सितंबर 2019 में अमेरिका के ह्यूस्टन में हुए हाउडी मोदी कार्यक्रम में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अगले साल होने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव के लिए नारा दिया था, "अबकी बार ट्रंप सरकार".
ह्यूस्टन कार्यक्रम के अगले ही साल प्रधानमंत्री मोदी ने ट्रंप को अहमदाबाद बुलाया. उस कार्यक्रम में और उसके अलावा भी कई मौकों पर दोनों नेता एक-दूसरे की जमकर तारीफ करते रहे. ट्रंप ने तो मोदी को "महान देश का महान नेता" तक कहा था.
बुधवार को भी, एक अगस्त से भारत पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने की घोषणा करतेहुए ट्रंप ने भारत को दोस्त देश कहा, लेकिन यह शिकायत भी जताई कि, "किसी भी देश की तुलना में भारत के साथ व्यापार करने में सबसे सख़्त कारोबारी बाधाएं हैं."
इससे पहले भी वो कई बार भारत को "टैक्स किंग" कह चुके हैं.
इस साल की शुरुआत में जब ट्रंप ने अपना दूसरा कार्यकाल संभाला, तब प्रधानमंत्री मोदी उनसे मिलने वाले शुरुआती चौथे नेता थे. इस मुलाकात में भी ट्रंप ने उन्हें "महान दोस्त" कहा.
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लेकिन पिछले छह महीनों में राष्ट्रपति ट्रंप और प्रधानमंत्री मोदी के बीच पहले जैसी गर्मजोशी नहीं दिखी, जो ट्रंप प्रशासन के पहले कार्यकाल के दौरान दिखाई देती थी.
इस समय भारत में संसद का मानसून सत्र चल रहा है और विपक्ष, ट्रंप और मोदी की पुरानी दोस्ती का हवाला देकर सरकार को घेरने की कोशिश कर रहा है.
ट्रंप ने दूसरा कार्यकाल संभालते ही टैरिफ लगाने की घोषणा कर दी थी. हालांकि बाद में उन्होंने ट्रेड डील पर बातचीत के लिए 90 दिन की छूट दी, जिसकी मियाद एक अगस्त को खत्म हो रही है.
भारत सरकार की ओर से आई पहली प्रतिक्रियामें कहा गया है, "टैरिफ की घोषणा के संभावित प्रभावों का अध्ययन किया जा रहा है. सरकार भारत के किसानों, उद्यमियों और सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (एमएसएमई) के कल्याण और हितों को सर्वोच्च प्राथमिकता देती है."
विदेश नीति के जानकारों का कहना है कि टैरिफ से भारत को अन्य देशों की तुलना में कम झटका लगेगा, लेकिन व्यापार वार्ता के बीच ट्रंप के इस एलान से दोनों देशों के रिश्तों में और ठंडापन आने की आशंका बढ़ गई है.
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ट्रंप ने सिर्फ़ भारत पर टैरिफ़ की बात नहीं कही, बल्कि रूस से तेल ख़रीद पर पेनल्टी लगाने की भी बात कही है. इससे मामला पेचीदा हो गया है.
विदेशी और रणनीतिक मामलों पर रिसर्च करने वाली संस्था अनंता सेंटर की सीईओ इंद्राणी बागची ने बीबीसी से कहा, "टैरिफ़ का असर पड़ेगा. क्योंकि रूस के व्यापार की वजह से पेनल्टी भी लगेगी. इसके अलावा ब्रिक्स देशों पर अतिरिक्त टैरिफ़ की भी बात कही है. तो कुल मिलाकर ये 25 प्रतिशत से ज़्यादा होने वाला है."
वरिष्ठ अर्थशास्त्री मिताली निकोरे ने बीबीसी के पॉडकास्ट कार्यक्रम में भी कुछ ऐसी ही बात कही.
मिताली निकोरे ने कहा, "ट्रंप ने भारत पर 10 प्रतिशत का अतिरिक्त टैरिफ़ लगाया है. यानी प्रभावी टैरिफ़ 35 प्रतिशत होगा."
लेकिन इतना तय है कि एक अगस्त से अमेरिका को होने वाला भारतीय निर्यात महंगा होगा.
पिछले साल भारत और अमेरिका के बीच 129.2 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था जिसमें भारत का निर्यात 87.4 अरब डॉलर था.
हालांकि टैरिफ़ से भारत के निर्यात पर बहुत अधिक असर नहीं पड़ेगा, इस बात पर जानकारों में मतभेद हैं.
इंद्राणी बागची का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के आकार को देखते हुए यह इतना बड़ा झटका नहीं है और इसकी भरपाई भारत दूसरे बाज़ारों में पहुंच से पूरी कर लेगा.
उनके अनुसार, "भारत ने ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार समझौता किया है. इस साल के अंत तक यूरोपीय संघ के साथ ऐसा ही समझौता होने की उम्मीद है. चीन वियतनाम जैसे निर्यात आधारित अर्थव्यवस्थाओं के मुक़ाबले भारत पर टैरिफ़ का असर कम होगा."
लेकिन अर्थशास्त्री मिताली निकोरे का कहना है, "ये हमारी अर्थव्यवस्था के लिए भारी झटका होगा. फ़ार्मा सेक्टर, जेम्स एंड ज्वेलरी, स्टील एल्यूमीनियम और टेक्सटाइल उद्योग प्रभावित होगा."
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अमेरिका ने रूस के साथ व्यापारिक संबंध खत्म करने का दबाव बढ़ा दिया है और चेतावनी दी है कि "अगर चीन रूस से तेल खरीदना जारी रखता है तो वह टैरिफ में बड़ी बढ़ोतरी करेगा."
दो हफ्ते पहले नेटो प्रमुख ने रूस के व्यापार को लेकर भारत, चीन और ब्राज़ील को चेतावनी दी थी. उस समय भारत ने अपने मौजूदा ऊर्जा हितों का हवाला दिया था.
बुधवार को चीन के विदेश मंत्रालय ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "चीन हमेशा अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार ऊर्जा की आपूर्ति सुनिश्चित करेगा. टैरिफ युद्ध में कोई विजेता नहीं हो सकता. ज़बरदस्ती और दबाव से कुछ हासिल नहीं होगा. चीन अपनी संप्रभुता, सुरक्षा और विकास हितों की पूरी दृढ़ता से रक्षा करेगा."
भारत की ओर से फिलहाल कोई टकराव भरी प्रतिक्रिया नहीं आई है.
वरिष्ठ पत्रकार इंद्राणी बागची कहती हैं, "अमेरिकी अर्थव्यवस्था भारत की तुलना में बहुत बड़ी है. भारत टकराव मोल नहीं लेना चाहेगा, बल्कि रास्ता तलाशने की कोशिश करेगा."
उनके मुताबिक, "ट्रंप के पहले और दूसरे कार्यकाल में बहुत फर्क है. अमेरिकी सरकार का ऐसा कोई हिस्सा नहीं है जो ट्रंप के साथ न हो, यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट भी. एक अलग नजरिए और नई ताकत के साथ ट्रंप अपनी नीतियों को लागू कर रहे हैं."
वो आगे कहती हैं, "दूसरी ओर, रूस और चीन जैसे मुख्य प्रतिद्वंद्वी देशों के साथ ट्रंप ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहे हैं. इसका मतलब ये है कि ट्रंप ताकत की भाषा समझते हैं. जैसे चीन पर टैरिफ लगाया तो चीन ने रेयर अर्थ मिनरल्स और मैग्नेट की सप्लाई रोक दी. लेकिन सहयोगी देशों के साथ वो बिल्कुल नरमी नहीं दिखा रहे हैं."
उदाहरण देते हुए वो कहती हैं, "ब्राज़ील के साथ अमेरिका का व्यापार लाभ में है, फिर भी उस पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगा दिया गया. जापान, दक्षिण कोरिया और कनाडा के साथ भी यही हाल है. ऑस्ट्रेलिया के साथ तो अभी बातचीत भी शुरू नहीं हो पाई. इसी तरह इस नीति का असर भारत पर भी पड़ा है."
वहीं नीति विशेषज्ञ मिताली निकोरे इसे भारतीय विदेश नीति के लिए झटका मानती हैं. वो कहती हैं, "बीते कई महीनों से दोनों देशों के बीच दूतावास स्तर और अन्य शीर्ष स्तर पर बातचीत चल रही है, लेकिन यह हैरान करने वाली बात है कि डील की मियाद खत्म होने के सिर्फ दो दिन पहले ही ट्रंप घोषणा कर देते हैं."
हालांकि उनका मानना है कि ट्रेड डील में भारत ने अपने कृषि और डेयरी क्षेत्र की रक्षा के लिए अब तक दृढ़ रुख अपनाया है और आगे भी उसे इसी तरह दृढ़ता दिखानी होगी.
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इंद्राणी बागची कहती हैं, "जहां तक दोनों देशों के रिश्तों पर असर का सवाल है, उसका कारण सिर्फ टैरिफ नहीं है, बल्कि बीते मई महीने में ट्रंप की ओर से भारत-पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम की एकतरफा घोषणा भी है. उसका असर काफी पड़ा है."
वो आगे कहती हैं, "ट्रंप ने सीज़फायर कराने के 29-30 बार दावे किए. रिश्तों में सबसे बड़ा गतिरोध इसी वजह से आया. ट्रंप चाहते थे कि उन्हें श्रेय दिया जाए, लेकिन भारत की ओर से इसे मानने से इनकार कर दिया गया."
ट्रंप ने सिर्फ सीज़फायर के दावे ही नहीं किए बल्कि पाकिस्तानी आर्मी चीफ़ आसिम मुनीर को व्हाइट हाउस में बुलाने का न्योता भी दिया. इन सबका भारत में एक अलग ही संदेश गया.
संसद के मौजूदा मानसून सत्र में भी कई दिनों तक यही गतिरोध बना रहा कि ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा कराई जाए. जब बहस हुई तो ट्रंप का नाम बार-बार आया. उस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने साफ तौर पर कहा कि "ऑपरेशन सिंदूर के दौरान किसी भी दूसरे देश के कहने पर सीज़फायर नहीं हुआ."
इंद्राणी बागची का मानना है कि ट्रंप का व्यक्तित्व ऐसा है कि वो चीज़ों को पर्सनल ले लेते हैं और उनके कई फैसलों पर निजी पसंद-नापसंद का असर रहता है.
वो कहती हैं, "स्पष्ट है कि पहले से ही ठंडे रिश्तों में और ठंडापन आएगा. भारत क्वाड का सदस्य है, हो सकता है इसका असर वहां दिखे. चीन के साथ भारत अपने संबंधों को सामान्य बनाने की कोशिश कर रहा है."
लेकिन क्या ट्रंप की इस नीति से चीन, रूस और भारत आपस में और करीब आ जाएंगे? इस सवाल पर इंद्राणी बागची कहती हैं, "भारत और चीन के बीच भले व्यापार बढ़ रहा हो, लेकिन रणनीतिक रूप से चीन कभी भारत के करीब नहीं जाएगा. हालांकि इस बीच रूस-भारत-चीन (आरआईसी) के त्रिपक्षीय सहयोग को फिर से सक्रिय करने की बात शुरू हुई है. तो भारत इसमें अपनी भूमिका बढ़ा सकता है."
लेकिन पिक्चर अभी बाकी है, ट्रेड डील पर अभी सहमति बननी है.
और जैसा कि ट्रंप ने खुद के बारे में कहा था कि वो अनप्रिडिक्टिबल (अंदाज़ा न लगाया जा सकते वाला शख़्स) हैं और इसे वो अपने व्यक्तित्व का हिस्सा भी मानते हैं और बार्गेनिंग (मोल भाव) का हथियार भी.
तो व्यापार समझौते के बाद इस टैरिफ़ घोषणा में भी क्या बदलाव आता है, देखना होगा.
बीबीसी के लिए कलेक्टिव न्यूज़रूम की ओर से प्रकाशित
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