clause'? रतन टाटा भी कर चुके हैं इसका वसीयत में इस्तेमाल

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व्यक्ति अपनी मृत्यु के बाद अपनी संपत्ति किसे देना चाहता है, इसके लिए वसीयत लिखी जाती है. वसीयतकर्ता यह सुनिचित करता है कि किसी कि मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति और जिम्मेदारियां उसके द्वारा चुने गए लोगों को ही दी जाए. कई लोग अपनी वसीयत में ‘नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज’ का प्रावधान रखते. इससे वसीयत को चुनौती देने से लाभार्थियों को रोका जा सकता है. बिना किसी विवाद के बंट जाए संपत्ति'नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज’ रखने का उद्देश्य यह होता है कि वसीयत में लिखी गई बातों के अनुसार परिवार या लाभार्थियों के बीच बिना किसी कानूनी विवाद के संपत्ति का बंटवारा हो जाए. यदि कोई व्यक्ति वसीयत को कोर्ट में चुनौती देता है तो वह व्यक्ति वसीयत में अपनी हिस्सेदारी खो सकते हैं. जानते हैं क्या होता है 'नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज’यह क्लोज एक शर्त के जैसे होता है, जिसमें लिखा होता है कि यदि कोई वसीयत में लिखी शर्तों को नहीं मानते हैं या इसे कानूनी चुनौती देते हैं तो उस व्यक्ति को वसीयत के लाभों से वंचित कर दिया जाता है. ये होता है उद्देश्यवसीयत लिखने वाले की अंतिम इच्छा का पालन करवाना और उसके परिजनों के बीच में बिना किसी कानूनी विवाद के संपत्ति का बंटवारा करना इसका मुख्य उद्देश्य होता है. यह उस वक्त ज्यादा उपयोगी साबित हो सकता है जब वसीयत लिखने वाले को ऐसा लगे कि उसकी मृत्यु के बाद उसके परिवार वालों के बीच संपत्ति को लेकर विवाद की स्थिति बन सकती है. रतन टाटा ने भी वसीयत में किया इसका इस्तेमाल प्रसिद्ध उद्योगपति रतन टाटा ने भी अपनी वसीयत में ‘नो-कॉन्टेस्ट क्लॉज का इस्तेमाल किया है. ताकि उनकी संपत्ति का बंटवारा उनके कहे अनुसार हो सके और कोई भी व्यक्ति वसीयत को चुनौती न दे सके. रतन टाटा की वसीयत 23 फरवरी 2022 को बनाई गई थी. उनका निधन 9 अक्टूबर 2024 को हुआ. रतन टाटा की संपत्ति का बड़ा हिस्सा दान में गया है. रतन टाटा ने भी अपनी वसीयत में लिखा है कि जो भी मेरी अंतिम वसीयत को किसी भी प्रकार से चुनौती देगा उसे संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं दिया जाएगा और उसे मेरी कोई भी विरासत प्राप्त नहीं. हालांकि भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम और अन्य संबंधित कानून में नो कॉन्टैक्ट क्लोज को पूरी तरह बाध्यकारी नहीं माना जाता है. यानी कोई लाभार्थी वसीयत को चुनौती देता है तो कोर्ट में उसकी वैधता पर विचार किया जा सकता है. हालांकि कई लोग बस इस डर से वसीयत को चुनौती नहीं देते कि कहीं उनका अधिकार ना चला जाए.
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