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भारत में सिर्फ यहां स्थित है रामभक्त विभीषण का इकलौता 2000 साल पुराना मन्दिर, जानिए क्यों हर साल ज़मीन निगलती है मंदिर का हिस्सा ?

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भगवान राम के परम भक्त विभीषण का मंदिर कोटा में ही है। यह मंदिर कोटा से करीब 15 किलोमीटर दूर कैथून में है। मंदिर 2000 साल पुराना है। मंदिर का इतिहास और परंपराएं भी अनूठी हैं। यहां धुलंडी के दिन हिरण्यकश्यप का पुतला जलाया जाता है और मेला लगता है। मंदिर समिति के अध्यक्ष सूरजमल और महासचिव ओमप्रकाश प्रजापति के अनुसार संभवत: देश में कहीं और विभीषण का मंदिर नहीं है।

किंवदंती के अनुसार मंदिर का इतिहास राम के राज्याभिषेक से जुड़ा है। राम का राज्याभिषेक हो चुका था और मेहमानों के जाने का समय हो गया था। भगवान महादेव और बालाजी भारत भ्रमण के बारे में चर्चा कर रहे थे। जब विभीषण ने यह सुना तो उन्होंने कहा- भगवान राम ने उन्हें कभी सेवा का अवसर नहीं दिया। मैं आपको भारत भ्रमण पर ले जाना चाहता हूं। महादेव और बालाजी सहर्ष तैयार हो गए, लेकिन उन्होंने शर्त रखी कि जहां भी कांवड़ जमीन पर टिकेगी, वे वहीं रुकेंगे।

शर्त के अनुसार 8 कोस लंबी कावड़ के एक ओर महादेव और दूसरी ओर बालाजी विराजमान थे। यात्रा जारी रही, लेकिन किसी कारण से विभीषण को कनकपुरी कैथून में रुकना पड़ा। एक ओर चारचौमा गांव में विश्राम किया, जहां महादेव विराजमान थे। दूसरी ओर रंगबाड़ी में जहां बालाजी विराजमान थे। चारचौमा शिव मंदिर और रंगबाड़ी बालाजी दोनों ही प्रसिद्ध धार्मिक स्थल हैं। विभीषण वहीं रुके, जहां कावड़ की धुरी दोनों मंदिरों के बीच थी। भगवान विभीषण के मंदिर से शिव मंदिर और रंगबाड़ी बालाजी मंदिर की दूरी बराबर है।

मूर्ति दुर्लभ है, सिर्फ सिर ही दिखाई देता है
मंदिर समिति से जुड़े सत्यनारायण सुमन और सत्येंद्र शर्मा बताते हैं कि मंदिर में स्थापित मूर्ति का सिर्फ सिर ही दिखाई देता है। मंदिर से करीब 150 फीट की दूरी पर सामने एक कुंड है, जहां विभीषण के पैर हैं। इससे मूर्ति की विशालता का पता चलता है। सिर्फ पैर और सिर ही दिखाई देता है। ग्रामीणों का कहना है कि हर साल एक चने के दाने के बराबर मूर्ति जमीन में धंस जाती है। संभव है कि मूर्ति का बाकी हिस्सा समय के साथ मिट्टी में दब गया हो। शुरू में यहां एक चबूतरा था। धीरे-धीरे मंदिर की प्रसिद्धि बढ़ती गई और इसका विकास होता गया। कुछ सालों से यहां धुलंडी पर हिरण्यकश्यप का पुतला जलाया जाता है।

कैथून था कौथमपुरी
इतिहासकार फिरोज अहमद बताते हैं कि कैथून को कौथमपुरी के नाम से जाना जाता था। यहां 9वीं-10वीं सदी के मंदिर के अवशेष भी मिले हैं। यह देश का एकमात्र विभीषण का मंदिर है। मूर्ति को देखकर ऐसा लगता है कि भगवान विभीषण कंधे का सहारा लेकर लेटे हुए हैं।

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