Next Story
Newszop

ट्रंप की ब्रिक्स देशों पर 'खिल्ली' के बीच क्या कर रही है रूस, भारत और चीन की तिकड़ी?

Send Push
Al Drago/Bloomberg via Getty ट्रंप ने किसी देश का नाम लिए बग़ैर ब्रिक्स पर निशाना साधा है

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर ब्रिक्स देशों पर टैरिफ़ लगाने की धमकी दी है. ट्रंप ने यह भी कहा है कि यह ग्रुप तेज़ी से समाप्त हो रहा है.

डोनाल्ड ट्रंप ने यह बात शुक्रवार को व्हाइट हाउस में कही. उन्होंने कहा कि ब्रिक्स देशों ने अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की, इसलिए उन्होंने सख़्ती बरती. हालांकि, ट्रंप ने इस दौरान किसी भी देश का नाम नहीं लिया.

ट्रंप की यह धमकी उस वक़्त आई है जब ब्रिक्स के अहम सदस्यों भारत, रूस और चीन के बीच एक बार फिर त्रिपक्षीय संबंधों को सुधारने की कवायद हुई है. इससे पहले हाल ही में हुए ब्रिक्स सम्मेलन के बाद भी ट्रंप ने टैरिफ़ की धमकी दी थी.

भारत और चीन के बीच संबंधों को पटरी पर लाने के लिए रूस लगातार प्रयास कर रहा है और अब चीन ने भी सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है.

चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा है कि चीन, रूस और भारत के बीच त्रिपक्षीय सहयोग न केवल तीनों देशों के हितों को साधता है, बल्कि क्षेत्र और विश्व में शांति, सुरक्षा, स्थिरता और प्रगति को बनाए रखने में भी मदद करता है.

लिन ने कहा कि चीन त्रिपक्षीय सहयोग को आगे बढ़ाने के लिए रूस और भारत के साथ संवाद बनाए रखने के लिए तैयार है.

इससे पहले रूस के उप-विदेश मंत्री आंद्रेई रुडेंको ने कहा था कि रूस-भारत-चीन (आरआईसी) के प्रारूप को फिर से शुरू करने के लिए रूस.. भारत और चीन से बातचीत कर रहा है.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान रूसी उप-विदेश मंत्री के इसी बयान के संदर्भ में बोल रहे थे.

  • ब्रिक्स पर ट्रंप की चेतावनी के क्या हैं मायने?
  • ट्रंप की ब्रिक्स देशों को धमकी देने का असर क्या भारत पर भी होगा?
  • चीन से रिश्ते बेहतर होने की उम्मीद जता रहे हैं पीएम मोदी लेकिन ये भी हैं चुनौतियां
ट्रंप ने डॉलर और ब्रिक्स पर क्या कहा? image BBC

शुक्रवार को राष्ट्रपति ट्रंप व्हाइट हाउस में एक बिल के बारे में जानकारी दे रहे थे. इसी दौरान उन्होंने इस बिल की तारीफ़ की और कहा कि यह अमेरिकी डॉलर को मज़बूत कर रहा है.

इस बीच ट्रंप ने ब्रिक्स का ज़िक्र करते हुए कहा, "ब्रिक्स नाम का एक छोटा समूह है, जो तेज़ी से समाप्त हो रहा है. इसने डॉलर, डॉलर के प्रभुत्व और मानक पर क़ब्ज़ा करने की कोशिश की. ब्रिक्स अभी भी यह चाहता है."

ट्रंप ने 'खिल्ली' उड़ाते हुए बताया, "मैंने कहा ब्रिक्स समूह में चाहे जो भी देश हों हम उनपर 10 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाने जा रहे हैं. अगले दिन उनकी बैठक थी और तक़रीबन कोई नहीं आया."

इसके बाद ट्रंप ने एक बार फिर डॉलर को मज़बूत करने और उसे वैश्विक मुद्रा बनाए रखने पर ज़ोर दिया.

उन्होंने कहा, "हम डॉलर को गिरने नहीं देंगे. अगर हम वैश्विक मुद्रा के तौर पर डॉलर का स्टेटस खो देते हैं तो यह एक विश्व युद्ध हारने जैसा होगा."

"जब मैंने ब्रिक्स देशों के इस समूह के बारे में सुना तो मैंने उन पर सख़्ती दिखाई. अगर ये देश कभी भी एकजुट हुए तो यह गुट जल्द ही समाप्त हो जाएगा."

ब्रिक्स की बैठक के बाद भी ट्रंप ने दी थी धमकी

बीती 6 और 7 जुलाई को ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में 17वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन हुआ. इस बैठक के बाद ट्रंप ने 10 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने की धमकी दी थी.

ट्रंप ने सात जुलाई को अपनी एक सोशल मीडिया पोस्ट पर कहा था कि 'जो भी देश ख़ुद को ब्रिक्स की अमेरिका विरोधी नीतियों के साथ जोड़ता है, उस पर अतिरिक्त 10 फ़ीसदी टैरिफ़ लगाया जाएगा. इस नीति में कोई छूट नहीं दी जाएगी. इस मामले पर ध्यान देने के लिए आपका धन्यवाद.'

ट्रंप ने व्हाइट हाउस में गुरुवार को अपने संबोधन में इसी धमकी का ज़िक्र किया था.

  • एस. जयशंकर की चीन यात्रा क्या पाकिस्तान और अमेरिका के लिए एक संदेश है?
  • भारत की चीन से करीबी क्या अमेरिका को साधने की कोशिश है- द लेंस
  • रूस, चीन और अमेरिका में आर्कटिक पर कब्जे़ की होड़ कितनी ख़तरनाक
ब्रिक्स के एजेंडा में ऐसा क्या था? image Getty Images ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन हुआ था

ब्रिक्स के रियो घोषणापत्र में 'वैश्विक शासन में सुधार करने' से लेकर 'अंतरराष्ट्रीय स्थिरता' पर बात की गई थी. इसके साथ ही इसमें एकतरफ़ा टैरिफ़ और नॉन-टैरिफ़ जैसे मुद्दों पर भी चर्चा की गई थी.

हालांकि घोषणापत्र में अमेरिका का नाम नहीं लिया गया था.

रियो घोषणापत्र में कहा गया था कि ब्रिक्स राष्ट्र एकतरफ़ा टैरिफ़ और नॉन-टैरिफ़ उपायों के बढ़ते इस्तेमाल पर गहरी चिंता व्यक्त करते हैं, ये उपाय व्यापार के तरीक़े को बिगाड़ रहे हैं और विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के मानदंडों का उल्लंघन करते हैं.

इसके अलावा घोषणापत्र में ये भी कहा गया था कि एकतरफ़ा बलपूर्वक उपाय लागू करना अंतरराष्ट्रीय क़ानून का उल्लंघन है और एकतरफ़ा आर्थिक प्रतिबंध जैसी कार्रवाइयों का हानिकारक असर पड़ता है.

बयान में डब्ल्यूटीओ के नियमों के अनुसार व्यापार की वकालत की गई थी, साथ ही बहुपक्षीय व्यापार प्रणाली की बात की गई थी.

ट्रंप की धमकी और आरआईसी को मज़बूत करने की कवायद image X/DR S JAISHANKAR गलवान संघर्ष के बाद पिछले पांच सालों में जयशंकर पहली बार चीन गए

साल 2020 में भारत और चीन के सैनिकों के बीच झड़प के बाद से दोनों देशों के बीच संबंध बिगड़े थे, जिसके बाद से आरआईसी को लेकर कोई कवायद नहीं हुई.

गुरुवार, 17 जुलाई को भारतीय मीडिया में यह ख़बर चली थी कि विदेश मंत्रालय आरआईसी प्रारूप को पुनर्जीवित करने पर विचार कर रहा है और इस पर कोई भी फ़ैसला "पारस्परिक रूप से सुविधाजनक तरीके से" लिया जाएगा.

आरआईसी प्रारूप पर चर्चा ऐसे समय में हुई है जब भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) की बैठक में शामिल होने के लिए पांच वर्षों में पहली बार चीन गए.

14 जुलाई को जयशंकर के साथ अपनी बैठक के दौरान चीनी विदेश मंत्री वांग यी ने कहा कि "एकतरफावाद, संरक्षणवाद, सत्ता की राजनीति और धौंस-धमकी दुनिया के लिए गंभीर चुनौतियां पेश कर रही हैं", इसलिए दोनों देशों को "सद्भाव से रहने और एक-दूसरे की सफलता में मदद करने" के तरीक़े तलाशने चाहिए.

  • रूस को लेकर बढ़ा दबाव, क्या भारत झुकेगा या उसकी दुविधा बढ़ेगी?
  • भारत क्या चीन को पछाड़कर अगला इकोनॉमिक सुपरपावर बन सकता है?
  • टैरिफ़ की धमकी पर ट्रंप से भिड़े लूला, अमेरिका-ब्राज़ील के रिश्तों में तकरार
भारत-अमेरिका संबंधों पर चीन में क्या है राय? image Getty Images चीन ने रूस-भारत-चीन (आरआईसी) के बीच त्रिपक्षीय सहयोग आगे बढ़ाने के लिए सकारात्मक प्रतिक्रिया दी है

भारत और चीन, रूस के दो सबसे बड़े तेल ख़रीदार हैं. इन दोनों देशों पर अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप की ओर से 100 फ़ीसदी अतिरिक्त टैरिफ़ लगाने का ख़तरा है, जिससे अमेरिका 50 दिनों के भीतर यूक्रेन जंग को ख़त्म करने के समझौते पर सहमति बनाने के लिए रूस पर दबाव डाल सके.

चीन के जानकारों ने राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारत-अमेरिका के बीच संबंधों में आई खटास पर टिप्पणी की है.

बीती 13 जुलाई को चीनी समाचार आउटलेट गुआंचा के लिए लिखे एक लेख में फ़ुडान विश्वविद्यालय के झी चाओ ने अमेरिका और भारत के बीच चल रहे व्यापार विवाद का ज़िक्र किया है.

उन्होंने कहा कि अमेरिका ने "भारत को नियंत्रित करने के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल करने" और दोनों देशों के बीच "बलपूर्वक मेल-मिलाप" को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई है.

चीन के प्रमुख टिप्पणीकार प्रोफ़ेसर जिन कैनरोंग ने भी इसी तरह की बात कही. उन्होंने कहा कि 'भारत-अमेरिका संबंधों में आई गिरावट के बीच अमेरिका और पाकिस्तान के बीच संबंधों में हाल ही में गर्मजोशी आई है.'

प्रोफ़ेसर जिन ने कहा कि जून में कनाडा में जी-7 शिखर सम्मेलन में शामिल होने के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप से मिलने में असफल रहे. इसके बाद व्हाइट हाउस में ट्रंप की ओर से पाकिस्तानी सेना प्रमुख फील्ड मार्शल जनरल आसिम मुनीर की मेज़बानी से "भारत और भी निराश हुआ."

क्या ब्रिक्स देश डॉलर का विकल्प तलाश रहे हैं? image Getty Images जानकारों के मुताबिक़, ब्रिक्स देश फ़ाइनेंशियल नेटवर्क बनाने की कोशिश कर रहे हैं

अमेरिका के चीन और रूस के साथ रिश्ते तनाव भरे रहे हैं. जानकारों के मुताबिक़ यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद चीन और रूस एक-दूसरे के और क़रीब आए हैं.

दोनों देश अमेरिका के दबदबे वाली विश्व व्यवस्था को ख़ारिज कर बहुध्रुवीय दुनिया बनाने की बात कर रहे हैं.

यही वजह है कि दोनों देश काफ़ी लंबे समय से दुनिया में अमेरिकी मुद्रा डॉलर की बादशाहत को चुनौती देने की कोशिशें कर रहे हैं.

साल 2023 में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा था कि वह एशिया, अफ़्रीका के अलावा दक्षिण अमेरिकी देशों के साथ व्यापार अमेरिकी डॉलर की बजाय चीनी मुद्रा युआन में करना चाहते हैं.

रूस के साथ तो चीन पहले से ही अपनी करेंसी युआन में व्यापार कर रहा है. इसी तरह की बात रूस भी कर रहा है, क्योंकि अमेरिका और पश्चिमी देशों ने उस पर कड़े आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं.

अमेरिका, यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और उसके कई सहयोगी देश रूस के कई बैंकों को अंतरराष्ट्रीय भुगतान के अहम सिस्टम स्विफ्ट से बाहर कर चुके हैं.

साल 2024 की बीबीसी हिंदी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, विदेशी मामलों के जानकार और 'द इमेज इंडिया इंस्टीट्यूट' के अध्यक्ष रॉबिंद्र सचदेव ने कहा था, "ब्रिक्स देश ऐसी कोशिश कर रहे हैं. अगर वे कोई वैकल्पिक करेंसी नहीं भी बना पाते हैं तो वे कम से कम एक फ़ाइनेंशियल नेटवर्क बनाने की कोशिश तो कर रहे हैं."

"स्विफ्ट बैंकिंग इंटरनेशनल पर अमेरिका, यूरोप और पश्चिम के देशों का दबदबा है. जब किसी भी देश पर प्रतिबंध लगते हैं तो उसे इस सिस्टम से अलग कर दिया जाता है."

सचदेव ने बताया था, "जिस तरह से रूस पर प्रतिबंध लगे हैं उसे देखते हुए ब्रिक्स के देश यह सोच रहे हैं कि कहीं भविष्य में उनकी बैंकिंग ब्लॉक ना कर दी जाए. यही वजह है कि ये देश फ़ाइनेंशियल नेटवर्क बनाने की कोशिश रहे हैं."

लेकिन क्या वाकई डॉलर के विकल्प की तलाश हो रही है?

इस सवाल पर रॉबिंद्र सचदेव ने कहा था, "ब्रिक्स देश ऐसा प्लान बना रहे थे, लेकिन इतनी जल्दी ये होने वाला नहीं है. हालांकि कुछ पहल शुरू हो चुकी है. चीन युआन में ब्राज़ील के साथ डील कर रहा है. चीन ने सऊदी अरब के साथ करेंसी को लेकर समझौता किया है और भारत ने रूस के साथ ऐसा ही समझौता किया है. ऐसे ट्रेंड शुरू हुए हैं."

लेकिन, रॉबिंद्र सचदेव का यह भी मानना था कि डॉलर के मुक़ाबले किसी करेंसी को खड़ा कर पाना बहुत दूर की बात है.

बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित

  • डॉलर के विकल्प पर ट्रंप की ब्रिक्स देशों को चेतावनी, अमेरिकी करेंसी के कमज़ोर होने का क्यों है उन्हें डर
  • ट्रंप ने भारत, चीन समेत ब्रिक्स देशों को क्यों दी धमकी
  • ब्रिक्स में मोदी और शी के साथ मिलकर पुतिन ने पश्चिमी देशों को दिया क्या संदेश
  • पीएम मोदी ने ब्रिक्स के आख़िर में ऐसा क्या कहा कि चीन और रूस को चुभने वाला बताया जा रहा
image
Loving Newspoint? Download the app now