तृणमूल कांग्रेस के दो सांसदों की खुलेआम बहस और आरोप-प्रत्यारोप ने राजनीति के कई जानकारों को हैरान किया है. मोहुआ मित्रा और कल्याण बनर्जी के बीच तकरार कोई नया नहीं है.
लेकिन पश्चिम बंगाल में राज्य में बीते 14 साल से सत्ता में रही पार्टी क्या अब विवादों से दूरी बना रही है.
दो सांसदों के बीच इस तकरार के सुर्ख़ियों में आने के बाद पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव से पहले संगठन को भी दुरुस्त करने की कोशिश शुरू कर दी है.
सोमवार को तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने पार्टी सांसदों से वर्चुअल बैठक की. इस बैठक में उन्होंने लोकसभा सांसदों के बीच आपसी तालमेल की कमी पर नाराज़गी जताई.
मोहुआ मित्रा के बारे में एक्स पर पोस्ट करने के बाद ममता बनर्जी के करीबी और लंबे समय से लोकसभा में मुख्य सचेतक रहे कल्याण बनर्जी ने इस्तीफ़ा दिया है. इससे पहले अभिषेक बनर्जी को लोकसभा में संसदीय दल का नेता बनाया गया था.
इन घटनाओं से यह संकेत मिला है कि पार्टी चुनाव से पहले संगठन की कमज़ोरियों को सुधारना चाहती है.
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ममता बनर्जी का कहना था कि राज्यसभा में स्थिति ठीक है. लेकिन लोकसभा में पार्टी की भूमिका संतोषजनक नहीं है.
दरअसल, लोकसभा में पार्टी संसदीय दल के नेता सुदीप बंद्योपाध्याय लंबे समय से बीमार हैं, जिसकी वजह से वे सक्रिय भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं.
ऐसे में हुगली ज़िले के श्रीरामपुर से सांसद कल्याण बनर्जी ही मुख्य सचेतक के तौर पर लोकसभा में पार्टी का कामकाज भी संभाल रहे थे.
यही वजह रही कि ममता बनर्जी ने महासचिव अभिषेक बनर्जी को संसदीय दल का नेता बनाने का फ़ैसला किया.
वैसे तृणमूल कांग्रेस में इसे 'नए बनाम पुराने' नेताओं के विवाद में अभिषेक बनर्जी गुट की जीत के तौर पर भी देखा जा रहा है.
हालांकि ख़ुद अभिषेक ने ऐसी ख़बरों को निराधार बताया है और इस अहम ज़िम्मेदारी के लिए पार्टी प्रमुख के प्रति कृतज्ञता जताई है.
अभिषेक को नई ज़िम्मेदारी और कल्याण बनर्जी का इस्तीफ़ाअगले साल होने वाले चुनाव से पहले महासचिव के तौर पर अभिषेक बनर्जी ने राज्य के तमाम ज़िलों में संगठन की बैठकें शुरू कर दी थीं.
अब नई ज़िम्मेदारी मिलने के बाद उन्होंने मंगलवार को एक अहम वर्चुअल बैठक की, जिसमें सांसद, विधायक, नगर निगम प्रमुख और पंचायत प्रमुख तक शामिल हुए.
इस बैठक में उन्होंने चुनावी रणनीति की रूपरेखा साझा की और जनप्रतिनिधियों से अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्रों पर विशेष ध्यान देने को कहा.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बीबीसी को बताया, "इस बैठक का मकसद बूथ स्तर पर संगठन को और मजबूत करना था. इसमें ख़ासकर उत्तर बंगाल और जंगलमहल के उन इलाक़ों के लिए नई रणनीति बनाने को कहा गया, जहां पार्टी अपेक्षाकृत कमजोर स्थिति में है. इसके लिए तमाम नेताओं से ममता बनर्जी के निर्देश पर राज्य सरकार की ओर से शुरू 'हमारा मोहल्ला, हमारा समाधान' कार्यक्रम में शिरकत करने और इलाक़े के लोगों की समस्याओं को दूर करने में सक्रिय भूमिका निभाने को कहा गया."
इस बीच, सोमवार को ममता बनर्जी की वर्चुअल बैठक के बाद लोकसभा में पार्टी के मुख्य सचेतक पद से कल्याण बनर्जी के इस्तीफ़े के बाद कयासों और अटकलों का दौर तेज हो गया.
तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों ने बताया कि कल्याण के इस्तीफे़ के बाद अभिषेक ने उनसे फोन पर बात की थी और सात अगस्त तक उनसे काम चलाने का अनुरोध किया था.
अभिषेक को सात अगस्त को दिल्ली जाना है. लेकिन उसके बाद मंगलवार को अचानक उनका इस्तीफ़ा स्वीकार कर काकोली घोष दस्तीदार को उनकी जगह मुख्य सचेतक बना दिया गया.
काकोली की जगह बीरभूम की सांसद शताब्दी राय को लोकसभा में संसदीय दल का उपनेता बनाया गया है.
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क्या नदिया ज़िले में कृष्णनगर की सांसद महुआ मोइत्रा के साथ सार्वजनिक विवाद भी कल्याण बनर्जी के इस्तीफे़ की एक वजह रही?
तृणमूल कांग्रेस के एक नेता का कहना था कि इन दोनों सांसदों के बीच पहले भी कई बार सार्वजनिक रूप से विवाद होते रहे हैं.
लेकिन महुआ की शादी के बाद कल्याण ने जिस तरह सार्वजनिक रूप से उन पर टिप्पणियां की उससे ममता ख़ासी नाराज़ थीं.
उन्होंने दोनों नेताओं से ऐसा नहीं करने को कहा था. सोमवार को सांसदों के साथ बैठक में भी उन्होंने साफ़ कहा कि पार्टी में गुटबाजी या निजी टकराव बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.
उस नेता का कहना था कि महुआ के साथ विवाद ही कल्याण के इस्तीफे़ का सबसे प्रमुख कारण बना.
तृणमूल कांग्रेस के सूत्रों का कहना है कि नाराज़गी की एक वजह यह भी थी कि अगले साल के चुनाव से पहले बंगाल में ममता बनर्जी भाजपा शासित राज्यों में बंगाल के प्रवासी मजदूरों के कथित उत्पीड़न का मुद्दा जोर-शोर से उठाते हुए भाषा आंदोलन कर रही हैं.
लेकिन लोकसभा में पार्टी के सांसद इस मुद्दे को समुचित तरीके से उठाने में नाकाम रहे हैं. इससे ममता नाराज़ चल रही थीं.
पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना था कि कल्याण का इस्तीफ़ा तुरंत मंजूर नहीं किया गया था.
अभिषेक ने उनसे फिलहाल काम चलाने को कहा था. इससे साफ था कि पार्टी तुरंत उनको हटाने के मूड में नहीं थी.
लेकिन इस्तीफ़े के बाद कल्याण की सार्वजनिक टिप्पणियों ने ताबूत में आख़िरी कील ठोंकने का काम किया.
कल्याण ने कहा था, "लोकसभा में अगर तालमेल में समस्या है तो मेरे रहने की क्या ज़रूरत है? लोकसभा में सांसदों की ग़ैर-मौजूदगी की ज़िम्मेदारी भी मुझे ही लेनी होगी?"
उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर एक पोस्ट में कई और भी बातें कही थीं. इस्तीफ़ा देने के बाद पत्रकारों से बातचीत में उन्होंने कहा था, "दीदी (ममता) ने मुझसे पूछा कि मैं झगड़ क्यों रहा हूं? लेकिन अगर कोई मुझे गाली देगा तो क्या मैं चुपचाप सुनता रहूं?"
कल्याण ने महुआ मोइत्रा का नाम लिए बिना उन पर निशाना साधते हुए कहा था, "सिर्फ बढ़िया साड़ी पहनने से ही कोई बेहतर इंसान नहीं बन सकता."
कल्याण बनर्जी का कहना था, "ममता दीदी मेरी ग़लती तो देख सकती हैं. लेकिन दूसरों की नहीं. मैं किसी बड़े बाप का बेटा नहीं हूं और न ही मैंने कैंब्रिज या ऑक्सफ़र्ड से पढ़ाई की है."
उन्होंने पांच अगस्त को किए गए एक ट्वीट में लिखा, ''2023 में जब संसद में मिस मोइत्रा पर सवाल उठ रहे थे, तब मैंने उनका समर्थन किया था. मजबूरी में नहीं बल्कि अपनी प्रतिबद्धता की वजह से. आज वो मेरे उसी समर्थन का बदला मुझे महिला-विरोधी कहकर दे रही हैं. मुझे देश से माफ़ी मांगनी चाहिए कि मैंने ऐसे व्यक्ति का बचाव किया, जिसके अंदर मामूली कृतज्ञता भी नहीं है. जनता अब ख़ुद उनके शब्दों को सुने और फ़ैसला करे.''
कल्याण ने मौजूदा हालात पर हताशा जताते हुए कहा कि वो राजनीति छोड़ने पर विचार कर रहे हैं.
कल्याण बनर्जी के क़रीबी नेताओं का कहना है कि महुआ मोइत्रा के साथ हाल में हुए विवाद की वजह से ही कल्याण ने इस्तीफ़ा देने का फै़सला किया.
हुगली ज़िले के एक नेता ने बताया कि कल्याण का कहना था कि लोकसभा में पार्टी की तमाम ज़िम्मेदारी वो उठाते हैं.
लेकिन इसका श्रेय 'अंग्रेजी बोलने वाली सुंदर महिला' ले जाती हैं. इस मामले में उल्टे मुझे ही खरी-खोटी सुनाई जाती है.
तृणमूल कांग्रेस सूत्रों ने बताया कि कल्याण की इन टिप्पणियों के बाद ही उनका इस्तीफ़ा मंजूर करने का फ़ैसला किया गया.
कल्याण बनर्जी से छत्तीस का रिश्ता रखने वाली महुआ मोइत्रा ने उनकी जगह काकोली घोष दस्तीदार को मुख्य सचेतक नियुक्त होते ही एक एक्स पोस्ट के जरिए फौरन बधाई दे दी.
लेकिन उन्होंने इस पूरे विवाद यानी कल्याण के इस्तीफे़ और उनके बयान पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
महुआ के एक क़रीबी नेता ने बताया कि शुक्रवार को दिल्ली में उनकी शादी का रिसेप्शन है. फिलहाल वो उसी की तैयारियों में व्यस्त हैं.
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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि संसदीय दल का नेता बदलने की मुख्य वजह निचले सदन में पार्टी का रुख़ और मजबूत करना और विपक्षी पार्टी के तौर पर अपने रुख़ को और धारदार बनाना है.
कुछ विश्लेषक मानते हैं कि अभिषेक बनर्जी के संसदीय दल का नेता बनने से पार्टी में युवा पीढ़ी के नेताओं के अहम पदों तक पहुंचने का रास्ता और साफ़ हो गया है. इसके जरिए शीर्ष नेतृत्व ने संकेत दिया है कि आने वाला समय युवा पीढ़ी का ही है.
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार तापस कुमार मुखर्जी कहते हैं, "कल्याण और महुआ विवाद से संसद में पार्टी का कामकाज तो प्रभावित हो ही रहा था, पार्टी की छवि को नुक़सान भी हो रहा था. इसके अलावा इससे विपक्ष को भी मुद्दा मिल रहा था."
लेकिन क्या कल्याण के इस्तीफे़ का पार्टी की सांगठनिक मज़बूती या चुनावी संभावनाओं पर कोई असर होगा?
राजनीतिक विश्लेषक शिखा मुखर्जी कहती हैं, "हुगली जिले में कल्याण की पकड़ मज़बूत है. उनके इस्तीफे़ और नेतृत्व से नाराज़गी का पार्टी पर क्या और कितना असर होगा, यह उनके अगले क़दम पर निर्भर करेगा. फिलहाल तो इस पर कयास ही लगाए जा सकते हैं."
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