- ग्रामीणों का भड़का गुस्सा, पहले ही दी थी चेतावनी
- कलेक्टर सहित अन्य अधिकारी मौके पर पहुंचे
- राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री ने जताया दुख:
जयपुर। राजस्थान के झालावाड़ जिले के पिपलोदी गांव में आज सवेरे स्कूल की छत गिरने से हुए हादसे ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। सरकारी स्कूल की छत गिरने से 10 मासूम बच्चों की जान चली गई और 25 से अधिक घायल हुए। यह हादसा सिर्फ एक निर्माण खामी नहीं था, बल्कि व्यवस्थागत लापरवाही की भयावह मिसाल है।यह हादसा उस समय हुआ जब स्कूल में सुबह की प्रार्थना सभा चल रही थी। उसी दौरान अचानक बिल्डिंग की छत भरभरा कर गिर गई। कई छात्र मलबे के नीचे दब गए। झालावाड़ के पीपलोदी गांव में इस दुर्घटना के होते ही आसपास के ग्रामीण मौके पर पहुंचे और बिना देर किए राहत और बचाव कार्य शुरू कर दिया।
छत गिरने के बाद घायल बच्चों को अस्पताल लेकर पहुंचे गांव के ही व्यक्ति बनवारी ने बताया कि छत से पानी टपकने की शिकायत पांच-छह दिन पहले ही स्कूल प्रशासन को दी गई थी, लेकिन स्कूल प्रशासन ने यह कहकर कि गांव वाले ही ये काम करें, अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया। यदि समय रहते शिकायत पर कार्रवाई कर मरम्मत करवा दी जाती, तो शायद आज ये 8 मासूम जिंदा होते।गौरतलब है कि तीन दिन पहले ही छाबड़ा के तुमड़ा गांव में भी स्कूल भवन गिरा था, जिसकी मरम्मत की मांग विधायक पहले ही कर चुके थे लेकिन शिक्षा विभाग की अनदेखी से यह हादसा हो गया। गनीमत रही कि इस हादसे में किसी की जान नहीं गई।
मीडिया ने जब जिला कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ से इस बारे में जानकारी चाही तो उनका कहना था कि शिक्षा विभाग से जर्जर स्कूलों की सूची मांगी गई थी, लेकिन इस स्कूल का नाम उस सूची में नहीं था। उन्होंने कहा कि चूक कहां हुई है इसकी जांच की जा रही है और दोषियों को इस मामले में बख्शा नहीं जाएगा।हादसे के बाद स्कूल के सभी 5 शिक्षकों को निलंबित कर दिया गया है। शिक्षा विभाग ने प्रारंभिक लापरवाही को उनकी जिम्मेदारी माना है लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सिर्फ शिक्षकों पर कार्रवाई पर्याप्त है? क्या बड़ी जिम्मेदारी उस सिस्टम की नहीं, जो स्कूलों की हालत पर सही डाटा नहीं जुटा पा रहा? इधर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने इसे सिस्टम की लापरवाही करार दिया है।
उन्होंने कहा कि जब वे शिक्षा मंत्री थे, तब सभी स्कूलों का डाटा शालादर्पण पर अपलोड किया गया था, जिसमें स्कूल की स्थिति, कक्ष संख्या, मरम्मत की जरूरत जैसे बिंदु दर्ज थे। फिर सवाल उठता है कि क्या उस डेटा का कोई उपयोग नहीं किया गया? वर्तमान शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने हादसे पर गहरी संवेदना जताई है और अपने भरतपुर दौरे के सभी कार्यक्रम रद्द कर झालावाड़ रवाना हो गए हैं।
उन्होंने यह स्वीकार किया कि राज्य में हजारों स्कूल बिल्डिंग जर्जर हालत में हैं और सरकार ने 200 करोड़ रुपये मरम्मत के लिए जारी किए हैं लेकिन हर स्कूल की मरम्मत तुरंत कर पाना संभव नहीं है।इस पूरे घटनाक्रम से एक बात साफ है कि यह हादसा पूरे सिस्टम की चूक का परिणाम है। यदि स्कूल प्रशासन ग्रामीणों की चेतावनी को अनदेखा नहीं करता, शिक्षा विभाग ने स्कूल की स्थिति की सही जानकारी रखकर उस दिशा में काम करता तो शायद इन आठ मासूमों और उनके परिवारों को इतने बड़े दुख से दो-चार नहीं होना पड़ता।
इस हादसे की जिम्मेदारी सिर्फ गिरती हुई छत की नहीं, बल्कि उस लचर व्यवस्था की है जो बच्चों की सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकी। यह केवल एक इमारत की छत नहीं बल्कि उन माता-पिता का भरोसा गिरा है, जो उन्हें सरकारी स्कूलों में अपने बच्चों को भेजते समय होता है। बहरहाल सरकार ने हादसे की जांच का आदेश दे दिया है लेकिन क्या इस बार भी दोषी केवल नीचे के कर्मचारी होंगे या सिस्टम की ऊपरी परतें भी जवाबदारी लेंगी? यह अनुत्तरित है।
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