जनवरी, 1999 में ऑस्ट्रेलियाई मिशनरी ग्राहम स्टेंस और उनके दो नाबालिग़ बेटों की हत्या में दोषी ठहराए जाने के बाद आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे महेंद्र हेम्ब्रम को बुधवार को जेल से रिहा कर दिया गया.
दोपहर क़रीब एक बजे जब हेम्ब्रम को जेल से रिहा किया गया, तो वहां मौजूद उनके कुछ समर्थकों ने उन्हें फूलों की माला पहनाई और "जय श्री राम" के नारे लगाए.
स्टेंस (58) और उनके दो बेटों - टिमोथी (10) और फिलिप (6) - की 22 जनवरी, 1999 में ओडिशा के केऊंझर ज़िले में हत्या कर दी गई थी.
ये तीनों मनोहरपुर गांव में एक चर्च के अहाते में एक जीप के अंदर सो रहे थे. उसी दौरान एक उग्र हिन्दू भीड़ ने उन्हें ज़िंदा जला दिया था.
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महेंद्र हेम्ब्रम को इस मामले में एक दिसंबर, 1999 को गिरफ़्तार किया गया था और तब से वह केऊंझर सदर जेल में थे.
हेम्ब्रम की रिहाई के बारे में जेलर मानस्विनी नायक ने कहा, "राज्य सरकार की समय से पहले रिहाई की नीति के तहत राज्य सज़ा पुनर्विचार बोर्ड की सिफ़ारिश पर हेम्ब्रम को अच्छे चाल चलन के कारण रिहा किया गया है."
राज्य कारागार निदेशालय के सूत्रों के अनुसार, बुधवार को हेम्ब्रम के अलावा राज्य की अन्य जेलों में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे 29 और सजायाफ़्ता मुजरिमों को भी रिहा किया गया है.
इस संदर्भ में अप्रैल 2022 में राज्य सरकार के दिशानिर्देशों के अनुसार, सज़ा घटा कर समय से पहले रिहाई के लिए केवल उन्हीं सज़ायाफ़्ता मुजरिमों के मामलों पर विचार किया गया जो कम से कम 14 साल जेल में सज़ा काट चुके हैं.
दारा सिंह अब भी जेल मेंमामले के एक और दोषी रवींद्र कुमार पाल उर्फ़ "दारा सिंह" भी उसी जेल में उम्र क़ैद की सज़ा काट रहे हैं, जहां से हेम्ब्रम को रिहा किया गया है.
दारा सिंह को उस भीड़ का नेतृत्व लेने का दोषी पाया गया, जिसने स्टेंस और उनके दो बेटों को ज़िंदा जला दिया था.
इसके अलावा उन्हें एक मुस्लिम व्यापारी शेख़ रहमान की हत्या के मामले में भी दोषी ठहराया गया था. दोनों ही मामलों में उन्हें आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई थी.
19 मार्च को सज़ा माफ़ी के लिए दारा सिंह की ओर से दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने ओडिशा सरकार को अगले छह हफ्तों में अपना निर्णय लेने के लिए कहा है.
इस मामले की अगली सुनवाई मई में होगी.
हेम्ब्रम ने रिहाई के बाद क्या कहा?
महेंद्र हेम्ब्रम ने भले ही हत्या के आरोप में 25 साल सज़ा काटी हो लेकिन वह अब भी दावा कर रहे हैं कि निर्दोष हैं और इस मामले से उनका कोई लेना देना नहीं है.
बीबीसी के साथ फोन पर बातचीत के दौरान हेम्ब्रम ने बताया कि उनका नाम शुरुआती एफआईआर में नहीं था.
हेम्ब्रम ने कहा कि अब वह एक ट्रस्ट बनाएंगे जो ग़रीब लोगों के लिए काम करेगा.
यह पूछे जाने पर कि क्या गोहत्या और धर्मांतरण के ख़िलाफ़ उनका अभियान भी इस ट्रस्ट की गतिविधियों का हिस्सा होगा, तो उन्होंने कहा, "बिल्कुल ! मेरे सिद्धांत अब भी वही हैं."
क्या है प्रतिक्रियाहेम्ब्रम की रिहाई का जहाँ विश्व हिंदू परिषद ने खुलकर स्वागत किया है, वहीं राज्य बीजेपी इस पर कोई टिप्पणी करने से कतरा रही है.
राज्य वीएचपी के सह सचिव केदार दास ने कहा, "आज हमारे लिए ख़ुशी का दिन है. हम राज्य सरकार के निर्णय का स्वागत करते हैं."
दूसरी तरफ़ बीजेपी के प्रवक्ता अनिल बिस्वाल ने बीबीसी से कहा, "यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया का हिस्सा है, इसलिए इस पर कोई टिप्पणी करना उचित नहीं होगा."
कांग्रेस के प्रवक्ता अमिय पांडव ने कहा, "हमें यह भूलना नहीं चाहिए कि मोहन माझी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से ताल्लुक रखते हैं. इसलिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद वह संघ के एजेंडे पर काम कर रहे हैं. महेंद्र हेम्ब्रम और दारा सिंह की रिहाई इसी एजेंडे का हिस्सा है."
हेम्ब्रम की रिहाई के बाद अब सब का ध्यान स्टेंस हत्याकांड के मुख्य दोषी दारा सिंह की समय से पहले रिहाई की याचिका पर केंद्रित हो गया है.
सीएम माझी की दारा सिंह के बारे में राय
गौरतलब है कि 21 सितंबर, 2022 को तत्कालीन विधायक मोहन माझी सुदर्शन टीवी के मुख्य संपादक सुरेश चव्हाण के साथ दारा सिंह की रिहाई की मांग पर केऊंझर जेल के सामने धरने पर बैठ गए थे.
उस दिन चव्हाण दारा से मिलने केऊँझर जेल आए थे लेकिन जेल अधिकारियों ने सुरक्षा कारणों से मुलाक़ात की अनुमति नहीं दी. इसके बाद उस समय विधानसभा में भाजपा के चीफ व्हिप रहे मोहन माझी के साथ चव्हाण धरने पर बैठ गए.
उस समय प्रसारित एक वीडियो में मोहन माझी यह कहते हुए सुने गए, "दारा सिंह 21 साल सज़ा काट चुके हैं . यह सरासर अन्याय है. आजीवन कारावास का मतलब है, अपराधी को 14 साल के बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए. हमारी सेना के जवानों की हत्या करने वाले कई अपराधियों को समय से पहले रिहा किया गया है. तो फिर दारा सिंह को क्यों नहीं?"
हालांकि हेम्ब्रम के विपरीत दारा सिंह ने अपना गुनाह कबूल किया है और उसके लिए पछतावा भी ज़ाहिर किया है.
सज़ा माफी के लिए सुप्रीम कोर्ट में दायर अपनी याचिका में उन्होंने कहा है कि सब 'जवानी के जोश' में हो गया था. उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय को यह आश्वासन भी दिया था कि वह रिहाई के बाद अपना सारा जीवन समाज की सेवा में बिताएंगे.
याचिका में कहा गया है कि जेल में गुज़ारे 24 सालों में वह एक बार भी परोल पर नहीं गए हैं, यहाँ तक कि अपनी मां के देहांत के समय भी नहीं.
मार्च 2019 को मामले की सुनवाई के दौरान दारा सिंह के वकील विष्णु शंकर जैन ने राजीव गांधी हत्याकांड का हवाला देते हुए दारा की रिहाई की मांग की थी.
उनका तर्क था कि इस मामले में दोषी पाए गए एजी पराइवलन को 30 साल सज़ा भुगतने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने रिहा कर दिया था. दारा के मामले में भी यही होना चाहिए.
स्टेंस और उनके बेटों की हत्या के मामले में सीबीआई ने 1999 और 2000 के बीच कुल 51 लोगों को गिरफ्तार किया था.
लेकिन इनमें से 37 को भुवनेश्वर की सीबीआई अदालत ने पर्याप्त सबूत के अभाव में बरी कर दिया था. अदालत ने दारा सिंह और हेंब्रम समेत 14 लोगों को दोषी ठहराया था.
22 सितंबर, 2003 को कोर्ट ने दारा सिंह को मौत और बाक़ी 12 अभियुक्तों को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी.
लेकिन 19 मई, 2005 को ओडिशा उच्च न्यायालय ने दारा सिंह के मृत्युदंड को आजीवन कारावास में तब्दील कर दिया था.
हाई कोर्ट ने हेम्ब्रम के आजीवन कारावास की सज़ा कायम रखते हुए 11 अन्य को बरी कर दिया था. घटना के समय नाबालिग़ एक अन्य अभियुक्त चेंचू हांसदा को 2008 में अदालत ने रिहा कर दिया था.
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