सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर्स की चर्चा आम है. अब यह बहस भी बढ़ रही है कि सोशल मीडिया किशोरों को किस हद तक प्रभावित कर रहा है और क्या इसका संबंध किशोरावस्था में बढ़ते गर्भधारण के मामलों से है?
हमने सोशल मीडिया पर इन्फ्लुएंसर्स के बारे में सुना है. अब यह भी सुनने को मिल रहा है कि सोशल मीडिया किशोरों को इतना प्रभावित कर रहा है कि किशोरावस्था में गर्भधारण के मामले बढ़ते जा रहे हैं.
कर्नाटक की महिला और बाल विकास मंत्री लक्ष्मी हेब्बलकर ने राज्य में पिछले तीन सालों के दौरान किशोरावस्था में गर्भधारण की संख्या बढ़ने के पीछे जो कारण बताए हैं, उनमें कम से कम ये एक कारण है.
साल 2022-23 में नाबालिग गर्भधारण के 405 मामले सामने आए. 2023-24 में यह आंकड़ा बढ़कर 705 पहुंच गया. 2024-25 में यह मामूली गिरावट के साथ 685 रहा. इस तरह तीन सालों में किशोरावस्था में गर्भधारण के कुल 1,799 मामले दर्ज किए गए.
बाल विकास मंत्री ने इसके पीछे कई और कारण बताए, जैसे तेजी से बदलते पारिवारिक ढांचे, पारिवारिक समस्याएं, किशोरों के बीच प्रेम संबंधों में बढ़ोतरी और बाल विवाह.
लेकिन उनके इस दावे को भारत और विदेशों के वैज्ञानिक संस्थानों की तरफ़ से की गई कुछ एम्पीरिकल स्टडीज़ से कुछ हद तक समर्थन मिलता है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरो साइंसेज़ (निमहैन्स) में क्लिनिकल साइकोलॉजी डिपार्टमेंट के प्रोफ़ेसर मनोज कुमार शर्मा ने बीबीसी को बताया, "मौजूदा वक्त में प्रमाण यह सीधे-सीधे स्थापित नहीं करते कि सोशल मीडिया के इस्तेमाल और गर्भधारण की दरों के बीच कोई सीधा स्टैटिस्टिकल नाता है. हालांकि, इसके इनडायरेक्ट फै़क्टर्स मौजूद हैं."
उन्होंने कहा, "जैसे कि सोशल मीडिया के कारण एक्सपेरिमेन्ट बढ़ गए हैं. एक नज़रिए से हम कह सकते हैं कि परिणाम इससे जुड़े हो सकते हैं. लेकिन स्टैटिस्टिकल नज़रिए से कहा जाए तो, अभी तक हमने ऐसा पाया नहीं है."
बेंगलुरु स्थित चाइल्ड राइट्स ट्रस्ट के कार्यकारी निदेशक वासुदेव शर्मा, इस पर अलग नज़रिया रखते हैं.
उन्होंने बीबीसी हिन्दी से कहा, "सिर्फ सोशल मीडिया को दोष देना सही नहीं है. हम किशोरों को मोबाइल फ़ोन से दूर नहीं रख सकते. ज़रूरी यह है कि किशोरों को उनके शरीर, यौन स्वास्थ्य और रिश्तों के बारे में सही जानकारी दी जाए."
व्यवहार में बदलाव लाने वाले फ़ैक्टर्समंत्री हेब्बलकर का बयान मुख्य रूप से उस बात से सहमत था, जो जेडीएस विधायक सुरेश बाबू ने विधानसभा में रखी थी. सुरेश बाबू ने कहा था कि किशोरावस्था में गर्भधारण के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है.
सुरेश बाबू ने विधानसभा में उन 'आपत्तिजनक विज्ञापनों' पर रोक लगाने की मांग की थी जो बच्चों के सोशल मीडिया इस्तेमाल के दौरान सामने आते हैं.
मंत्री ने यह भी कहा कि राज्य में पॉक्सो और बाल विवाह के मामले बढ़ रहे हैं और ये भी किशोर गर्भधारण के पीछे बड़े कारण हैं.
कुछ जनजातीय समुदायों में सामाजिक परंपराओं के कारण अब भी बाल विवाह हो रहे हैं. इसकी वजह से किशोर लड़कियों में गर्भधारण की संख्या बढ़ रही है.
लेकिन वासुदेव शर्मा समाज में पिछले चार-पांच दशकों में आए बदलावों की ओर ध्यान दिलाते हैं.
वो कहते हैं, ''क़रीब चार दशक पहले बच्चों ने शायद ही अपने माता-पिता या बड़ों को कभी उनके सामने अंतरंग (इंटिमेट) होते देखा हो. लेकिन बीते दो दशकों में यह माहौल बदल गया है, जिसका असर अब हर जगह दिखता है."
वासुदेव शर्मा बताते हैं, "आजकल सार्वजनिक रूप से प्यार जताना, जिसे पीडीए (बल्किल डिस्प्ले ऑफ़ एफ़ेक्शन) कहा जाता है, सामान्य बात मानी जाती है."
वो कहते हैं, "ऐसे में केवल सोशल मीडिया को दोष देना सही नहीं है. मोबाइल फ़ोन, फ़िल्मों या ओटीटी प्लेटफ़ॉर्म्स को दोष देना भी ठीक नहीं है. हम इन चीज़ों को सामान्य मान चुके हैं. ऐसे माहौल में कुछ बच्चे प्रयोग करते हैं."
लेकिन क्या ऐसे प्रयोग जोखिम भरे व्यवहार का कारण बन सकते हैं?
शोध से मिले-जुले नतीजे सामने आएप्रोफ़ेसर मनोज शर्मा कहते हैं, "कुछ शोध, जिनमें एक बड़े स्तर का भारतीय अध्ययन भी शामिल है, यह दिखाता है कि सोशल मीडिया किशोरों, ख़ासकर मिडिल और हाई स्कूल की लड़कियों के बीच यौन और प्रजनन स्वास्थ्य की समझ बढ़ाने में मदद कर सकता है. इससे जोख़िम भरे व्यवहार में कमी आ सकती है."
वे ब्रिटिश मेडिकल जर्नल की एक समीक्षा का हवाला देते हैं, जिसमें सोशल मीडिया के इस्तेमाल और जोख़िम भरे यौन व्यवहार के बीच संबंध पाए गए.
उनके मुताबिक़, "बड़े सैंपल पर आधारित कई अध्ययन तो हैं, लेकिन लॉन्गिट्यूडिनल यानी समय के साथ किए गए शोध की कमी है. इससे यह साफ़ नहीं हो पाता कि सोशल मीडिया, यौन व्यवहार और स्वास्थ्य नतीजों के बीच क्या और कैसा सीधा रिश्ता है."
वे नीति-निर्माण में एक बड़ी कमी की ओर भी इशारा करते हैं. वो कहते हैं कि मौजूदा सरकारी दिशानिर्देश सिर्फ़ सोशल मीडिया के सुरक्षित इस्तेमाल (जैसे हानिकारक सामग्री से बचना) पर ध्यान देते हैं, लेकिन इसमें यौन और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े पहलू गायब हैं.
उन्होंने कहा, "आजकल किशोरावस्था जल्दी शुरू होने लगी है. इस वजह से प्रयोग करने की प्रवृत्ति बढ़ती है, जो बाल विवाह की ओर भी ले जा सकती है."

सरकार का पक्ष पहली बार मई में सामने आया, जब मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने ज़िला अधिकारियों की बैठक में विभागों के कामकाज की समीक्षा की.
समीक्षा में यह पाया गया कि 2024-25 में लगभग 700 बाल विवाह हुए थे और इनमें से आधे से ज़्यादा मामले सिर्फ़ पांच ज़िलों से आए थे.
कर्नाटक के महिला और बाल विकास विभाग ने यह भी बताया कि कई लड़कियों में गर्भावस्था पॉक्सो क़ानून से जुड़े मामलों में पाई गई. कुल 3,489 पॉक्सो मामलों में से 685 में नाबालिग लड़कियां गर्भवती पाई गईं.
मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने इन आंकड़ों को "चौंकाने वाला" बताया.
इसके बाद उन्होंने कहा कि राज्य सरकार विधानसभा के मौजूदा सत्र में एक बिल लाने जा रही है, जिसके तहत बाल विवाह की तैयारी करना भी अपराध माना जाएगा. इसके लिए दो साल तक की जेल या एक लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान होगा.
ध्यान देने वाली बात है कि नवंबर 2022 में कर्नाटक हाई कोर्ट के एक फ़ैसले पर ज़्यादा ध्यान नहीं गया.
कोर्ट ने सरकार से कहा था कि कक्षा 11 के छात्रों को पॉक्सो एक्ट और बीएनएस (बीएनएस) में अपराध संबंधी धाराओं के बारे में शिक्षा दी जाए.
यह फ़ैसला उस मामले से जुड़ा था, जिसमें दो किशोर गांव से भाग गए थे और कुछ साल बाद दो बच्चों के साथ लौटे.
वासुदेव शर्मा ने कहा, "लड़के पर यौन शोषण का केस दर्ज हुआ था. जैसे ही केस शुरू हुआ, लोगों को पता चला कि भागने के वक़्त वह लड़का ख़ुद भी नाबालिग था. कोर्ट ने इस मामले में दो बड़ी बातें कहीं थीं.''
जस्टिस सूरज गोविंदराज ने अपने आदेश में लिखा, "शिक्षा विभाग के प्रधान सचिव को निर्देश दिया जाता है कि इस विषय पर उपयुक्त शिक्षा सामग्री तैयार करने के लिए समिति गठित करें."
कोर्ट ने आदेश दिया, "सभी सरकारी और प्राइवेट स्कूलों को निर्देश दें कि छात्रों को इन क़ानूनों के उल्लंघन के परिणामों के बारे में पढ़ाया और सावधान किया जाए."
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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