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अमेरिका-ईरान के बीच अगर परमाणु करार हुआ तो भारत को क्या फ़ायदा होगा?

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Getty Images अमेरिका के मध्य पूर्व के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ (बाएं) और ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची (दाएं)

बीते कई दिनों से अमेरिका और ईरान के बीच छिड़ी ज़ुबानी जंग के बीच अब दोनों देश बातचीत करने को तैयार हुए हैं. ओमान में अमेरिका और ईरान के प्रतिनिधिमंडल की वार्ता हो रही है.

ईरानी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बक़ाएई ने एक्स पर कर दोनों देशों के प्रतिनिधिमंडल के बीच अप्रत्यक्ष वार्ता शुरू होने की जानकारी दी. उन्होंने बताया कि ये वार्ता ओमान के विदेश मंत्री बदर अलबू सईदी की मध्यस्थता से शुरू हुई.

अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ़ और ईरानी प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची कर रहे हैं.

ओमान में हो रही ईरान-अमेरिका की ये वार्ता भारत के लिए भी अहमियत रखती है. इसकी वजह ये है कि भारत के दोनों ही देशों के साथ कूटनीतिक संबंध हैं.

ऐसे में इस वार्ता के नतीजों से भारत पर क्या असर पड़ सकता है? भारत के लिए इस बातचीत के क्या मायने हैं? ये समझते हैं.

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image BBC अमेरिका और ईरान के बीच क्यों हो रही है ये वार्ता? image Getty Images डोनाल्ड ट्रंप ने 2018 में ईरान के साथ हुए 2015 के परमाणु समझौते से अमेरिका को हटा लिया था

इस वार्ता की वजह ईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम है. ईरान काफ़ी वर्षों से अपना न्यूक्लियर प्रोग्राम विकसित कर रहा है.

अपने परमाणु कार्यक्रम के कारण ईरान वैश्विक स्तर पर कई तरह के प्रतिबंध का सामना कर रहा है.

साल 2015 में ईरान और छह वैश्विक शक्तियों, जिसमें अमेरिका भी शामिल था, के बीच एक समझौता हुआ था, जिसे ज्वॉइंट कॉम्प्रिहेंसिव प्लान ऑफ एक्शन (जेसीपीओए) कहा गया.

2015 के समझौते के अनुसार, ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को सीमित करने और अंतरराष्ट्रीय निरीक्षण के लिए राज़ी हुआ था. इसके बदले में ईरान पर लगे आर्थिक प्रतिबंधों को ख़त्म करने पर सहमति बनी थी.

लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने अपने पहले कार्यकाल के दौरान 2018 में ईरान के साथ हुए इस परमाणु समझौते से अमेरिका को हटा लिया था और ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों को फिर से लागू कर दिया.

उनका कहना था कि 2015 का समझौता ईरान के पक्ष में ज़्यादा है और वो अधिक मज़बूत समझौता करना चाहते हैं. हालांकि, इसके बाद ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत में कोई ख़ास प्रगति नहीं देखी गई है.

अब अपने दूसरे कार्यकाल में ट्रंप ने ईरान के साथ नया समझौता करने की बात कही है.

ईरान के साथ बातचीत पर ट्रंप ने क्या कहा? image Getty Images व्हाइट हाउस में इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू और अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप

बीती 7 अप्रैल को व्हाइट हाउस में ट्रंप ने ईरान के साथ 'प्रत्यक्ष वार्ता' की घोषणा की. इस दौरान इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू भी मौजूद थे.

अमेरिकी राष्ट्रपति ने बीते सोमवार को ओवल ऑफिस में संवाददाताओं से कि ओमान में होने वाली बैठक 'बहुत अहम' है.

उन्होंने यह भी चेतावनी दी कि अगर वार्ता सफल नहीं हुई तो यह 'ईरान के लिए बहुत बुरा' होगा. इससे पहले ट्रंप ने ईरान पर बमबारी की भी धमकी दी थी.

अमेरिका और इसराइल दोनों ही नहीं चाहते कि ईरान के पास परमाणु हथियार आए.

जैसा कि व्हाइट हाउस में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान इसराइल के प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ने कहा, "चाहे कुछ भी हो जाए हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि ईरान के पास परमाणु हथियार न हों."

यह पूछे जाने पर कि क्या यह समझौता 2015 के समझौते के समान होगा, ट्रंप ने कहा, "यह अलग होगा, और शायद बहुत मज़बूत होगा."

इस वार्ता पर ईरान ने क्या कहा है? image Getty Images ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा है कि उनका देश गंभीरता से बातचीत करने को तैयार है

ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने कहा है कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम को लेकर अमेरिका से बातचीत करने के लिए राज़ी है, हालांकि उन्होंने इसके लिए कुछ शर्तों का भी ज़िक्र किया है.

मंगलवार, 8 अप्रैल को वॉशिंगटन पोस्ट में छपे अपने एक में ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराग़ची ने लिखा कि ईरान अपने परमाणु कार्यक्रम पर 'सौदा पक्का करने के लिए गंभीरता से बातचीत करने के लिए तैयार है'.

अराग़ची ने लिखा, "हम शनिवार को ओमान में अप्रत्यक्ष वार्ता के लिए मिलेंगे. यह एक मौका होने के साथ-साथ एक परीक्षा भी है."

उन्होंने लिखा, "आज आगे बढ़ने के लिए, हमें सबसे पहले इस बात पर सहमत होना होगा कि कोई 'सैन्य विकल्प' नहीं हो सकता है, 'सैन्य समाधान' की तो बात ही छोड़िए."

उन्होंने ये भी साफ़ किया कि ईरान किसी भी तरह का दबाव नहीं बर्दाश्त करेगा.

अराग़ची ने ये भी कहा कि इस बात का कोई सबूत नहीं है कि ईरान ने परमाणु हथियार न बनाने की अपनी प्रतिबद्धता का उल्लंघन किया है, लेकिन उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि 'ईरान के परमाणु कार्यक्रम के बारे में संभावित चिंताएं हो सकती हैं'.

उन्होंने लिखा, "हम अपने शांतिपूर्ण इरादे को स्पष्ट करने और किसी भी संभावित चिंता को दूर करने के लिए ज़रूरी उपाय करने के लिए तैयार हैं."

उन्होंने आगे लिखा, "गेंद अब अमेरिका के पाले में है."

image BBC भारत के लिए इस वार्ता के मायने

भारत के लिए अमेरिका और ईरान दोनों ही देश अहम हैं. दोनों देशों के बीच हो रही इस वार्ता का असर भारत पर भी पड़ सकता है.

मिडिल ईस्ट इनसाइट्स प्लेटफॉर्म की फाउंडर डॉ. शुभदा चौधरी कहती हैं, "भारत के लिए ये वार्ता इसलिए अहम है क्योंकि अमेरिका और ईरान दोनों के साथ भारत के कूटनीतिक संबंध हैं."

इंडियन काउंसिल ऑफ वर्ल्ड अफ़ेयर के सीनियर फ़ेलो और मध्य-पूर्व मामलों के जानकार फज़्ज़ुर रहमान कहते हैं, "बेहतर होगा कि ईरान और अमेरिका के बीच वार्ता के सकारात्मक नतीजे निकलें, नहीं तो भारत को कूटनीतिक कठिनाई का सामना करना पड़ सकता है."

इस कूटनीतिक कठिनाई को समझाते हुए शुभदा चौधरी कहती हैं, "भारत की जो नीति है, वो अभी फ़िलहाल ऐसी है कि झगड़ने वाले दोनों पक्षों से बातचीत का विकल्प बना रहे. भारत न्यूट्रल रहना चाहता है, लेकिन जैसे रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने ट्रंप को साफ कह दिया है कि ईरान पर अगर कोई हमला होता है, तो रूस उसमें ईरान की मदद करेगा. ऐसे में भारत को किसी एक पक्ष को चुनना दिक्कत की बात हो सकती है."

वार्ता सफल हो, ये भारत के लिए भी ज़रूरी

अमेरिका और ईरान के बीच बात बन जाए, ये भारत के लिए अच्छा होगा क्योंकि भारत कभी ईरान के तेल का बड़ा खरीदार था.

डॉ. शुभदा चौधरी बताती हैं, "कच्चे तेल के लिए भारत ईरान पर काफ़ी निर्भर था. 2019 से पहले ईरान से भारत का तेल आयात 11 फ़ीसदी था. लेकिन ट्रंप के पहले प्रशासन के दौरान जब ईरान पर प्रतिबंध वापस लगा दिया गया, तो भारत को ईरान से अपना तेल आयात रोकना पड़ा ताकि उस पर किसी तरह का सेकेंड्री प्रतिबंध न लगे. "

डॉ. शुभदा चौधरी कहती हैं कि अब भारत जो तेल सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात और इराक से ख़रीद रहा है, वो ज़्यादा महंगा पड़ रहा है.

ऐसे में ईरान पर प्रतिबंध जारी रहने से यही स्थिति बरकरार रहेगी.

फज़्ज़ुर रहमान कहते हैं कि अगर अमेरिका-ईरान की बातचीत से सकारात्मक नतीजे निकले, तो भारत के लिए ईरान से तेल आयात करने के रास्ते दोबारा खुल सकते हैं.

डॉ. शुभदा चौधरी बताती हैं, "अगर भारत ईरान से तेल ख़रीदता है, तो वो सस्ता होगा. इससे भारत का जो व्यापार घाटा है, उसमें थोड़ी राहत मिल सकती है. घरेलू ईंधन के मूल्य भी स्थिर हो सकते हैं."

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शुभदा चौधरी बताती हैं कि ईरान पर मौजूदा प्रतिबंध के कारण भारत के लिए रणनीतिक रूप से अहम चाबहार पोर्ट का काम काफी धीमा पड़ चुका है.

चाबहार पोर्ट भारत को पाकिस्तान से गुज़रे बिना मध्य एशिया और अफ़ग़ानिस्तान से जोड़ने वाला एक प्रमुख केंद्र है.

शुभदा चौधरी कहती हैं, "अगर ईरान-अमेरिका के बीच कोई समझौता होता है और ईरान को प्रतिबंधों से राहत दी जाती है, तो भारत के लिए चाबहार में अपनी आर्थिक भागीदारी बढ़ाने में मदद मिलेगी."

दोनों ही एक्सपर्ट्स का मानना है कि अमेरिका और ईरान के बीच बात बनने से भारत फ़ायदे में रहेगा. ऐसे में अमेरिका और ईरान के बीच तनाव कम हो, भारत के लिए यही बेहतर है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

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