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Pitru Paksha Shradh: यह पितरों की सेवा का पर्व, जानें इसकी पौराणिक कथा, विधि और सही डेट

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Pitru Paksha Shradh: 17 या 18 सितंबर कब पितृ पक्ष का पहला श्राद्ध होगा इसको लेकर समाज में अलग अलग चर्चाएं है। दरअसल, यह पितरों की सेवा का पर्व है। इस दौरान पर लोग पूर्वजों के लिए पूजा करते हैं। पितरों की आत्मा की शांति हेतु पिंडदान व श्राद्ध करते हैं। इस बार पितृ पक्ष का समापन 2 अक्टूबर को हो जाएगा।

17 या 18 सितंबर, कब से शुरू होगा श्राद्ध ?

पूर्वजों की आत्मा को शांति और मोक्ष मिले, इसलिए श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान किया जाता है। घर में सुख-समृद्धि आती है। 16 दिन तक चलने वाले पितृ पक्ष श्राद्ध की शुरुआत 18 सितंबर से हो रही है। बता दें कि, 17 सितंबर को पितृ पक्ष भाद्रपद का पूर्णिमा तिथि है। इसलिए इस दिन पितृपक्ष की शुरूआत होने पर भी श्राद्ध नहीं किया जाएगा। आपको बता दें कि, श्राद्ध की शुरूआत प्रतिपदा तिथि पर ही होती है। ऐसे में 18 सितंबर को पहला श्राद्ध किया जाएगा।

राम जी ने भी किया था पिंडदान

श्राद्ध कर्म की परंपरा में तीन पीढ़ियों के श्राद्ध का विधान है। जिसमें पिता, पितामह और प्रपितामह आते हैं। यानि व्यक्ति को अपनी तीन पीढ़ियों का श्राद्ध करना चाहिए पिता, दादा और परदादा का। पौराणिक कथाओं में भी, पितृ पक्ष श्राद्ध के लिए बिहार के गया का जिक्र है। गया में श्राद्ध का विशेष महत्व है, जहां इसे करने से पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है। कथा के अनुसार, भगवान राम और माता सीता ने भी यहां अपने पिता दशरथ का पिंडदान किया था।

पितृ पक्ष पूजन विधि

वैसे तो, हर दिन सबसे पहले घर में बने भोज्य पदार्थों को ठाकुर जी का भोग लगना चाहिए। और, गाय के लिए अलग से निकालना चाहिए। लेकिन, श्राद्ध वाले दिन गाय के अलावा स्वान,जलचर एवम नभचर के लिए भी खाना निकालना चाहिए। इसके बाद, सात्विक व योग्य ब्राह्मण को भोजन कराने के पश्चात यथा शक्ति वस्त्र, उपहार, दक्षिणा दे कर विदा करना चाहिए। ध्यान रहे, ब्राह्मण को विदा करने के वाद पवित्र नदी सरोवर या गंगाजल से अपने पंडित या आचार्य के निर्देशन में तर्पण करें।

अब आप अगर ये सोच रहे हैं कि, ये सब करना बहुत महंगा है। तो बता दूं, जो व्यक्ति नितांत गरीब है वह सिर्फ तिल, जौ और चावल युक्त जल से तर्पण करके भी पितरों की आत्मा को संतुष्ट कर सकता है। यदि यह भी ना हो पाए तो, दक्षिण दिशा की और मुख कर के श्रद्धा के साथ पितरों का स्मरण करें। इस से भी पितृ संतुष्ट होते हैं।

पितृ पक्ष श्राद्ध से जुड़ी कथा

दरअसल, पितृ पक्ष के श्राद्ध की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। ऐसी कहानी है कि, मृत्यु के बाद जब कर्ण की आत्मा स्वर्ग पहुंची तो उन्हें वहां पर खाने के लिए भोजन की बजाय ढेर सारा सोना दिया गया। तब सूर्यपुत्र कर्ण ने इंद्र देवता से इसका कारण पूछा। जवाब में इंद्रा देव बोले, पृथ्वी पर रहते हुए तुमने कभी भी अपने पितरों के लिए भोजन दान, तर्पण आदि नहीं किया। तब कर्ण बोले, उन्हें अपने पूवजों के बारे में कुछ भी ज्ञात ही नहीं था, इसलिए अनजाने में उनसे यह भूल हुई। जिसके बाद उन्हें अपनी भूल को सुधारने के लिए पृथ्वी पर 16 दिन के लिए भेजा गया। और, उन्होंने अपने पितरों के मोक्ष के लिए विधि-विधान से श्राद्ध किया। और यही मान्यता है कि तभी से पितृपक्ष के 16 दिनों में श्राद्ध करने की परंपरा होती आ रही है।

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